धरती की कोड़-"पोलीथिन"- श्री विमल कुमार 'विनोद' - Teachers of Bihar

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Sunday, 4 December 2022

धरती की कोड़-"पोलीथिन"- श्री विमल कुमार 'विनोद'

प्लास्टिक जो कि मृदा प्रदूषण का मुख्य कारक है जो कि जमीन पर  सड़ता,गलता या नष्ट नहीं होता है तथा इसको जलाने से भी इसका धुआँ पर्यावरण में रहता है जो कि वर्षा के साथ अम्ल वर्षा करता है। प्लास्टिक जिसमें से खासकर पोलीबैग जो कि पचास माइक्रोन से कम का होता है ,यह सबसे ज्यादा हानिकारक होता है जो कि "धरती का कोड़"बनकर उसे निगल रहा है।

 आज के समय में जब विश्व विकास की ओर अग्रसर है ,जहाँ प्लास्टिक तथा उससे बने हुए समान अपनी अहम भूमिका निभा रहा है,क्योंकि बाजार में बिकने वाली बहुत सारी चीजें प्लास्टिक से बनायी जा रही है जो कि मनुष्य के लिये उपयोगी भी है। इसके बाबजूद भी प्लास्टिक विशेषकर पोली बैग,पान मसाला तथा गुटका,कुरकुरे पैकेट इत्यादि आज बहुत  हानिकारक सिद्ध हो  रहे हैं।

आज से कुछ वर्ष पूर्व 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस का स्लोगन था"बीट प्लास्टिक पोलयूशन" अर्थात विश्व से प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना जिसकी जिम्मेदारी खासकर वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को सौंपा गया था । आज कई वर्ष पूरे होने पर भी लगभग20%से अधिक प्रभावी नहीं हो पाया है। मुझे लगता है कि बीट प्लास्टिक पोलयूशन की असफलता का मुख्य कारण-

(1)सरकार तथा प्रशासन की कमजोरी-कभी-कभी जब सरकार की नींद खुलती है तो बाजारों में छापामारी होती है,उसके बाद फिर टांय -टांय फिस्स वाली बात हो जाती है।मुझे लगता है कि प्रशासन के लोग भी किसी-न-किसी रूप में पोलीथिन बनाने वाले के दबाव में आ जाते हैं। झारखंड सरकार,बिहार सरकार तथा अन्य कई प्रांतों की सरकारें भी पोलीबैग के प्रयोग पर रोक लगा पाने में असफल सिद्ध हो रही है।सिर्फ पोस्टरों में ही  पोलीथिन बंद करने संबंधी चेतावनी दिखाई पड़ती है।अगर सरकार चाहे कि बाजार से पोलीथिन को पूरी तरह समाप्त कर देना है तो यह पूरी तरह से बंद हो जायेगी लेकिन ऐसा नहीं  हो पा रहा है,क्योंकि पोलीथीन बनाने वाली कंपनी की पहुँच बहुत आगे तक दिखाई देती है।

 (2)आदतन तथा क्षणिक सुविधा के कारण--दूसरी बात यह है कि  आज लोग आदतन भी पोलीबैग का प्रयोग कर रहे हैं,क्योंकि लोगों  को ऐसा लगता है कि बाजार में आसानी से समान लाने के लिये पोलीबैग उपलब्ध हो जाते हैं। वैसी स्थिति में लोग उसका उपयोग करते हैं।बाजार में यदि पोलीथिन में भरकर समान मिलना बंद हो जाय तो लोग स्वंय इसका प्रयोग करना छोड़ देगा लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।

 सबसे दुर्भाग्य की बात है कि वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को" बीट प्लास्टिक पोलयूशन अभियान "को सफल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।लेकिन  वह भी अपने नर्सरी में पौधे उगाने के लिये प्लास्टिक का प्रयोग करने  का कोई विकल्प नहीं निकाल पायी है।वन  विभाग को चाहिये कि वह मिट्टी के गमले बनाकर पौधों को तैयार करे। 

(3) जनजागरूकता का अभाव- लेकिनआज एक वर्ष पूरे होने के बाबजूद भी इसकी सफलता नगण्य ही दिखाई देती है। क्या 2018 के विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर शहर के कुछ तालाबों से पोलीथिन चुन लेने से पूरा गोड्डा शहर पोलीथिन मुक्त हो गया ,यह तो अपने आप में महसूस करने की चीज है।पोलीथीन या कुछ पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली कंपनियों को पर्यावरण को संरक्षण देने से संबंधित बातों को सोचना चाहिये। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता है, सिर्फ देश तथा पर्यावरण को क्षति करने संबंधित चीजों के बारे में सोचा जा रहा है। पोलीथिन जो कि"धरती को कोड़  की तरह निगले हुये जा रही है, इसको बचाने के लिये निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-

(1)सरकार को पोलीथीन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का प्रयास करना चाहिये।जिस प्रकार बिहार सरकार के द्वारा बिहार में पूर्ण नशा बंदी लागू करने का प्रयास किया गया है।उसी प्रकार यदि दुकानों में पोलीथीन का प्रयोग करने वाले लोगों पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाय तथा पोलीथीन का प्रयोग करने वाले दुकानदारों को कड़ी-से-कड़ी सजा दी जाय तो पोलीथिन के प्रयोग को कम किया जा सकता है।लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है,क्योंकि सरकार यह काम करने में असफल लग रही है।

(2)जनता को जागरूक बनाना- जनता को यह समझाने का प्रयास किया जाना चाहिये कि पोलीथीन जमीन पर न तो गलता है, न ही नष्ट होता है, यह मृदा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है तथा इससे धरती माता त्रस्त होती हुई नजर आती है,जो कि जमीन तथा धरती माता की एक कोड़ की तरह है।

(3)सरकार को निर्ममता के साथ पोलीथीन का उत्पादन करने वाली कंपनी तथा पोलीथीन से संबंधित चीजों का प्रयोग करने वालों को कठोर से कठोर सजा दी जानी चाहिये तभी इसमें रोक लग सकती है।

(3)लोगों को अपने रोजमर्रा की जिन्दगी के आदतों में सुधार लाते हुये बाजार जाते समय थैला लेकर जाना चाहिये तभी पोलीथीन के प्रयोग पर रोक लग सकती है।

अंत में,मुझे लगता है कि पोलीथीन का प्रयोग जिस प्रकार धड़ल्ले से हाट-बाजारों में दिखाई पड़ रहा है,जिससे निकट भविष्य में गाँव-घरों में पोलीथीन के प्रयोग पर पाबंदी लग पाना असंभव नजर आता है।मुझे लगता है कि पोलीथीन उद्योग को पनपने से रोक पाना कठिन तो है,लेकिन असंभव नहीं।

इस प्रकार यह तो निश्चित दिखाई देता कि यदि पोलीथिन के उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो "धरती माता पूरी तरह से कोड़ का शिकार"हो जायेगी।साथ ही होकर धरती माता की उत्पादन क्षमता नष्ट हो जायेगी। इसलिये विश्व के तमाम लोगों शिक्षावदों प्रशासन के अधिकारी से अनुरोध है कि पर्यावरण को तथा विश्व प्रदूषण से बचाने के लिए पोलीथिन पर पूरी तरह से  प्रतिबंध लगा कर इसकी रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। 


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"

प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,

बांका(बिहार

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