प्राचीन काल से ही भारत में गुरु का एक अलग स्थान है। गुरु-शिष्य परंपरा हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। इस धरती पर हमारे माता-पिता इस दुनिया में लाते हैं और वे हमारे प्रथम गुरु होते हैं, लेकिन शिक्षक हमें जीने का सलीका सिखाते हैं दुनिया का नया दृष्टिकोण हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। हमारे जीवन के सही शिल्पकार होते हैं हमारे शिक्षक। शिक्षण को दुनिया का सबसे महान पेशा माना गया है ,शिक्षक और शिक्षण की तुलना किसी अन्य पेशा से करना मुमकिन नहीं। शिक्षक वे होते हैं जो बच्चों की मानसिक स्थिति को माता-पिता से भी ज्यादा समझते हैं। अक्सर हम [ शिक्षक ] वर्ग में इस बात की चर्चा बच्चों के समक्ष करते हैँ कि तुम्हारी सफ़लता पर अगर कोई निःस्वार्थ गर्व अगर कोई महसूस करता है तो वह है शिक्षक। आज वर्तमान समय में भी शिक्षक आधुनिकीकरण के साथ बच्चों का शिक्षण का कार्य कर रहे हैं नित्य नये-नये नवाचार द्वारा बच्चों की बौध्दिक क्षमता, मानसिक विकास और नैतिक मूल्यों का विकास का कार्य किया जा रहा है। शिक्षक दिवस का भारत में अपना एक इतिहास रहा है गुरु का स्थान हमारे देश में सदैव ऊंचा रहा है, लेकिन आधुनिक भारत में अब हम प्रत्येक वर्ष 05 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं और जिनके सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है उस शख्सियत [ महापुरुष ] का नाम है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन इनका जन्म 05 सितंबर 1888 को
तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के चित्तूर जिले के तिरुत्तनी गांव के एक तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह गांव 1960 तक आंध्र प्रदेश में था, लेकिन वर्तमान में तमिलनाडु में है। ऐसा कहा जाता है कि राधाकृष्णन के पुरखे सर्वपल्ली नामक गांव में रहते थे। उन्हें अपने गांव से बहुत लगाव था। इसलिए अपने नाम के पहले वे सर्वपल्ली लगाते थे। डॉ. राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति से हुई। इसके बाद उनकी शिक्षा वेल्लूर और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से हुई। उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा पास की। वे बचपन से ही मेधावी प्रतिभा के धनी इंसान थे। उन्होंने बाइबिल के महत्वूर्ण अंश भी याद कर लिये थे। राधाकृष्णन ने 1905 में कला संकाय की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद दर्शन शास्त्र में एम.ए करने के बाद उन्हें 1918 में मैसूर महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र का सहायक प्रध्यापक नियुक्त किया गया। हालांकि, बाद में वे उसी कॉलेज में प्राध्यापक भी बने। इन्होंने प्राध्यापक से सफर शुरू कर भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक पहुंचे लेकिन शिक्षा और शिक्षण की महता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन्होंने हमेशा शिक्षण कार्य को अपनी पहली पसंद माना। आज वर्तमान दौर में शिक्षा और शिक्षक अपने दायित्व और कार्यों को लेकर एक प्रश्नचिन्ह भूमिका में नजर आते हैं जो एक उज्जवल भविष्य की संकल्पना हेतु एक शुभ संकेत नहीं है। शिक्षक दिवस या जयंती सिर्फ मनाने की चीज़ नहीं होती है बल्कि संकल्प का दिन होता है शिक्षक ये संकल्प लें कि हम अपने मह्त्व को कम नहीं होने देंगे और सरकार भी ये संकल्प लें कि हम शिक्षक के मह्त्व को कम नहीं होने देंगे शिक्षक दिवस पर ये शिक्षकों का सबसे बड़ा सम्मान होगा।
शिक्षक दिवस की असीम शुभकामनाओं के साथ!
राकेश कुमार
[ शारीरिक शिक्षक ]
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर [ पटना ]

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