चेतना सत्र एक संपूर्ण शिक्षण शास्त्रीय प्रक्रिया है - मो. ज़ाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Thursday 29 August 2024

चेतना सत्र एक संपूर्ण शिक्षण शास्त्रीय प्रक्रिया है - मो. ज़ाहिद हुसैन


  किसी भी विद्यालय में हो रहे शिक्षण शास्त्रीय प्रक्रिया उसे अकादमिक रूप से उत्कृष्ट बनाती है। विद्यालय केवल प्रांगण, भवन और वर्ग-कक्ष का नाम नहीं है बल्कि वह शिक्षक और शिक्षार्थियों के बीच हो रहे अंतःक्रियात्मक गतिविधियों का केंद्र है। पूरा विद्यालय परिसर ही शिक्षण प्रक्रियाओं का प्रयोगशाला होता है। विद्यालय में होने वाले प्रत्येक क्रियाकलाप शिक्षण से जुड़े होते हैं। शिक्षक विद्यालय में बच्चों को आदेश- निर्देश तथा समाधान देते हुए दिखाई पड़ते हैं। विद्यालय के समय-सारणी के अनुसार सबसे पहले विद्यालय की साफ-सफाई और चेतना सत्र का दौर शुरू होता है जो अहम है क्योंकि चेतना सत्र बच्चों में भागीदारी, नियमितता, समयबद्धता, सजगता, जिम्मेवारी, अपने कार्य के प्रति कटिबद्धता एवं प्रवीणता, वाकपटुता, अनुशासन, नेतृत्व कौशल और प्रेरणा भरने का कार्य करती है। चेतना सत्र बच्चों के झिझक तोड़ने का काम रामबाण की तरह करती है। बच्चे शिक्षकों से बेहिचक संवाद करते हैं, ये है चेतना सत्र की प्रक्रियाओं की ताकत। इससे बच्चों में शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक विकास होता है। चेतना सत्र में आम तौर से साफ-सफाई के बाद प्रार्थना, बिहार राज्य प्रार्थना, बिहार राज्य गीत, अभियान गीत, प्रेरणा गीत, भारतीय संविधान की प्रस्तावना, राष्ट्रीय गीत एवं राष्ट्रगान जन-गण-मन गण मन आदि का कार्यक्रम किए जाते हैं। मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य पर भी बच्चों के द्वारा बातचीत की जाती है। सामान्य तौर से विभिन्न तरह के क्रियाकलाप के बाद अंत में राष्ट्रगान गाया जाता है, उसके बाद बच्चे कतारवद्ध होकर बिल्कुल अनुशासन में वर्ग-कक्ष में जाते हैं। आज का विचार, समाचार वाचन, बापू की पाती, बच्चों द्वारा किसी विषय पर संक्षिप्त भाषण, शब्द ज्ञान, दिवस ज्ञान, तर्क ज्ञान, प्रेरक प्रसंग, प्रेरक कहानी, हास्य-व्यंग, पीटी या योगाभ्यास और थोड़ा सामान्य ज्ञान-विज्ञान,विलोम शब्द एवं किसी शिक्षक के द्वारा महत्वपूर्ण जानकारी दिया जाना तथा प्रधानाध्यापक द्वारा अभिभाषण एवं दिशा-निर्देश, हेल्थ चेकअप, नाखून और बाल चेक करना कि वे बेतरतीब बढ़े हुए तो नहीं है, ये सभी चेतना सत्र में मुख्य विचार-विमर्श के बिंदु होते हैं।यूनिफॉर्म देखना कि बच्चे विद्यालय प्रॉपर ड्रेस में आ रहे हैं या नहीं। विद्यालय को सुचारू रूप से चलाने तथा सरकारी डॉक्यूमेंटेशन हेतु बच्चों को निर्देश दिया जाना भी प्रमुख बिंदु है। यह अलग बात है कि प्रत्येक दिन प्रत्येक क्रियाकलाप किया जाना संभव नहीं है लेकिन उनमें निरंतर बदलाव करते हुए महत्वपूर्ण एवं फलदायक क्रियाकलाप करवाने के लिए आधा-पौन घंटा तो चाहिए ही। ऐसी-ऐसी प्रभावकारी गतिविधियाँ 15 मिनट में तो कतई संभव नहीं है, जैसा कि विभागीय आदेश है:- प्रातः 9:00 बजे से 9:15 तक चेतना सत्र करवाना। हालाँकि होना तो यह चाहिए कि विद्यालय के किसी भी शिक्षण शास्त्रीय प्रक्रिया में आला अफसरान का दख़ल न हो। विद्यालय का क्या रुटीन होगा? किस समय मध्यांतर (टिफिन) होगा? किस घंटी में किस विषय की पढ़ाई होगी? कौन किस विषय को पढ़ाएगा? इस तरह की सारी जवाबदेही विद्यालय प्रशासन पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि समय-सारणी बनाना एवं घंटी के अनुरूप विषयों का शिक्षकों में बँटवारा करना एक शिक्षण शास्त्रीय दृष्टिकोण (Pedagogical Vision) से ही संभव है जो शिक्षकों के पास होता है। शिक्षक एक मृत पर्याय प्राणी का नाम नहीं है जिसे जब जो चाहे जिधर डाल दे। शिक्षक एक ऐसे संवेदनशील प्राणी का नाम है जो बच्चों और विद्यालय के प्रति समर्पित होते हैं। सब की ख़बर और सब पर नज़र रखना एक शिक्षक का काम है। विद्यालय में और विद्यालय के बाहर, वर्ग-कक्ष हो या फिर बाजार एवं सड़क, जहाँ भी शिक्षक खड़े हैं, वे शिक्षक हैं; उनके आचरण को लोग देख रहे होते हैं जिसे वे आदर्श मानते हैं। अतः निरीक्षण कर्ताओं को भी चाहिए कि शिक्षकों की मर्यादा का ख्याल रखें।

