धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व।
वृक्ष जीवनदायिनी होती है।वृक्ष लोगों को छाया,ऑक्सीजन,जलवाष्प,बादल को अपनी ओर आकर्षण,फल,फूल,सुन्दर-सुन्दर लकड़ी इत्यादि प्रदान करते हैं।साथ ही भू-जल को रीचार्ज करने का भी सबसे अच्छा साधन वृक्ष ही है।इसके बिना लोगों का जीवन जीना दूभर है।क्योंकि"वृक्ष है तो जल है और जल है तो रोटी है और रोटी है तो जीवन है"।
प्राचीन काल से ही मनुष्यों के द्वारा वृक्षों की पूजा की जाती रही है।चूँकि वृक्षों को लोग काट कर जलावन या घर में अपने उपयोग के लिये समान बनाने का भी काम करते थे,इसके अनावश्यक कटाव को रोकने के लिए कुछ वृक्षों मेंदेवी-देवताओं का वास बताया गया जिससे इसके कटाव में कमी आयी।
इसी कड़ी में वट सावित्री जो कि जेठ महीने के अमावस्या को मनाया जाता है का त्योहार अपना विशेष महत्त्व रखता है।आज वट सावित्री के शुभ अवसर पर महिलाओं के द्वारा असीम श्रद्धा, नियम ,स्वच्छता,अद्भुत श्रृंगार करके अपने-अपने प्रणनाथ के दीर्घायु होने की कामना ईश्वर से कर रही थी,उसी समय वृक्षों से असीम तथा अन्योन्याश्रित संबंध रखने वाले,पृथ्वी में अधिक--से अधिक वृक्ष जिसमें कि वट एवं पीपल के हैं, लगाने के प्रयास करने चाहिये।उनका मानना है कि वृक्ष जो कि सर्व गुणों से सुसज्जित है,जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय वह कम ही होगी।महिलायें जिनपर गृह संचालन तथा परिवार के देखभाल की पूरी जिम्मेवारी होती है जो कि हमेशा अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है,के लिये उनको अपने शादी के सालगिरह,बच्चों के जन्म दिन पर प्रतिवर्ष कम-से-कम पाँच वृक्ष जिसमें वट,पीपल,नीम,अर्जुन, जामुन,आम इत्यादि लगाना चाहिये। आगे उनकी सोच है कि यदि अधिक-से-अधिक वृक्ष लगेंगे तो लोगों को अधिक-से- अधिक ऑक्सीजन मिलेगी, जिससे लोगों को नवजीवन मिल पायेगा।
ऐसा माना जाता है कि महिलाओं के द्वारा अखंड सुहागवती बने रहने की मंगल कामना के साथ वट वृक्ष का पूजन किया जाता है।
वट सावित्री व्रत करने के पीछे कई प्रचलित मान्यतायें है कि जब सत्यवान लकड़ी काट रहा था उसी समय उसकी मृत्यु हो जाती है और सावित्री एक वट वृक्ष के नीचे अपने गोद पर सत्यवान को रखकर यमराज से उसके प्राण
लौटा देने की हठ करती है तथा यमराज को अंत में सावित्री के पतिव्रता होने के कारण उसके पति सत्यवान को जीवनदान देना
पड़ता है।
दूसरी मान्यता यह है कि वट वृक्ष में सबसे ज्यादा शाखायें पायी जाती हैं , इसलिए भी महिलाएं अपने परिवार के वंश की वृद्धि के लिये इस त्योहार को करती हैं।
तीसरी मान्यता है कि वट वृक्ष की आयु सात सौ वर्ष के लगभग होती है।प्रत्यके महिला की आंतरिक इच्छा होती है कि उसके पति दीर्घायु हों इसलिए भी वह वट वृक्ष की पूजा करती है।
पुराणों के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा ,विष्णु व महेश तीनों का वास है।मान्यता है कि इसके नीचे बैठकर पूजा करने,कथा सुनने और व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
दार्शनिक दृष्टि से वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध का प्रतीक है।भगवान बुद्ध को इसी वट वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।इसलिये वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिये पूजना इस व्रत का मुख्य अंग बना।
इसके अलावे आयुर्वेद के क्षेत्र मेंभी वट के रेशों का दातुन बनाकर मुँह धोने से दाँत तथा मसूड़े संबंधी बीमारियों से मुक्ति
होती है।बरगद के वृक्ष के पेड़ जल्द नष्ट न होने के कारण इसे
अक्षय वट भी कहा जाता है।साथ ही बरगद का दूध चोट,मोच और सूजन पर लगाने से लाभदायक होता है।
दुर्भाग्य की बात है कि विकास बाबा को खुश करने के लिये तथा सड़कों के चौड़ीकरण के नाम परअन्य वृक्षों के साथ-साथ लोग वट तथा पीपल के वृक्षों को भी काट देते हैं।बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि लोग वट तथा पीपल के वृक्ष को लगाना नहीं चाहते हैं,जो कि लोगों के नासमझी का परिचायक है।
अंत में मेरा मानना है कि वट सावित्री व्रत के शुभ अवसर पर आप सबों से अनुरोध है कि विश्व पर्यावरण को सुरक्षित रखने तथा आने वाले समय में महिलाओं को वट सावित्री की पूजा करने में कष्ट का सामना न करना।पड़े,वट, पीपल तथा अन्य वृक्षों को लगा कर आने वाले कल को सुन्दर , सुखमय बनाने की बहुत-बहुत
शुभकामनायें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
"विनोद"भलसुंधिया,गोड्डा
(झारखंड)

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