Tuesday, 20 October 2020
New
पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक-मो. जाहिद हुसैन
पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकें
पाठ्यचर्या(Curriculum) शिक्षा का दर्शन है।पाठ्यक्रम(Syllabus) उस दर्शन को पाठ्यपुस्तक के विकास के द्वारा अमलीजामा पहनाने का दस्तावेज है।पाठ्यचर्या में शिक्षा को सिद्धांत रूप में तय करना होता है जिससे हम राष्ट्र का निर्माण कर सकें। पाठ्यचर्या का दायरा बड़ा होता है। उसी दायरे के अंदर पाठ्यक्रम होता है फिर पाठ्यक्रम के दायरे के अंदर पाठ्यपुस्तकों की रचना होती है। उदाहरण के तौर पर इस प्रकार समझा जा सकता है। सिद्धांत के रूप में भारत के शिक्षाविदों एवं चयनित शिक्षकों ने यह तय किया कि बच्चे भविष्य में देशभक्त हों। यह एक तयशुदा दर्शन (पाठ्यचर्या) है।बच्चे देश भक्त हों इसके लिए क्या करना होगा? जाहिर सी बात है कि सिलेबस में देशभक्तों के अच्छे कारनामे रहे ताकि उनके त्याग, बलिदान, जीवन तथा देश के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना से प्रेरणा मिलेगी। यह पाठ्यक्रम हो गया।
फिर पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य पुस्तकों के विषय-वस्तु में शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, मदनलाल ढींगरा, अशफाकुल्लाह, वीर कुंवर सिंह, महारानी लक्ष्मी बाई, पीर अली आदि जैसे वीर एवं वीरांगनाओं की गाथा डाली जाएगी। पाठ्यचर्या को मानव जाति के संपूर्ण ज्ञान और अनुभव का सार समझा जाना चाहिए। पाठ्यचर्या सुविचारित खास लक्ष्य को प्राप्त करने का सिद्धांत है।
प्रायः पाठ्यक्रम शब्द का प्रयोग पाठ्यचर्या के अर्थ में कर दिया जाता है जबकि पाठ्यक्रम पाठ्यचर्या की अपेक्षा संकीर्ण शब्द है जिस का आशय है- शिक्षण की विषय-वस्तु का विशिष्ट आलेखन जो मूल्यांकन के साथ जुड़ा होता है। पाठ्यचर्या अधिक अमूर्त श्रेणी है जबकि पाठ्यक्रम पाठ्यपुस्तकों के रूप में ठोस आकार ग्रहण कर लेता है। पाठ्यचर्या दर्शन है तो पाठ्यक्रम उसे क्रियात्मक रूप देने हेतु योजना है। पाठ्यचर्या में शिक्षा के उद्देश्य और व्यवहार के तरीके शामिल होते हैं। पाठ्यपुस्तक पाठ्यचर्या की उद्देश्यों की पूर्ति पाठ्यक्रम के द्वारा करता है। सामान्यतः पाठ्यचर्या का अर्थ होता है- सीखने और सिखाने के तमाम अवसरों एवं अनुभवों का क्रमबद्ध संयोजन। पाठ्यचर्या में ज्ञान और कुशलता का समागम होता है जिसमें बालक के दृष्टिकोण के साथ-साथ शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण होते हैं। पाठ्यचर्या का निर्माण दुनियाँ भर में हो रहे अनुसन्धानों और विमर्शों के आधार पर होता है। इसमें बच्चे की प्रकृति, अध्यापक, पाठ्यक्रम तथा शैक्षणिक माहौल की चर्चा होती है। एक और उदाहरण से इस तरह समझा जा सकता है। बच्चे के स्वास्थ्य विकास के उद्देश्य को ही लें तो पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय शरीर विज्ञान पर बल देना होगा। इसके साथ दैनिक जीवन, स्वास्थ्य नियमों जैसे- सुबह जल्दी उठना, स्नान करना, शरीर के विभिन्न अंगों की सफाई करना, व्यायाम करना, संतुलित आहार, कम से कम 7-8 घंटे की नींदे पूरी करना आदि को पाठ्यक्रम में रखना होगा तथा पुस्तकों में इनके विषय बिंदु देने होंगे।
