Thursday, 21 May 2020
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सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन-मनोज कश्यप
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन
नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इसके अंतर्गत 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उनका मौलिक अधिकार हो गया। इसे संविधान के अनुच्छेद 21 ए के अंतर्गत शामिल किया गया है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के साथ-साथ शैक्षणिक व्यवस्था में भी क्रांतिकारी परिवर्तन किया गया है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सार्थक बदलाव परीक्षा प्रणाली को लेकर किया गया है, जिसके अंतर्गत पूर्व में प्रचलित परीक्षा प्रणाली (वार्षिक/अर्द्धवार्षिक) को समाप्त कर सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन प्रणाली को अपनाया गया है ( CONTINUOUS AND COMPREHENSIVE EVALUATION - CCE )
शैक्षणिक प्रणाली में आए इस बदलाव का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के अंतर्गत एक निश्चित समय पर वार्षिक, अर्द्धर्वार्षिक मूल्यांकन न होकर पूरे शैक्षणिक सत्र में बच्चों के विकास का मूल्यांकन करना है। यह पद्धति बच्चों के सर्वांगीण विकास पर बल देता है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन पद्धति में तीन महत्वपूर्ण शब्द है जो तीन चरणों की व्याख्या करते हैं।
सतत् का सामान्य अर्थ लगातार होता है। सतत्
आकलन अर्थात शिक्षक द्वारा बच्चों का लगातार अवलोकन करना। बच्चा दिए गए पाठ को कैसे सीखता है, क्या उसके सीखने का तरीका मनोरंजक एवं चुनौतीपूर्ण है, क्या बच्चा स्वयं करके सीख रहा है या समूह में। अपने अवलोकन के दौरान ही शिक्षक काफी हद तक बच्चों का मूल्यांकन कर लेंगे। इस प्रकार यह मूल्यांकन एक निर्धारित समय पर न होकर लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें बच्चों को भी यह एहसास नहीं होता है कि उनका मूल्यांकन किया जा रहा है तथा शिक्षक भी बच्चों का मूल्यांकन शैक्षणिक गतिविधि के दौरान ही करते चलते हैं ।
व्यापक- सीखने-सिखाने के संदर्भ में व्यापक का अर्थ उन सभी दक्षताओं से है जो बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है। इसमें संज्ञानात्मक तथा सह-संज्ञानात्मक दोनों पहलुओं पर समान रूप से जोर दिया जाता है । संज्ञानात्मक पक्ष में हम मुख्यतः पाठ्यक्रम की दक्षताओं को शामिल करते हैं जिनका मापन किया जा सके अर्थात इसको मापने के अनेक विधियाँ हमारे पास है। सह-संज्ञानात्मक पक्ष में हम बच्चों के व्यक्तित्व के उन पहलुओं को शामिल करते हैं जिसको मापने या मूल्यांकन करने का कोई ठोस तरीका हमारे पास नहीं है। जैसे बच्चों में काम की आदत, स्वास्थ्य की देखभाल, सौंदर्य बोध तथा कलात्मक क्षमता । यह सारे कार्य ऐसे हैं जिनका आकलन अंकों के आधार पर नहीं किया जा सकता है। इसको मापने का एकमात्र तरीका सतत अवलोकन हीं है।
मूल्यांकन- वांछित गुणों के सापेक्ष बच्चों के सीखने के बारे में तथ्यों का अवलोकन करते रहना और इसके जरिए विकास और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सुधार लाना हैै। अपने ही कार्य का लगातार विश्लेषण करते रहना कि वर्तमान स्थिति क्या है और आगे के लिए क्या जरूरी है। इन दोनों को मिलाकर योजना का निर्माण पुनः निर्माण करते रहना मूल्यांकन है।
इस प्रकार सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चों के चतुर्दिक विकास पर आधारित है। पहले बच्चों के अंदर कमी को देखा जाता था अब बच्चों के अंदर कौशलों की पहचान और उन्हें लगातार बढ़ाते रहने की कोशिश की जाती है। यह तभी संभव है जब अधिगम प्रक्रिया के दौरान ही उनका आकलन होता रहे। यह आकलन बच्चों का हीं नहीं बल्कि अपनाई जा रही प्रक्रियाओं का होगा जिसके आधार पर यह तय किया जा सके कि किस बच्चे को कहाँ और कितनी मदद की जरूरत है।
निष्कर्षत: बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली को भी सशक्त और ज्ञानवर्धक बनाने की आवश्यकता है जिसके लिए निरंतर केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर सरकार के द्वारा प्रयत्न किये जा रहे हैं। इन प्रयत्नों की सफलता विद्यालय स्तर पर बच्चों, शिक्षकों तथा अभिभावकों के परस्पर सहयोग समन्वय तथा सहभागिता पर हीं आधारित है ।
मनोज कश्यप
संकुल समन्वयक, सिमरा
फुलवारीशरीफ, पटना
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ज्ञानवर्धक जानकारी। धन्यवाद
ReplyDeleteअनुकरणीय!
ReplyDeleteअच्छी रचना है। बच्चों का सतत और व्यापक मूल्यांकन तो होना ही चाहिए। वाकई आलेख ज्ञानवर्धक व अनुकरणीय है।
ReplyDeleteBahut achha
ReplyDeleteBahut achha
ReplyDeleteBahut acchi shuruat
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर जी
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