राष्ट्रनिर्माता- विजय सिंह (शिक्षक) - Teachers of Bihar

Recent

Thursday 5 September 2019

राष्ट्रनिर्माता- विजय सिंह (शिक्षक)

राष्ट्रनिर्माता

       सृष्टिकर्ता, सृजनकर्ता, निर्माता, निर्माणकर्ता इत्यादि सभी एक ही शब्द के पर्याय हैं लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में इसका उपयोग अलग-अलग होता है। जीव-जंतुओं को बनाने वाले सृष्टिकर्ता, निर्जीव वस्तुओं को बनाने वालों को सृजनकर्ता या निर्माणकर्ता से संबोधित किया जाता है। फिल्म बनाने वालों को निर्माता कहा जाता है। यहाँ मैं ऐसे निर्माताओं के बारे में बताने जा रहा हूँ जो उपरोक्त सभी निर्माताओं से ऊपर हैं और ये हैं मानव के जिंदगी के हर क्षेत्र के निर्माता, जिससे हर प्रकार के सृजनकर्ता का निर्माण होता है और हर देश, राष्ट्र हमेशा इसके ॠणि रहते हैं और सदैव सम्मान करते हैं वो हम शिक्षकगण हैं जो हर प्रकार के निर्माताओं से श्रेष्ठ हैं। हमारे बिना किसी भी प्रकार के निर्माताओं का स्तित्व असंभव ही नहीं नामुमकिन है। ईश्वर को छोड़कर हमसे ऊपर कोई नहीं हो सकते। शिक्षक, गुरू, अध्यापक सभी हमारे ही पर्याय हैं। कबीरदास ने तो गुरु को भगवान से भी ऊपर बताते हुए कहा-
गुरु-गोविंद दोउ खड़े काको लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद  दियो बताय।
अर्थात कोई भी बच्चा अपने माता-पिता और गुरु को ही जानता है, पहचानता है। उन्हें ईश्वर का ज्ञान, उनकी पहचान तो गुरु ही बताते हैं, इसलिए दोनों अर्थात भगवान और गुरु के एक साथ खड़े रहने पर बच्चे पहले गुरु का चरण स्पर्श करते हैं फिर भगवान के। आज भी हमारे समाज में गुरु को महान माना जाता है क्योंकि हर व्यक्ति यही जानता है कि किसी सच्चे मानव का निर्माण गुरु के द्वारा ही होता है। "बिन गुरु ज्ञान होत नहीं भाई"।
     माँ-पिताजी तो बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करते हैं लेकिन हर विषय का ज्ञान और संस्कार तो हम राष्ट्रनिर्माता ही देते हैं। हम बच्चों को सच्चा, ईमानदार, कर्मठ, शुशील, विनम्र, कल्पनाशील, परोपकारी और संस्कारी इत्यादि बनाते हैं। जीवन पथ पर चलने का सही राह दिखाते हैं। अच्छे भविष्य निर्माण करने में सहायक बनते हैं। यदि किसी भी व्यक्ति का नाम संसार में अमर हुआ है तो उसमें गुरु का भरपूर सहयोग रहा है।आज हमारे समाज में डाक्टर, इंजीनियर, वकील,  पुलिस, ठेकेदार, मुंशी, जज, डी.एम, एस.पी, एस.डी.ओ, दारोगा, व्यापारी, राजनेता इत्यादि जितने भी हैं सभी हम शिक्षकों के द्वारा ही निर्मित है।

       प्राचीन काल में भी जितने महापुरुष हुए उनके पीछे उनके गुरु का भरपूर योगदान रहा है। गुरु विशिष्ट, गुरु द्रोण, गुरु कृपाचार्य, गुरु विश्वामित्र, गुरु रामानंद, गुरु संदीपन ॠषि, गुरु नरहरिदास गुरु रामकृष्ण परमहंस इत्यादि ने अपने शिष्यों का नाम अमर होने में भरपूर योगदान दिया। तुलसी दास ने तो गुरु को परब्रह्म तक की उपाधि दे दी। उन्होंने कहा -
गुरुः ब्रह्मा, गुरुः विष्णु, गुरुः देवो महेश्वरः, गुरुः शाक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः। 
अर्थात गुरु ब्रह्मा, विष्णु, महेश और परब्रह्म का रूप है। ऐसा क्यों नहीं, हम गुरु ही हैं जो कच्ची मिट्टी के समान बच्चों को एक सुडौल और मजबूत घड़े का रूप देते हैं और उन्हें घड़े के समान परोपकारी बनाते हैं। एक दोहा है - 

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट, अंदर देत सहारा, बाहर मारै चोट।


अर्थात हम गुरु ही बच्चों के अंदर की बुराईयों को बाहर निकालकर उनमें अच्छाईयाँ भर देते हैं और एक अच्छा इंसान बनाते हैं। उन्हें अज्ञान रूपी अंधकार से निकालकर ज्ञान रूपी प्रकाश के पथ पर अग्रसर करते हैं।इतिहास गवाह है कि किस तरह गुरु चाणक्य ने नंद वंश के विनाश और मौर्य वंश की स्थापना करने में चन्द्रगुप्त मौर्य का मार्गदर्शक बने थे। चंदबरदाई और तेनालीराम ने अपने  अद्वितीय ज्ञान से पृथ्वीराज चौहान और कृष्णदेव राय के दरबार में आने वाली हर समस्या का समाधान करने में अपने-अपने सम्राट की मदद की।
अंत में राष्ट्रनिर्माता के लिए एक और श्लोक प्रस्तुत है - 
अखंड मण्डलाकारं, व्यापातम् येन चराचरं, तद्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः।


विजय सिंह
मध्य विद्यालय मोती टोला
इस्माईलपुर
भागलपुर

No comments:

Post a Comment