बिहार पाठ्यचर्या की रूपरेखा (BCF-2008 ) से सिल-सिलेवार पाठ्यचर्या से पाठ्य पुस्तकों का सफर इस प्रकार किया गया है। उदाहरण प्रस्तुत है- अध्याय-4.2.4 में पर्यावरण अध्यन के लिए कक्षा 3 से 5 तक की पाठ्यचर्या तय की गई है। इसमें कहा गया है कि पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण को नवाचारी एवं प्रयोगमूलक होने के साथ-साथ शिक्षार्थियों में प्रेक्षणक्षमता, सृजनात्मकता एवं सौंदर्यबोध, प्रकृति प्रेम, सांस्कृतिक स्वरुपों के प्रति आदर और इनके जरिए हमारी बहुलतावादी संस्कृति की स्वीकार्यता एवं आदर को प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए। शिक्षक की भूमिका एक सुगमकर्ता की है। पाठों को स्थानीय उदाहरण के जरिए प्रमाणित करना चाहिए। पाठों में घर से शुरु कर के पड़ोस एवं विद्यालय तक को शामिल करना चाहिए। परीक्षण, संरक्षण तथा सामंजस्यपूर्वक जीवनयापन को शामिल किया जाना आवश्यक है।इतिहास के पाठों को ऐतिहासिक महत्त्व की स्थानीय घटनाओं पर संकेंद्रित होना चाहिए। इस तरह से आसपास की सभी चीजों पर बच्चों के जो अनुभव होते हैं उसका फायदा शिक्षण में उठाना चाहिए। पाठ सूचनात्मक न हो बल्कि करके सीखने वाला हो।
अब पाठ्यचर्या के आधार पर पाठ्यक्रम को समझने की कोशिश करें। बिहार के स्कूली पाठ्यक्रम में पांच थीम(Theme) दिए गए हैं- परिवार, आवास, जल, यात्रा एवं स्व-निर्माण जिसमें बिहार पाठ्यचर्या की रुपरेखा की बातें समाहित हो जाती हैं।
अब बिहार पाठ्यपुस्तकों की बात करते हैं। पाठ्यपुस्तको में इन सभी बातों का ख्याल रखा गया है। बच्चे को अवलोकन, सामूहिकरण, वर्गीकरण, अनुमान, तुलना, विश्लेषण, संश्लेषण द्वारा पर्यावरण को समझने का अवसर प्रदान किया गया हैक्योंकि पर्यावरण पढ़ने की चीज नहीं बल्कि समझने की चीज है। ऐतिहासिक विरासत के बारे में पाँचवी कक्षा में ऐतिहासिक स्मारक जो नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में लिखा गया है के अभ्यास में ऐसे प्रश्न भी दिए गए हैं कि बच्चे आस-पास के ऐतिहासिक विरासतों का समादर करें। एक और उदाहरण प्रस्तुत है जो BCF-2008 के (अध्याय-4.2.1) में भाषा के संदर्भ में लिखा गया है। विभिन्न भाषाओं में अनुदित हिंदी रचनाएँ भी शामिल करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। आठवीं कक्षा में "बच्चे की दुआ" उर्दू के मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की रचनाओं से से ली गई है।
भारत में स्कूली शिक्षा की पहली पाठ्यचर्या 1975 में शिक्षा एवं समाज कल्याण विभाग की पहल पर बनी और दूसरी 2000 में और फिर 2005 में (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा 2005) यशपाल कमेटी की "शिक्षा बिना बोझ के" की रिपोर्ट के बाद NCERT ने विकसित की। यशपाल कमेटी की सिफारिशों में बच्चों में छुपी प्रतिभा को निखारने का भरपूर प्रयास किया गया है। बच्चों के दोनों तरह की बोझ- बस्ते का बोझ और मानसिक बोझ को कम करने का प्रयास किया गया है। परीक्षा प्रणाली को सहज करने की सिफारिश की गई है। बच्चों के सहजात गुणों का उपयोग कर शिक्षण को बेहतर बनाने की बात कही गई है। बच्चों को सीखने का अवसर देना न कि ऊपर से सूचनाओं को ठूंसते जाना। यशपाल समिति- 1993 "शिक्षा बिना बोझ के"(Learning without burden)" की सिफारिशें NCF-2005 में डाली गयी है और पाठ्यचर्या में नवीन शोधों की अवधारणा कि बच्चे स्वयं ज्ञान का सृजन करते हैं को ध्यान में रखा गया है।
