गर्मी की छुट्टी...जैसे अरमानों का पंख लगना-पुनीता कुमारी - Teachers of Bihar

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Monday 10 June 2019

गर्मी की छुट्टी...जैसे अरमानों का पंख लगना-पुनीता कुमारी

गर्मी की छुट्टी...जैसे अरमानों का पंख लगना.....!!
तब छुट्टियों का मतलब नानी के घर जाना तो होता ही था साथ में भरी दोपहरी वो सारे काम करना जिन्हें करने की सख्त मनाही थी...!!
आम का बागीचों में फ़ौजदारी करने में भी हम सिद्ध हस्त हुआ करते थे जो बच्चा पेंड पर चढ़ने की कला से नवाज़ा गया था वो किसी सुपरस्टार की से कम न था जो दया भाव से एकाध आम-अमरूद दे देता था... लेकिन दुर्भाग्यवश जो पेंड पर चढ़ने के अभ्यस्त नहीं थे.....!!
वो आम से ज़्यादा ईंट- पत्थर बीनने में लगे रहते थे जिसे चला कर अधिक से अधिक आम तोड़ा जा सके।इस चक्कर में न जाने कितनी चोटें लगीं कितने ही सर फूटे....!!  फिर घर पर दोबारा और कूंटे गए
ईंट पत्थरों के अभाव में हम अपने- अपने चप्पलों से आम पर सीधा निशाना साधते थेपर अक्सर हमारी चप्पलें पेंड पर अटक जाती थीं फिर क्या एक चप्पल को उतारने की जद्दोजहद दूसरी चप्पल को भी अपने पास बुला लेती थी फिर तौबा भरी दोपहरी में सोते हुए घर वाले जूते से मारकर चप्पल उतारते थे....!!
कभी तो किसी के बन रहे आधे-अधूरे मकानों में लुका-छुपी खेलते थे, अंधेरी कोठरियों में वो छुपा-छुपी कभी कभी भारी पड़ जाती थी जब मच्छर,छींटे,कीड़े हमें अपना शिकार बना के धन्य हो जाते थे.....!!
और वो जो भरी दोपहरी में पेंड की छाँव तले मिट्टी के खिलौने वाले बर्तनों में अपने-अपने घर से चोरी कर के लाये राशन से कच्चा -पक्का खाना पकाना और सम्पूर्ण तृप्ति से उसे खाना, किसी फाइवस्टार होटल के खाने से कम न था....!!
कई बार तेज़ हवाओं और आंधी में हमारे चूल्हे की आग हमारे कपड़े तक जला डालती थी इसके लिए बाद में खूब धुनाई भी होती थी....!!उसके बाद हफ्ते दिन तक हमारा संकल्पित रहना कि हम खतरों के खिलाड़ी इस खेल को छोड़ देंगे....!!
प्लास्टिक में बालू भरकर न जाने किस प्रकार हम ये सोचते थे कि हम उन गरीब बुढ़िया मां से कहेंगे ये लो आप के लिए आटा और वो मान जाएंगी। इसके ठीक उलट जब वो लाठी उठाती थीं तो भाग खड़े होते थे....!!
बिना डर और भय के कहीं भी कभी भी खेलना और अपने बचपन को अपनी शर्तों पर जी लेना अब कहीं गुम हो गया...
अब शायद छुट्टियों का मतलब है ढेर सारे होमवर्क, उटपटांग टास्क जिनमें जबरन मस्ती ढूंढने की थोपी गई खुशी होती है,फाइलों-पन्नो,बिना सीखे,समझे प्रोजेक्ट्स बनाने की होड़ में और अनावश्यक राइटिंग नोट बुक के तले आज का बचपन दब सा गया है...
पुनीता कुमारी
मध्य विद्यालय हरियो सिमरी
बख्तियारपुर सहरसा

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