भारत के स्वाधीनता संग्राम में “वन्दे मातरम्” केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक पुकार थी - मातृभूमि के प्रति समर्पण, बलिदान और गौरव की पुकार। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में रचित यह अमर गीत भारत की आत्मा से निकला वह स्वर है, जिसने लाखों हृदयों में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित की। यह गीत “आनन्दमठ” उपन्यास में पहली बार प्रकाशित हुआ, जिसने अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीयों को एकता, साहस और आत्मगौरव का संदेश दिया।
“वन्दे मातरम्” का अर्थ है - “माँ, मैं तुझे नमन करता हूँ।” इस गीत में भारत माता को देवी रूप में पूजनीय माना गया है, हरियाली से भरी धरती, कल-कल करती नदियाँ, लहलहाते खेत और सुगंधित पवन, सब मिलकर उस मातृभूमि की दिव्यता का चित्र खींचते हैं, जिसकी गोद में हम जन्मे हैं। यह केवल एक कविता नहीं, बल्कि मातृभूमि के प्रति भक्ति का संकल्प है।
स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जब गुलामी की जंजीरें भारत के हर हिस्से को जकड़े थीं, तब “वन्दे मातरम्” स्वतंत्रता सेनानियों के होंठों पर शक्ति का मंत्र बन गया। लाठीचार्ज, जेल, गोलियों की वर्षा, सब कुछ सहते हुए देशभक्त इस गीत को गाते रहे। यह गीत लोगों को याद दिलाता रहा कि भारत कोई भूखंड नहीं, बल्कि एक माँ है, जिसे सम्मान, प्रेम और बलिदान की आवश्यकता है।
राष्ट्रकवि रविन्द्रनाथ ठाकुर ने 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार इसे सार्वजनिक रूप से गाया। तत्पश्चात “वन्दे मातरम्” स्वदेशी आंदोलन का नारा बन गया। क्रांतिकारियों से लेकर आम जनता तक, हर भारतीय के दिल में यह गीत गूंजता रहा- एकता, त्याग और स्वतंत्रता का संदेश लेकर।
आज जब “वन्दे मातरम्” की रचना के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तो यह केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी समय है। हमें यह सोचना होगा कि क्या हम आज भी उसी मातृभक्ति, उसी निष्ठा और उसी एकता के भाव को जीवित रख पा रहे हैं, जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिया। यह गीत हमें बार-बार याद दिलाता है कि भारत की शक्ति उसकी विविधता में, उसके प्रेम और एकता में निहित है।
आइए, इस 150वीं वर्षगांठ पर हम “वन्दे मातरम्” की उस भावना को पुनः जीवित करें, जो जाति, भाषा और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर हर भारतीय को एक सूत्र में बाँधती है।
गर्व से कहें “वन्दे मातरम्”, क्योंकि यही वह स्वर है जिसने गुलामी के अंधकार में स्वतंत्रता का सूरज उगाया और जो आज भी भारत की आत्मा में गूंज रहा है।
ओम प्रकाश
भागलपुर

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