गाँधी कथा वाचन और उसकी प्रासंगिकता - सीमा कुमारी - Teachers of Bihar

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Saturday 19 October 2019

गाँधी कथा वाचन और उसकी प्रासंगिकता - सीमा कुमारी

गाँधी कथा वाचन और उसकी प्रासंगिकता 

2 अक्टुबर को देश भर में गाँधी जयंती की 150वीं शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में काफी  उत्साह देखा गया और शिक्षा विभाग के निर्देशन में गाँधी जी की यह अभूतपूर्व जयंती वर्ष को राज्य के सभी विद्यालयों में अविस्मरणीय मनाने के लिए कई दिशा निर्देश भी दिए गये ताकि इस खास दिन की सिर्फ खानापूर्ति न मान लिया जाए ।
इस विशेष आयोजन के लिए विभाग का काफी धन भी खर्च हुआ कई स्तरों पर शिक्षकों को गाँधी कथा वाचन की ट्रेनिंग भी दी गई जो काफी सराहनीय है , सरकार जागरूक है अपने बापू की थाती को संभालने के लिए ऐसे में हम शिक्षकों का भी यह दायित्व बनता है कि हम गाँधी जी को बेहतर तरीके से देखें , परखें और समझें ....
हम बच्चों को बापू की पाती पढ़ाएँ इससे पहले यह बहुत जरूरी है कि हम खुद उसे पढ़ें और उसमें वर्णित सभी वर्णाक्षरों के महत्व को अपने जीवन में उतारें ....
प्रशिक्षण के दौरान मुझे ज्ञात हुआ कि सरकारी विद्यालयों के साठ से सत्तर फीसदी बच्चे बापू से अंजान थे कोई  कह रहे थे कि अभी जिंदा हैं तो कुछ बच्चों का मानना था कि गाँधी जी की मृत्यु हो गई है इसलिए उनके फोटो पर माला चढ़ाया जाता है ....
यह स्थिति काफी चिंतनीय है कि हम किस दौर में जी रहे हैं बच्चे अपने राष्ट्र पिता से अपरिचित हैं और तभी यह जरूरत महसूस की गई कि गाँधीजी को जानने और समझने के लिए व्यापक तौर पर कार्यक्रम की जरूरत होगी और गाँधी कथा वाचन का यह महत्वपूर्ण सत्र चला ..
अब सवाल यह है कि क्या हम सिर्फ बच्चों को प्रार्थना सभा में बापू की पाती का कथा वाचन करवा देने से ही उनमें वह चेतना आ पाएगी या फिर हमें अपने स्तर से कुछ और प्रयास कंरने की जरूरत है ?
इस सन्दर्भ में मेरा सुझाव है कि असेम्बली के अलावे सप्ताह में कम से कम दो दिन या संभव हो तो प्रतिदिन एक नैतिक कक्षा का संचालन किया जाए जिसमें गाँधी कथा वाचन में प्रशिक्षित शिक्षक प्रत्येक दिन गाँधी जी के जीवन के कुछ अनछुये और रोचक पहलुओं की चर्चा अपने दैनिक जीवन से संदर्भ में करें और उन्हें इन कहानियों के माध्यम से बताएं कि आपके जीवन में अनुशासन का क्या महत्व है , सफाई क्यों जरूरी है , उपवास की क्या उपयोगिता है और कम से कम पाँच मिनट का मौन अभ्यास अवश्य करवाएं ....
बच्चे जब ध्यान की प्रक्रिया से गुजरेंगे तो स्वतः ही उनमें शांति और धैर्य आदि गुणों का उतरोत्तर विकास होता चला जाएगा ....
गरीब और अशिक्षित अभिभावकों के ये बच्चे अक्सर हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं ऐसे कुंठित बच्चों के सर्वांगीण विकास व  उनमें प्रेम व दया भाव उत्पन्न करने के लिए यह जरूरी है कि हम उन्हें उस हाङ़ मांस के पुतले का सजीव उदाहरण दे कि कैसे उन्होंने अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से देश और दुनिया को बदल डाला ....
बच्चों में नैतिक विकास हो इसके लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम हम स्वयं अपने जीवन में सत्य और अहिंसा का अनुपालन करें और इसकी अनुपालना के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हों तभी इन सारे आयोजनों और कार्यक्रमोंऋकी सार्थकता है ....

सीमा कुमारी 

नगर शिक्षिका (स्नातक ग्रेड) 

मध्य विद्यालय बीहट , बरौनी जिला – बेगुसराय , बिहार


4 comments:

  1. बहुत ही सुंदर!

    विजय सिंह

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  2. नैतिकशिक्षा आवश्यक

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  3. जी बहुत सुन्दर लेखनी। आगे बढ़े।

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