भाषा और विचार- रंजीत रविदास(शिक्षक) - Teachers of Bihar

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Monday 28 January 2019

भाषा और विचार- रंजीत रविदास(शिक्षक)

भाषा और विचार


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जब कभी भाषा की बात होती है ,तो यह बात हमारे सामने आती है कि "भाषा संप्रेषण का माध्यम है।" केवल इतना ही मान लेना भाषा के महत्त्व को कम करके देखना है। जब हम गहराई से सोचते है ,तो पाते है कि मनुष्य विचारों का पुंज है। जिसका आधार भाषा होती है। भाषा हमारे सामाजिक व्यक्तित्व को गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कभी बेहद शांत और सहजता से तो कभी विचारों में उथल पुथल मचाकर।

                          मै लगभग दस वर्षों से शिक्षण कार्य कर रहा हूँ। शुरू के दिनों में प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण के दौरान मैंने किताबी ज्ञान तक सीमित रहकर जैसे वर्णमाला रटाकर ,प्रश्न उत्तरों को रटाकर कर कार्य किया। लेकिन इधर ही प्रशिक्षण के दौरान अध्ययन करके मेरा नजरिया बदला और मैंने बच्चों को समझने तथा उनकी रुचियों और समस्याओं को जानने का प्रयास किया। भले ही बच्चे रटंत विधा से पढना लिखना सीखते है,परन्तु ऐसे बच्चों की संख्या बहुत कम होती है। भाषा की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने पढ़ाने के तरीके को बदला। बच्चों के साथ बातचीत करके अभिव्यक्ति का विकास और उनके पूर्व ज्ञान को विषय से जोड़ते हुए पूर्ण अवसर देकर भयमुक्त वातावरण बनाने का प्रयास किया।
                        बच्चे जब पहली बार विद्यालय आते है तो वह अपने घर की भाषा में बहुत कुछ सीख कर आते हैं । अगर हम उस बच्चे पर ध्यान देते है ,तो पाते है कि वह बच्चा वाक्य बना लेता है,वह तर्क गढ़ लेता है,वह कल्पना कर लेता है और वह बहाने बना लेता है। इन सारे कौशलों को वह अपने परिवेश में रहते हुए परिस्थितियों व समाज से अन्तः क्रिया करके सीखता है। किसी भी अवधारणा को बनाने में भाषा एक महत्वपूर्ण आधार है। भाषा की इसी महत्ता को देखते हुए हमारे सामने यह सवाल आता है कि बच्चा इतना कुछ जनता ही है तो हमें भाषा में क्या क्या सिखाना है?
                    वैसे  बच्चों को भाषा सिखाने के लिए कई बिन्दुएँ है। जैसे  बच्चों में अपने अनुभवों  व विचारों को व्यक्त करने की क्षमता विकसित करना, दूसरों की बातें रुचिपूर्वक सुनना और  उन सुनी हुई बातों पर विचार व्यक्त करने की क्षमता विकसित करना, चित्र देख कर अनुमान लगाना,कल्पना शक्ति का विकास करना व बेझिझक विचारों को साझा करना, कहानी सुनना ,समझना , कहानी के संबंध में अपने विचार व्यक्त करना इत्यादि।
                             शिक्षा शास्त्री जेम्स ब्रिटन ने बच्चों के जीवन में भाषा की तीन भूमिकाएं गिनाई है। पहली रोजाना के जीवन में भागीदारी। दूसरी जीवन के दर्शक के रूप में और तीसरी जीवन के अनुभवों से उत्पन्न भावों और विचारों की अभिव्यक्ति।
                        अंतत: यह कहना चाहेंगे कि जब भी हम भाषा शिक्षण आरम्भ करते है तो पूर्व में तय शब्दों पर सिमित न रहकर ,बच्चों के परिवेश से जुडी बातों ,वस्तुओं आदि को प्राथमिकता देंगे तो उन शब्दों से बच्चों का जुडाव अधिक होगा।

रंजीत रविदास,लखीसराय
प्राथमिक विद्यालय दासटोला, रामचंद्रपुर
संकुल-रामचंद्रपुर
प्रखंड-पिपरिया
जिला-लखिसराय

2 comments:

  1. बहुत अच्छा प्रयास रंजित जी। वैसे भी आपका प्रयास बहुत ही सराहनीय है।
    Comment by:-Ramvilash kumar
    M.S.Mohanpur, pipariya

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  2. आपके विचारों से अवगत होकर बड़ी प्रसन्नता हुई।शिक्षण-कौशल में गुणात्मक परिवर्तन प्राप्त कर आपने प्रशिक्षण के उद्देश्य को पूर्ण किया है। आपका प्रयास सराहनीय है।मेरी शुभकामनाएँ सदैव आपके साथ है।

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