एक मनोविश्लेषणात्मक लेख।
मनुष्य अपने जीवन में प्रतिदिन चिंतन करता है,जिसमें स्व चिंतन तथा यथार्थ चिंतन होते हैं।स्व चिंतन एक ख्वाब मात्र होता है, जबकि यथार्थ चिंतन वास्तविक होता है। किसी भी प्रकार के काम को करने के लिये पहले चिंतन करने की जरूरत होती है।चिंतन करने के बाद ही लोग उसके समाधान का प्रयास करते हैं।मेरा यह आलेख "एक महल हो सपनों का" मात्र जीवन के ख्वाब पर आधारित है ठीक वैसा ही जैसे कि"ख्वाब हो या तुम कोई हकीकत कौन है ये बतलाओ" वाली बात हो जाती है।मुझे लगता है कि हमलोगों की पूरी जिन्दगी एक मात्र ख्वाब है।हमलोग प्रतिदिन जीवन में एक नया ख्वाब देखते हैं,जिनमें से कुछ ख्वाब पूरी हो जाती है कुछ यूँ ही अधूरी सी रह जाती है।उदाहरण स्वरूप एक बाप अपने बेटी का जन्म दिन मनाने के लिये बाजार से उसके लिये मिठाई,खिलौने, केक तथा अन्य बहुत सारी चीजों को लाने जाता है।बाजार से वह समान लेकर लौट ही रहा है तभी एक तेज रफ्तार से आ रही गाड़ी की चपेट में आ जाने से उसकी असामयिक निधन हो जाती है, जो एक ख्वाब मात्र बनकर रह जाती है।
इसी अनवरत चलने वाली ख्वाब में हमारे जीवन का एक बहुत बड़ा उद्देश्य है अपने आने वाले भविष्य का निर्माण करना,जिसमें हम अपने बच्चों के भविष्य के निर्माण की बात सोंचते हैं।इसके लिये हम सुबह से शाम तक धन-संपत्ति अर्जित करने के चक्कर में तबाह रहते हैं।हम अपने बच्चों के भविष्य का निर्माण करने के लिये दिन-रात लालायित रहते हैं,क्योंकि हमारे "सपनों का महल"आने वाली पीढ़ी के भविष्य का निर्माण करना है। इन सपनों के महल में हमारे उन बच्चों के भविष्य का निर्माण करना भी शामिल है,जिसके लिये शिक्षा विभाग के द्वारा हमलोगों को शिक्षक का दर्जा देकर एक दायित्व सौंपा गया है।हमलोगों को ईश्वर के द्वारा दिये गये दायित्व को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये।हमलोग जीवन में धन-संपत्ति कमाकर एक-से-एक बड़े-बड़े महल तथा अट्टालिकाओं का निर्माण तो करते हैं लेकिन हमलोगों को जिस सपनों के महल का निर्माण करना चाहिये,उससे हम कोसों दूर रह जाते हैं।
"सपनों का महल" बनाने के चक्कर में लोग मकान बनाने के लिये सही प्रकार की कारीगरी करने में कहीं-न-कहीं चूक जाते हैं तथा अपने मुख्य मार्ग से भटक जाते हैं। यही कारण है कि"मेरे सपनों का महल"बनते-बनते धवस्त हो जाता है,जिसमें कि पूरी जिन्दगी पानी तथा धूप से परेशानी होती ही रहती है।
अंत में मुझे लगता है कि जीवन में अपने सपनों के महल को बनाते समय जिस ईंट,सीमेंट,छर्री तथा मिस्त्री की जरूरत होती है, उसमें कमी नहीं होने दीजिये।मेरे कहने का मतलब यह है कि"एक महल हो सपनों का"के निर्माण करने में बचपन से ही बच्चे- बच्चियों में नैतिकता,सदगुण, संस्कार,उच्च कोटि की गुणवत्ता- पूर्ण शिक्षा देने में कमी न रखा जाय।यदि आप इसमें जरा सा भी ढील देते हैं तो"आपके सपनों के महल"का सपना समाप्त हो जायेगा। आप अपने सपनों के महल के निर्माण में सफल होवें इसकी अग्रिम बधाई।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बाँका(बिहार)
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