    बच्चों के ज्ञानवर्धन के लिए चेतना सत्र में दल शिक्षण (Team Teaching) की व्यवस्था की जा सकती है। कोई विशेषज्ञ यथा; डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पत्रकार, व्याख्याता, समाज सेवी, शिल्पकार, प्रोजेक्ट विशेषज्ञ, योग गुरु, मोटीवेटर या शिक्षाविद आदि को मेहमान (Guest) शिक्षक के रूप में बच्चों के बीच बुलाया जाना चाहिए और अधिगम का स्थानांतरण किया जाना चाहिए। इससे विज्ञान, सामाजिक विज्ञान एवं नैतिक शास्त्र की समझ बच्चों में ठीक हो जाएगी। यह एक धाँसू शैक्षणिक गतिविधि होगी क्योंकि विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञ जो बच्चों को शिक्षा देंगे, वह जीवन भर काम आएगी तथा वह बच्चों में चेतना भरने का काम करेगी। बच्चे जीवन शिक्षा के प्रति प्रेरित एवं प्रशिक्षित होंगे क्योंकि आज की शिक्षा में नैतिक बल की नितांत आवश्यकता है। बच्चे आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या नौकरशाह तो बन जाते हैं लेकिन इंसान नहीं बन पाते। आज के बच्चे जो कल के हिंदुस्तान हैं, वे जिम्मेदार पदों पर जाने के बाद जन सरोकारों से वास्ता रख सकें, शिक्षा का यह भी उद्देश्य होना चाहिए।

    चेतना सत्र में प्रार्थना प्रतिदिन बदल बदल कर गवाया जाना चाहिए। चेतना सत्र की कार्यवाही स्थानीय एवं आंचलिक भाषा में भी की जानी चाहिए। इस बीच बच्चों की मौलिक रचना भी पेश की जानी चाहिए। मौलिक वाचन एवं मौलिक लेखन के लिए बच्चों को हमेशा प्रेरित किया जाना चाहिए। ये सब करने से चेतना सत्र पूर्णत: शैक्षिक एवं शैक्षणिक हो जाएगी जो भाषा को समृद्ध करेगी।

भाषा कौशल के विकास हेतु चेतना सत्र एक प्रबल तरकीब है। इस दौरान प्रहसन एवं नाटक के द्वारा किसी भी जानकारी को बच्चों में आसानी से आत्मसात कराया जा सकता है। कार्य विभाजन हेतु शिक्षकों के द्वारा बच्चों का समूह निर्माण भी चेतना सत्र के दौरान किया जाता है। विभिन्न समूहों के नाम भी यथा; सरोजिनी नायडू, महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस और महारानी लक्ष्मीबाई आदि रखा जाता है ताकि विद्यालय कार्य योजना में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। यदि चेतना सत्र बेहतर होगा तो दिन भर का क्रियाकलाप भी बेहतर होगा क्योंकि चेतना सत्र शिक्षकों एवं बच्चों में स्फूर्ति लाने का कार्य करती है। जो भी कार्य होगा, उमंग-तरंग से होगा। कोई भी कार्य बोझिल महसूस नहीं होगा; एक आनंद का वातावरण होगा और सीखने का उचित माहौल बना रहेगा। सीखना आनंददायी माहौल में बेहतर होता है। बिना आनंद के सीखना टिकाऊ नहीं होता।



मो. ज़ाहिद हुसैन 

प्रधानाध्यापक उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलहविगहा चंडी, नालंदा

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