Sunday 20 October 2019
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इम्तिहान- अरविंद कुमार पासवान (शिक्षक)
इम्तिहान
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" जब देखे तब ये काम चोर काम - धन्धे के डर से किताब में घुसा रहता है ।
लगता है ये पढ लिखकर बहुत बड़ा बायलेसटर बनेगा । रघवा , दिनेशवा , मोहना सब B.A. करके घास छील रहा है । परमेशरा को देखो पूर्णिया तक पढ कर सूकैला मोड़ में पान बेच रहा है , और इ चला है बरका हाकिम बनने ई काम के डर से किताब पकड़े रहता है " , कामचोर कही का ........
लगभग बरसते हुए बुढा रामेश्वर बरामदे पर पढ़ाई कर रहे अपने पोते प्रवीण से कहा ।
दादा के क्रोधागिनी की लपटों के भय से प्रवीण किताब बंद कर दरवाजे पर मवेशियों को चारा देने लगा, तथा मच्छरों से मवेशी की बचाव के लिए अंगीठी ( घुरा ) की व्यवस्था में जूट गया ।
कभी दादा कभी दादी तो कभी पिताजी के तरफ से भी ऐसी झिझकियां प्रवीण के लिए दिनचर्या का हिस्सा हो चुका था ।
दरअसल प्रवीण के दादा -दादी व उनके पिताजी की सोच ही कुछ अलग तरह की थी ,अशिक्षित होने की वजह से उनलोगो ने मान लिया था , की पढ़ाई - लिखाई पर होने वाला खर्च पैसे व समय की बर्बादी है अगर उसी धन तथा समय का उपयोग खेती - गृहस्थी में की जाय तो 2 बिघे जमीन को आसानी से 4 बिघे में बदली जा सकती है ।
ऐसे हालात में प्रवीण की पढ़ाई का पक्षधर सिर्फ उसकी मां यशोदा देवी थी जो उसे किसी तरह शिक्षित बनाना चाहती थी । वह कभी बकरी पालन तो कभी मजदूरी के जरिए ,परिवार से छिपा कर जो चार पैसे बचाती थी वो बेटे के कागज कलम पर खर्च हो जाते थे ।
मायके में शिक्षा के वजह से बदलते आस - पड़ोस के माहौल को यशोदा देवी नजदीक से देखी थी उसी का प्रतिफल था की वो अपने बेटे प्रवीण को लाख परेशानियों के बाबजूद भी शिक्षित बनाने को संघर्षरत थी
सुबह के 3 बज रहे थे , हर रोज की तरह आज भी यशोदा देवी पानी का ग्लास पकड़े प्रवीण को नींद से जगाने लगी , प्रवीण के जगते ही उससे बोली " लो आंख धो लो और बैठकर पढों , प्रवीण आंख धोकर पढ़ाई में जूट गया । वही बगल में यशोदा देवी लेट गई ।
प्रवीण को पढाई के नाम पर न ट्यूशन था , न कोचिंग उसके लिए एकमात्र आसरा सरकारी स्कूल ही था तो दूसरा सबसे बड़ा सहारा मां थी ।
मैट्रिक के इम्तिहान हुए प्रवीण ने सारी पूर्व धारणाओं को पीछे छोड़ते हुए इस परीक्षा मे सफलता हासिल किया ।
बाद में पारिवारिक स्तर पर बड़ी मान -मनोवल के बाद प्रवीण का नामांकन G .l. M. कॉलेज बनमनखी में करवाया गया ।
पढाई के लिए इकलौते बेटे को पहली बार घर से विदा करने के वक्त यशोदा देवी बेटे के सीने से लगकर फूट -फूट कर रो पड़ी ।
गरीबी , प्रेम व संघर्ष की प्रतिमूर्ति यशोदा देवी को मालूम था की ऐसे हालात में जहां परिवार के अन्दर गरीबी - अशिक्षा व लाचारी है , वहां बेटे के लिए आगे की पढ़ाई करवा पाना मुश्किल है ।
दूसरी तरफ मां का संघर्ष व परिवार के अन्य लोगों के द्वारा प्रवीण को पढ़ाई से विमुख करने का प्रयास उसे और मजबूत बनाता जा रहा था ।
बनमनखी में रहकर वह खूद पढ़ाई करता तथा खाली समय में अर्थोपारजन हेतू पार्ट टाईम ट्यूशन पढ़ाता था । प्रवीण के संघर्ष से अब मां यशोदा देवी को भी जान में जान आ चुकी थी । अब उन्हें पढ़ाई के खर्च को लेकर ज्यादा सशंकित रहने की जरूरत नही रहती थी ।
धीरे-धीरे समय बीतता गया गुरूजनों के सहयोग , माता पिता के आशिर्वाद तथा प्रवीण के जी तोड़ परिश्रम ने परिवार के लिए एक नया इतिहास रच डाला । प्रवीण बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा में बतौर प्रशासनिक अधिकारी चयनित हुए ।
यह खबर गांव में आग की तरह फैल गई ।
बरसों से फैले अंधेरे में चिराग जल उठी थी ।
प्रवीण के मां- बाप के खुशी का ढिकाना न था ,
तो वही खाट पर बीमार व मरणासन्न हालत में पडे़ बुढे रामेश्वर की आखें भी खुशी से छलक पड़ी थी ।
तभी मिठाई का डब्बा लिये प्रवीण परिवार के सभी सदस्यों के साथ बुढे रामेश्वर के पास आ धमका ।
दादाजी के आसूं पोछते हुए प्रवीण बोला " पढाई के प्रति आपका गुस्सा तथा मां की सहानुभूति अगर मुझे नही मिलती तो मै कैसे सफल हो सकता था दादाजी , मेरी इस सफलता में आप दोनों का बराबर का योगदान है । मेरी सफलता आप लोगों को समर्पित "
नोट--इस कहानी के पात्र व धटनाएं काल्पनिक है ।
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प्रेरणादायक कहानी।
ReplyDeleteविजय सिंह
Dil ko chhu gya sir ye kahani
ReplyDeleteI m Kishor Samrat
Nice Line.....
ReplyDelete-sonu starx
Bahot khub
ReplyDeleteबहुत ही प्ररेणादायक कहानी सर।
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी
ReplyDeleteकहानी प्रेरणादायी है। छात्रों को प्रेरणा मिलेगी
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