एक पर्यावरणीय लेख।
बरसात का मौसम जो कि आषाढ़ महीना से प्रारंभ होकर भादो महीने तक चलती रहती है।इस मौसम में जम कर मानसूनी वर्षा होती है,जिसमें लोग कृषि कार्य करते हैं।चूँकि भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व को जीवित रहने के लिये भोजन की आवश्यकता है।साथ ही भोजन की प्राप्ति कृषि के माध्यम से ही हो सकती है एवं कृषि के लिये जल की जरूरत है।कृषि कार्य के लिये बादल का घनीभूत होना जरूरी है।बादल के घनीभूत होकर वर्षा कराने के लिये वन तथा घने वृक्षों को लगाया जाना आवश्यक है।जैसा की सभी लोग जानते है कि कृषि तथा वृक्षारोपण करने का उपर्युक्त मौसम वर्षा ॠतु है,जिसमें वृक्ष लगाये जाने पर उसको सिंचित करने के लिये अलग से सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती है।
इसलिये भारत वर्ष में वृहत पैमाने पर चलाये जा रहे"वन-महोत्सव" कार्यक्रम में अपनी सहभागिता दर्ज कर आइये अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाकर धरती माता का श्रृंगार करें। बरसात के मौसम का प्रकृति में पदार्पण होते ही मानों किसानों के मन में खुशियों की बहार सी आ जाती है,और फिर दिलों में बहार क्यों न आये।क्योंकि किसी कवि ने ठीक ही लिखा है कि"बरसात के दिनों में धरती बनी है,दुल्हन साथियों"की बात शत-प्रतिशत सत्य सिद्ध होती है।
बरसात का मौसम के"रोहिनी नक्षत्र "के आगमन के साथ ही किसान अपने-अपने खेतों में धान के बीज डालना प्रारंभ कर देते हैं, खेतों में मक्का की बुआई कर देते हैं और ज्यों-ज्यों पौधे बड़े होने लगते हैं खेतों के नजारा बदलने लगता है।इसे देखकर कृषक बंधु की घरवाली कहती है कि"दिल तो मेरा भी डोलेगा-डोलेगा कि सैंया मेरे सुन्दर-सुन्दर फसलों की सौगात लेकर आयेंगे-आयेंगे।"
ज्यों-ज्यों बरसात का मौसम अपनी परिपक्वता की दहलीज पर कदम रखती हुई आगे की ओर बढ़ती है,फिर धरती माता का श्रृंगार करने के लिये बहुत सारे जीव-जंतु जो कि"जैव-विविधता"का वाहक हैं,बरसात के महीने की चमक पर चार चाँद लगाने का प्रयास करती है।बारिश का महीना हो और प्रकृति में मेढ़क,सर्प,झींगुर,केचुआ,सुन्दर- सुन्दर मछलियों का आगमन लगभग धरती माँ को दुल्हन की तरह सजाने का प्रयास करती है।"सर्प"का नाम सुनकर चौंकिये नहीं क्योंकि पर्यावरण विज्ञान का मानना है कि प्रकृति में पाये जाने वाले सारे जीव हमारे "पारिस्थितिकी तंत्र"का किमती गहना है,जिसके बिना धरती माँ सुशोभित नहीं हो सकती है। सर्प हमारा प्रिय मित्र है,क्योंकि यदि सर्प नहीं रहेंगे तो चूहों का प्रकोप बढ़ जायेगा और जब चूहों का प्रकोप बढ़ जायेगा तो फसल नष्ट हो जायेंगे।
बरसात के दिनों में हम देखते हैं कि नदियाँ अपने उफान पर रहती है तथा मदमस्त होकर,उसके साथ लहर मारते हुये नई मिट्टी को लाकर धरती की उर्वरा शक्ति को कई गुणा बढ़ा देती है। बरसात के दिनों में जब वर्षा की फुहार पड़ती है तो एक पत्नी अपने पति जो कि सावन के महीने में,जब नारी के साथ-साथ धरती माँ भी "सोलह श्रृंगार"करके सज-धज कर तैयार है तो इन्द्र देव से करबद्ध प्रार्थना करते हुये कहती है कि"जरा थमके बरस मेरा महबूब आने वाला है"और वर्षा रानी भी मचल-मचल कर नायिका की बातों को मान लेती है।साथ ही जब धानी रंग चुनरिया ओड़ कर धान रोपने वाली धान- रोपणी करते समय सुन्दर-सुन्दर कृषि गीत गाती है तो कंधे पर कुदाल लेकर अपने बैलों को हल में जोड़ कर खेतों की ओर जाने वाला किसान एक बार धान-रोपणी के गाये गीतों को भी सुनकर झूमता है।
इस आलेख का लेखक भी स्वंय एक शिक्षक के साथ-साथ एक किसान भी है जो सुबह उठकर सबसे पहले"दुल्हन की तरह रंग-बिरंगी फसलों"को देखकर अपने जीवन का वास्तविक मजा भी लेता है।
अंत में हम कह सकते हैं कि"वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग भारत सरकार के द्वारा संपूर्ण भारत वर्ष में धान रोपनी तथा वृक्षारोपण भी कहती है कि जीवन का शुभ करने के लिये तथा धरती को धानी रंग चुनरिया युक्त करने के लिये सीसम,सागवान,महोगनी,अशोक,वट,पीपल,तुलसी,अर्जुन अड़हूल आदि के वृक्षों को लगाने के साथ-साथ खेतों में अच्छी किस्म के धान, झींगली,करेला,भिंडी,नेनुआ,खीरा आदि सब्जी की फसल भी उपजा कर धरती को दुल्हन की तरह सजाये रखने का प्रयास कीजिये ताकि धरती माता,पर्यावरण, स्वच्छ, सुन्दर, प्रदूषण मुक्त बना रहे तथा भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व में"जल, जीवन और हरियाली बनी रह सके की बहुत सारी शुभकामनायें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा
बाका(बिहार
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