Saturday, 18 April 2020
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शिक्षा और संस्कार हमारे जीवन का आधार-गुंजन कुमारी
शिक्षा और संस्कार हमारे जीवन का आधार
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शिक्षा अगर स्तम्भ है तो नींव है संस्कार।
सद्गुण सुख की खान है जिसपर टिका संसार।।
शिक्षा और संस्कार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। शिक्षा मनुष्य के जीवन का अनमोल उपहार है जो व्यक्ति के जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल देती है और संस्कार जीवन का सार है जिसके माध्यम से मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण और विकास होता है। जब मनुष्य में शिक्षा और संस्कार दोनों का विकास होगा तभी वह परिवार, समाज और देश के विकास की ओर अग्रसर होगा। शिक्षा का तात्पर्य सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि चारित्रिक ज्ञान भी होता है जो आज के इस भागदौड़ वाली जिंदगी में हम भूल चुके हैं। हम अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाकर संतुष्ट हो जातें हैं परन्तु ये हमारी लापरवाही है जो हमारे बच्चों को गुमराह कर रही है। आज के अधिकांश बच्चे संभ्रांत तो हैं पर विवेकशील नहीं।
समाज के बदलाव के लिए व्यक्ति में अच्छे गुणों की आवश्यकता होती है और उसकी नींव हमें हमारे बच्चों के बाल्यावस्था में ही रखनी पड़ती है। बच्चों को तीन गुण आत्मसात करवाने की आवश्यकता है। ज्ञान, कर्म और श्रध्दा। इन्हीं तीन गुणों से उनके जीवन में बदलाव आएगा और वे परिवार, समाज, और देश सेवा में आगे बढ़ेगा। आज जो राष्ट्रव्यापी अनैतिकवाद प्रदूषण हमारे समाज और देश को दूषित कर रहा है उसका कारण सिर्फ बच्चों में संस्कार और शिक्षा का अभाव है जिसका दोषी हम हैं। हम अपनी झूठी दिखावे के लिए अपने भारतीय अमूल्य संस्कारों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। पाश्चात्य सभ्यता का आँख मूंद कर अनुसरण करना ही हमें और हमारे बच्चों को पथभ्रष्ट कर रहा है।
शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सुंदर चरित्र है। शिक्षा मनुष्य के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास करता है। बच्चों में सांसारिक और आध्यात्मिक शिक्षा दोनों की नितांत आवश्यता है क्योंकि शिक्षा हमें जीविका देती है और संस्कार जीवन को मूल्यवान बनाती है। शिक्षा में ही संस्कार का समावेश है। अगर हम अपने बच्चों में भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्पराएँ, भाईचारा, एकता आदि का बीजारोपण करतें हैं तो उसमें खुद व खुद के संस्कार आ जाते हैं जिसकी जिम्मेदारी माता-पिता, परिवार और शिक्षक की होती है।
बचपन में परिवार के बाद विशेष रूप से बच्चों को संस्कार विद्यालय में सिखाए जाते हैं। अतः शिक्षक का कर्तव्य बनता है कि वे कक्षा तथा खेल के मैदान में ऐसा वातावरण उपस्थित करें जिससे बच्चों में शिक्षा और संस्कार दोनों का विकास हो। विद्यालय स्तर पर ऐसी गतिविधि का आयोजन होना चाहिए जिससे बच्चों में अनुशासन, आत्मसंयम, उत्तरदायित्व, आज्ञाकारिता विनयशीलता, सहानुभूति, सहयोग, प्रतिस्पर्धा आदि गुणों का विकास हो सके। अधिकांशतः सरकारी स्कूलों में ग्रामीण परिवेश के बच्चे पढ़ने आते हैं जो मजदूर वर्ग के होते हैं। उनके माता-पिता उतने संभ्रांत नहीं होते जिसके कारण वे अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन कर सके। इसलिए सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता है। बच्चे देश के भविष्य हैं इन्हें कुशल नागरिक बनाना हमारा परम कर्तव्य है।
व्यक्तिगत रूप से मैं निवेदन करना चाहूँगी कि सरकारी स्कूलों में भी वर्ग I से V तक के बच्चों के पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा की पुस्तक का भी सामंजन हो ताकि शिक्षक उन्हें नियमित रूप से नैतिक ज्ञान की जानकारी दे सकें। हम चेतना-सत्र के दौरान अनेक क्रियाकलाप करते ही हैं, अगर उसी दौरान नियमित रूप से बच्चों से इन छोटी-छोटी बातों का वाचन भी करवा देते हैं तो वे कुछ संस्कार जरूर सीखेंगे। जैसे--
सदा सत्य बोलें, दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहें , माता-पिता, शिक्षक और बड़ों का सम्मान करें, ईश्वर पर विश्वास रखें, सहनशील बनें, कर्तव्यनिष्ठ बनें, सबों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करें इत्यादि।
गुंजन कुमारी
म. वि. मिर्जाचक
बरियारपुर, मुंगेर
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वास्तव में चरित्र निर्माण शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है परंतु दुर्भाग्यवश आज के दौर में यह जीविकोपार्जन तक ही सीमित होकर रह गया है। हम सभी शिक्षकों को इस ओर ध्यान देना चाहिए और छात्रों को विषय ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कारों से जोड़ने के लिए भी सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए। अच्छे एवं उपयोगी आलेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं....
ReplyDeleteधन्यवाद ।
DeleteTy so much mam
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ReplyDeleteजीवनोपयोगी!
ReplyDeleteविजय सिंह
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।
Deleteवास्तव में नैतिक शिक्षा हमें यह सिखाती है की हम शिक्षा प्राप्त कर क्या करना चाहते हैं अर्थ की प्राप्ति के लिए या सुंदर जीवन और जग को सुंदर बनाने के लिए। हम बच्चों शिक्षकों एवं अभिभावकों को कभी यह कहते हुए नहीं देखा की पढ़ाई का उद्देश्य एक श्रेष्ठ किसान बनना है। पढ़ाई का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अर्थ उपार्जन है । ये एक महत्वपूर्ण कारक है नैतिक शिक्षा के पतन का । मैं कौन हूं ? ,मेरा जन्म क्यों हुआ है ? मैं कबतक हूं ? इस प्रकार के प्रश्न बच्चों के बीच रखनी चाहिए ...... शिक्षा के इस सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू को छूने के लिए बधाई ।
ReplyDelete🙏🙏
Deleteशिक्षा संबंधी यह आलेख सच में ज्ञानवर्धक व जीवनोपयोगी है। शिक्षा में नैतिक संबंधी बातों को जोड़कर इसमें आपने चार चाँद लगा दिया है।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
ReplyDeleteAapke sabad bohot achhe hai 🙏🏻🙏🏻
DeleteGood 😊
ReplyDeleteआप की बातो से पूर्ण सहमत हूं इसमें सरकार को पहल करने की जरूरत है।
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