रघुवीर नारायण जी का जन्म सारण जिले के दहियावां में30 अक्टूबर1884 को हुआ था।इनके पिता का नाम जगदेव नारायण था।इनकी प्रारम्भिक शिक्षा जिला स्कूल छपरा में तथा अंग्रेजी में प्रतिष्ठा की शिक्षा पटना कॉलेज में हुई।अंग्रेजी में लिखने वाले श्री रघुवीर नारायण की पहचान खड़ी बोली के पहले बिहारी कवि के रूप में बनी।"बटोहिया'' बिहार के प्रथम राष्ट्रगीत का दर्जा रखता है।रघुवीर नारायण ने यह गीत 1910 ईस्वी में लिखा।1912 ई०के बिहारी छात्र-सम्मेलन के मोतिहारी अधिवेशन में बिहार केशरी डॉ०श्री कृष्ण सिंह के भाई गोपीकृष्ण सिंह ने इसे अपने ओजस्वी स्वर में गाया था।
बिहार प्रवास के दौरान कई कंठों से बटोहिया का सस्वर पाठ सुन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी बोल पड़े थे--"अरे!यह तो भोजपुरी का वंदे मातरम है।''इस गीत की प्रशंसा पण्डित रामावतार शर्मा,डॉ०राजेन्द्र प्रसाद, सर यदुनाथ सरकार, पण्डित ईश्वरी प्रसाद शर्मा,भवानी दयाल संन्यासी, आचार्य शिवपूजन सहाय, डॉ०उदय नारायण तिवारी सहित तत्कालीन सभी राष्ट्रकवि यों ने की।सन1905 में रघुवीर बाबू ने"ए टेल ऑफ बिहार''की रचना की इंग्लैंड के राष्ट्रकवि अल्फ्रेड ऑस्टिन ने1906में पत्र लिखा और उनकी तुलना अंग्रेजी कवियों से की।पत्रिका"लक्ष्मी'' के अगस्त1916 के अंक में कवि शिवपूजन सहाय ने लिखा था,"बटोहिया कविता का प्रचार बिहार के घर-घर में है।शहर और देहात के अनपढ़ लड़के इसे गली -गली में गाते फिरते हैं, पढ़े-लिखे का कहना ही क्या है?"यदि एक ही गीत लिखकर बाबू रघुवीर नारायण अपनी प्रतिभाशाली लेखनी को रख देते तो भी उनका नाम अजर और अमर बना रहता।
प्रस्तुत है -"बटोहिया गीत''
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सुंदर सुभूमि भैया भारत के देशवा से,
मोरे प्राण बसे हिमखोह रे बटोहिया ।
एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से,
तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया।
जाऊ जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखि आऊ जहवाँ कुहुकि कोइली बोले रे,बटोहिया।
पवन सुगंधा मन अगर चन्दनवा से
कामिनी विरह राग गावे रे बटोहिया ।
विपिन अगम धन सघन बगन बीचे,
चंपक कुसुम रंग देवे रे, बटोहिया।
द्रुम वट पीपल कदंब निम्ब आमवृक्ष,
केतकी गुलाब फूल फूले रे,बटोहिया।
तोता तोती बोले राम बोले भेंगरज वा से,
पपिहा के पी पी जिया साले रे, बटोहिया।
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से,
मोरे प्राण बसे गंगधार रे बटोहिया।
गंगा रे जमुनवां के झगमग पनिया से,सरजू झमकि लहरावे रे,बटोहिया।
ब्रह्मपुत्र पंचनद घहरत निसि दिन,
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे,बटोहिया।
ऊपर अनेक नदी उमड़ि, घुमड़ि नाचे,
जुगन के जड़ता भगावे रे बटोहिया।
आगरा, प्रयाग,काशी, दिल्ली,
कलकत्ता से,
मोरे प्राण बसे सरजू तीर रे बटोहिया।
जाऊ-जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखि आऊ,
जहाँ ऋषि चारों वेद गावे रे बटोहिया।
सीता के विमल जस, राम जस, कृष्ण जस,
मोर बाप दादा के कहानी रे, बटोहिया।
व्यास वाल्मीकि, ऋषि गौतम, कपिलदेव,
सुतल अमर के जगावे रे बटोहिया।
नानक, कबीरदास, शंकर, श्रीरामकृष्ण,
अलख के गतिया बतावे रे, बटोहिया।
जाऊ जाऊ भैया रे, बटोही हिंद देखि आऊ,
जहाँ सुख झूले, धान खेत रे बटोहिया।
बुद्धदेव, पृथु वीर, अरजुन शिवाजी के,
फिरि फिरि हिय सुधि, आवे रे बटोहिया।
अपर प्रदेश देश सुभग सुन्दर वेश मोरे हिंद जगके निचोड़ रे बटोहिया।
सुंदर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेहि,
जन"रघुवीर' सिर नावे रे, बटोहिया।।
बटोहिया''के बारे में राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर ने कहा था--बाबू रघुवीर नारायण बिहार में राष्ट्रीयता के आदिचारण और जागरण के अग्रदूत थे।''
1970 तक 10वीं और 11 वी की बिहार टेक्स्ट बुक के हिन्दी काव्य की पुस्तक के आवरण पर यह कविता अवश्य होती थी।सिर्फ बिहार या भारत ही नहीं, मॉरीशस, त्रिनिदाद, फिजी, गुयाना इत्यादि जगहों तक जहाँ भी भोजपुरी जानी जाती है,वहाँ इसकी लोकप्रियता थी।
बटोहिया'उत्तर भारत के कंठ-कंठ का श्रृंगार बना।आज भी यह गीत हमारे मन-प्राणों को स्पंदित करता है।बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा रघुवीर बाबू को सम्मानित किया गया।इनका निधन पहली जनवरी 1955ई०को हो गया।उस पुण्यात्मा को मेरा शत-शत नमन।।
प्रेषक--हर्ष नारायण दास
प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय घीवहा।
फारबिसगंज(अररिया)

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