एक शिक्षक का छात्र-छात्राओं ने नाम खुला पत्र -रमेश कुमार मिश्र (शिक्षक) - Teachers of Bihar

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Thursday 5 September 2019

एक शिक्षक का छात्र-छात्राओं ने नाम खुला पत्र -रमेश कुमार मिश्र (शिक्षक)

शिक्षक दिवस के अवसर पर एक शिक्षक का छात्र-छात्राओं ने नाम खुला पत्र


प्रिय बच्चो
शुभाशीष,
शिक्षक दिवस आते ही मुझे भी अपना बचपन याद आ जाता है।जीवन का वह क्षण जो बस स्मृति शेष है। कितना उत्साह,उमंग होता था।माँ शिक्षकों के लिए कलम खरीदकर देती और हम सब भाई-बहन उसे अपने शिक्षकों को देकर चरण स्पर्श करते।उस समय तो यह समझ भी नहीं थी कि आखिर कलम ही क्यों दिया जाता है?मगर अब यह सोच पा रहा हूँ कि ज्ञान  के प्रतीकों में यह भी एक है और गुरु दक्षिणा देने की परंपरा तो बहुत पुरानी है लेकिन कब इसने  उपहार का रूप ले लिया,पता नहीं।शिक्षा और शिक्षकों का सम्मान जहाँ नहीं होता वह समाज अधोगति को प्राप्त करता है।मगर अब तो हालात बहुत बदल गए।
याद आते हैं अपने शिक्षक तो भावनाएं तैरने लगती हैं।उस डाँट में भी कितना अपनापन था!कितना प्रेम भाव!प्रायः शिक्षकों के मन में यह भाव होता था कि उनका विद्यार्थी कुछ करें।आज भी कभी विचलन होने पर अपने शिक्षकों के पास पहुँच जाता हूँ।बहुत मानसिक शांति मिलती है।मुझे तो आज भी यह लगता है कि मेरे पास जो कुछ भी है।वह उनका आशीर्वाद है।यह तन-मन उनका कृतज्ञ है।
खैर!तुम सब भी शिक्षक दिवस की तैयारियाँ कर रहे हो।मगर शायद तुम्हें नहीं मालूम कि यह एक ऐसे महामानव के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है जिन्होंने शिक्षा एवं विद्यार्थियों के लिए अपना सारा जीवन उत्सर्ग कर दिया।जिन्होंने शिक्षण परम्परा को एक नया आयाम दिया।मगर तुम्हारी तैयारियाँ और स्वयं को देखता हूँ तो बहुत बेचैनी होने लगती है।सोच में पड़ जाता हूँ कि तुममें और हममें कितना अंतर है।तुम्हारी श्रद्धा का कोई मोल नहीं हो सकता।तुम्हारी निष्कलुषता मन को बहुत बेधती है।तुम कितनी श्रद्धा रखते हो हममें और हम शायद तुम्हारे बारे में सोचते भी नहीं।तुम्हारी श्रद्धा का यह ऋण न उतारने का गम बराबर बना रहेगा।काश!तुमलोगों के कोई काम आ सकूँ।
अत्यन्त निम्न आर्थिक वर्ग से आने के बाद भी हमारे सम्मान में जैसे-तैसे पैसा इकट्ठा करते हो तुम।कभी अपना मन मारकर भी।तुम्हारे फटे कपड़े और जूते भी हमारे सम्मान की ही गवाही देते हैं।भले हम समझ पाएँ या नहीं।अपने दर्द को भी खुशी में बदलने की कला शायद हम तुमसे सीख पाते।न होने पर भी देने में इतना उत्साह।काश!हम शिक्षक भी तुम्हारी तरह होते।हम भी ईमानदारीपूर्वक तुम्हें अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाते।
विद्यालय की एक घटना मुझे भूलते नहीं भूलती।एक बार एक दूसरी कक्षा का बच्चा अपना वर्ग कक्ष सजाने के क्रम में गिरते-गिरते बचा था।मेरे कई बार कहने पर कि मैं सजा देता हूँ।वह सजाने देने को तैयार नहीं हुआ।बोला नहीं सर,मैं ही सजाऊँगा।टीचर्स डे है न।कितना समर्पण था उसका।शब्द सुनकर आँखों में आँसू आ गए थे।तुममें से बहुत लोग पूछते हैं कि मैं तुम्हारा दिया क्यों नहीं लेता?मगर ऐसी कोई बात नहीं।मैं सोचता हूँ कि जो कुछ समर्थ हैं वे तो दे देंगे लेकिन जिनकी असमर्थता होगी।वे कितनी हीनता का अनुभव करेंगे।
तुम सब हमारी खुशी और वेदना को अपनी खुशी और वेदना समझते हो।काश!हम भी तुम्हारी खुशी और वेदना को स्वयं से जोड़ पाते।तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारा समर्पण हमपर शायद बहुत भारी है।काश!तुम्हारी इन शुष्क आँखों में चमक ला पाता।बहुत अफसोस होता है हालात देखकर।कितना बदल गया है शिक्षक समाज।कितना समर्पण भाव से कितनी दूर-दूर से आते हो हमारे पास मगर हम आँख मूँदे बैठे हैं।शायद तुम्हारी श्रद्धा भी हमारा स्वाभिमान नहीं जगा पा रही।
तुम ही तो हमारी पहचान हमारा अरमान हो।तुमने ही तो हमें सम्मान के महल पर बैठाया है।काश!तुम्हारे सपनों की भी दुनियाँ बसा पाता मगर चाहकर भी तुम्हारे लिए कुछ न कर पाने का गम ज़ेहन में बराबर बना रहेगा।
तुम्हारा शिक्षक

रमेश कुमार मिश्र
(शिक्षक)
भारती मध्य विद्यालय,लोहियानगर, कंकड़बाग,पटना,बिहार

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