NCF-2005 के अध्याय-2 "सीखना और ज्ञान" का आरंभ ही बच्चों की अपनी गतिविधियों के फलस्वरुप पैदा होने वाले ध्यान को स्थापित करता है। पाठ्यचर्या विद्यार्थियों की उत्कंठा, अभिरुचि, प्रतिबद्धता, सरोकारों एवं सीखने के आनंद तथा उससे मिलने वाले संतोष को केंद्रीय रुप में स्थापित करता है।बच्चे स्वभाव से ही रचनाशील होते हैं जिसका सीखने- सिखाने की प्रक्रिया में इस्तेमाल होना चाहिए। यह विद्यार्थियों को सृजनकर्ता के रूप में आजादी देता है।साथ ही पाठ्यचर्या की बंद गली की बहस को छोड़कर नए शैक्षिक विमर्श की फिजा में खदबदाने का मौका भी देता है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा-2005 ज्ञान के किसी कमरे को बंद(Air tight) नहीं करता बल्कि उसे खिड़कियों से बाहर की दुनियाँ में झांकने की पूरी आजादी देती है।
बिहार में भी बिहार पाठ्यचर्या की रुपरेखा का प्रारुप SCERT Patna ने 2006 में बनाया जिस पर देश-प्रदेश के शिक्षक, शिक्षाशास्त्री, समाजसेवी, विषय- विशेषज्ञों तथा पत्रकारों आदि से सुझाव लिय गया तथा उसे परिमार्जित कर 2008 में BCF-2008 विकसित किया गया। प्रत्येक राज्य की अलग-अलग बनावट होती है। बिहार में भी बच्चों का परिवेश - भाषीक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक अलग है। इसलिए पाठ्यचर्या में बिहारी फंडा डालना जरूरी था। पूरे देश में बिहारियत अलग पहचान रखती है इसलिए बिहार का अलग पाठ्यचर्या होना ही चाहिए। बिहार पाठ्यचर्या की रुपरेखा में बच्चा के अध्याय में "उपेक्षित या अभिवंचित बच्चे :-बिहार में एक बड़ी जमात "को जोड़ा गया है तथा "ग्रामीण शिक्षा की पाठ्यचर्या" पर एक अलग ही अध्याय है जो राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा से अलग करती है। बाकी सभी बातें दोनों में ही सृजनवाद को जन्म देती है। बच्चा संसार का ज्ञान ग्रहण करता है और नए ज्ञान का भी सृजन करता है। यहाँ तक कि राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा -2005 इसकी इजाजत देती है कि राज्य ही नहीं बल्कि प्रत्येक इकाई यहाँ तक कि विद्यालय भी अपने परिवेश के अनुसार पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम बना सकता है। शिक्षण के लिए सिर्फ पाठयपुस्तक ही अटल सत्य नहीं है इसलिए शिक्षकों को चाहिए कि परिवेश के अनुसार पाठ्यपुस्तक के अलावे स्वयंनिर्मित या अपनी समझ से बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं। इसकी समझ शिक्षकों में होनी चाहिए।
चुँकि अब 34 वर्षों के बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 आ चुकी है जिसमें यह सिफारिश की गई है कि एनसीईआरटी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का निर्माण करेगी। आशा है कि जल्दी ही नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा एनसीईआरटी विकसित कर लेगी क्योंकि यह नीतिगत फैसला है।
मो. जाहिद हुसैन प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलहविगहा
चंडी नालंदा
About ToB Team(Vijay)
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम-मो. जाहिद हुसैन
Labels:
Blogs Teachers of Bihar,
Teachers of Bihar,
Teachers of Bihar Blogs,
ToBBlog,
ToBblogs,
पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम-मो. जाहिद हुसैन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Thank you so much sir ji
ReplyDeleteआपका धन्यवाद
Deleteबहुत ही सारगर्भित आलेख है।इसे शिक्षालोक पत्रिका में प्रकाशित करने की अनुमति देना चाहेंगे।
ReplyDeleteहां बिल्कुल इसे शिक्षा लोक में प्रकाशित कर सकते हैं
Deleteबहुत अच्छा लेख
ReplyDeletehindivan
Thank you sir
Delete