योग जीवन की पावन संजीवनी - देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

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Friday 21 June 2024

योग जीवन की पावन संजीवनी - देव कांत मिश्र 'दिव्य'


योग सौम्य संजीवनी, नित्य पीजिए आप।

देह बुद्धि को स्वस्थ रख, छोड़ें अपनी छाप।।

       सचमुच, योग का हमारे जीवन में अहम् स्थान है। अपने को स्वस्थ रखने का एक सशक्त व बेहतर माध्यम है। इसलिए तो कहा गया है " शरीर रूपी मंदिर की आराधना के लिए योग एक अच्छा माध्यम है।" यह शरीर, ऊर्जा, सांस, भावनाओं तथा बोध के जरिये आध्यात्मिक प्रक्रिया हेतु एक सुगम मार्ग है। एक बात दीगर है जब हमारा तन स्वस्थ रहता है तब हमारा मन सुंदर और मजबूत हो जाता है। फलस्वरूप जीवन भी सुंदर हो जाता है। बिना शरीर के स्वस्थ हुए हम सुंदर जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मेरी राय के अनुसार - पहले तन फिर मन और फिर जीवन-चिंतन। यदि तन रोगग्रसित है तो हमें किसी भी कार्य में मन नहीं लगेगा चाहे वह खेल, पढ़ाई या कोई अन्य क्षेत्र ही क्यों न हो।

यहाँ तक कि भोजन का स्वाद भी अरुचिकर लगेगा। अतः इस जीवन में योग अनिवार्य ही नहीं अपरिहार्य है। वाकई योग शब्द संस्कृत के युज् धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है - मेल या जुड़ाव। यानि तन का मन से मेल। वस्तुत: दोनों का यह मिलन व्यक्ति को सामाजिक वातावरण में मौजूद नकारात्मक विचारों के जीवाणुओं से संरक्षित करते हुए अंततः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है -" योग: कर्मसु कौशलम्" अर्थात् योग से कर्मों की कुशलता आती है। यों तो गणितशास्त्र में संख्याओं का जोड़ ही योग है। ज्योतिष विद्या के अनुसार - ग्रहों की विभिन्न स्थितियों को योग कहते हैं। परन्तु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से तन मन और आत्मा का मिलन ही योग है। सच में, यह जीवन को अच्छी तरह से व्यवस्थित करने की एक कला है। जीवन प्रकिया की छानबीन है। जीवन का एक संयम व संतुलन है। यह एक अमूल्य धरोहर है। यह हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए बना है।

योग के उद्देश्य: यों तो योग के अनेक उद्देश्य हैं लेकिन मेरे विचार से इसके सबसे दो मुख्योद्देश्य इस प्रकार हैं:

* तनाव की स्थिति या विषम परिस्थिति में नई मुस्कान बनाए रखना तथा मन को संयमित रखना।

* तन को रोगमुक्त कर उत्तम क्षमता का विकास।

योग से लाभ: हमारे जीवन में योग के अनेक लाभ हैं जो इस प्रकार हैं: * योग हमें तनावमुक्त जीवन जीने की तकनीक प्रदान करता है।

* यह प्रत्येक परिस्थिति में हमें कुशलता से कर्म करना सिखाता है।

* यह हमें क्रियाशील बनाते हुए त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का विकास करता है।

* यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।

* यह हमारे भीतर धैर्य व कुशलता लाता है।

* यह एक ऐसा उपकरण है जो कम समय में हमें अधिकतम ऊर्जा प्रदान कर सकता है।

* योग विशेषज्ञों के अनुसार - नियमित योग करने से गायकों की आवाज ठोस व मजबूत होती है। खिलाड़ियों का मन मजबूत होता है। छात्रों की स्मरण-शक्ति अच्छी होती है। यही कारण है कि प्रतिभाशाली छात्र, खिलाड़ी व गायक इससे जुड़े रहते हैं।

* यह हमारी चेतना के स्तर को भी ऊँचा करता है।

* यह व्यक्ति को जीवन में अधिक जिम्मेदार बनाने में भी सहायक होता है।

योग के अंग: इसके आठ अंग हैं : यम- शपथ लेना, नियम- आत्मानुशासन, आसन- मुद्रा, प्राणायाम - साँसों पर नियंत्रण, प्रत्याहार - इन्द्रियों पर नियंत्रण, धारणा - एकाग्रता, ध्यान - चित्त की एकाग्रता या स्वरूप चिंतन, समाधि- बंधनों से मुक्ति या परमात्मा से मिलन।

       सच में, योग हमारे जीवन में एक रामबाण औषधि की तरह है। एक संजीवनी है। इसे यदि हम औषधि की तरह नियमित सेवन करेंगे तो हमें यह नियमित ऊर्जा, उत्साह और स्फूर्ति प्रदान 

करेगी। साथ ही हमें योग को मन से अपनाकर तथा इसे अच्छी तरह सीखकर कम-से-कम दस लोगों को प्रशिक्षित करनी पड़ेगी तभी हम कह सकेंगे कि हमने मानव हित कार्य किया है। हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी "मानवता के लिए योग" की थीम को समर्पित कर योग की महत्ता को चरितार्थ कर रहे हैं। यह एक स्वागतयोग्य व सराहनीय कार्य है। विगत वर्ष कोरोना जैसी महामारी के दौर में जब मनुष्य को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की विवशता आई और प्राणवायु संकट ने साँसों पर पहरा लगा दिया तो अनुलोम- विलोम यानि योग की सार्थकता समझ में आई। अतः हमें अपने जीवन में योग को जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। इसे सच्चा दोस्त मानकर अपने जीवन में अपनाना चाहिए क्योंकि संकट की घड़ी में यही साथ देता है। यह सारे रोगों को दूर करने में सहायक है। आएँ ईश्वर का स्मरण कर योग से जुड़ें और अनंत खुशियाँ पाएँ।

देखो करके योग को, मिट जायें सब रोग।

अद्भुत ताकत गुण छुपे, कहते हैं सब लोग।।



देव कांत मिश्र 'दिव्य' मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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