गुणवत्ता- ज्ञानवर्धन कंठ - Teachers of Bihar

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Tuesday 26 November 2019

गुणवत्ता- ज्ञानवर्धन कंठ

गुणवत्ता
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    ' गुण ' दृष्टिसापेक्ष अवधारणा है।इसलिए विचारसापेक्ष भी है और व्यक्तिसापेक्ष भी।अतः 'गुण' की सर्वसम्मत परिभाषा संभव नहीं।फिरभी हर कोई 'गुण' के गुण गाता है, 'गुण 'का ग्राही होना चाहता है।उसे 'गुण का होना' पसंद है,'गुणवत्ता' अभिलषित है।
       उदाहरण के लिये, यदि पूछा जाय कि' तीन अच्छी हिन्दी फिल्मों का समुच्चय बनाइये',तो क्या यह संभव होगा?एक व्यक्ति इस सूची में फिल्म 'शोले' रखना चाहेगा क्योंकि उसका तर्क होगा कि वह फिल्म बहुत चली थी और रिकॉर्ड कायम किया था।दूसरा व्यक्ति कहेगा कि वह फिल्म हिंसा से भरी-पड़ी है।इसलिए फ़िल्म 'गाँधी' को सूची में रखना समीचीन होगा।तीसरा कहेगा कि 'गाँधी' में तो नाच-गाना है ही नहीं और उसके बिना फिल्म कैसी?वह फिल्म 'दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे' को सूची में रखना चाहेगा।इस प्रकार समुच्चय कभी बन ही नहीं पायेगा। समुच्चय सुपरिभाषित चीजों का ही बन सकता है और अच्छा,भव्य,सुंदर आदि सुपरिभाषित शब्द हैं ही नहीं।ये तो व्यक्तिसापेक्ष/विचारसापेक्ष/दृष्टिसापेक्ष हैं, जैसे 'गुण' और 'गुणवत्ता'।यदि शुरू में ही यह स्पष्ट होता कि क्या-क्या मानक पूरे होने पर हम फिल्म को 'अच्छी' कहेंगे तो समुच्चय बनने में  क्या दिक्कत होती? अतःकिसी चीज के गुणवत् होने के लिये पहले मानक सुनिश्चित किये जाते हैं और उन मानकों की कसौटी पर परखकर ही उसे गुणवत् कहा जाता है।
         शैक्षिक क्षेत्र में 'गुणवत्ता' सबकी चाहत है,लेकिन गुणवत्ता के लिए मापक -मानक भिन्न-भिन्न हैं। नित नये प्रयोगों एवं नवाचारों में व्ऋद्धि के साथ 'गुणवत्ता' के प्रति चिंता भी बढ़ती ही जा रही है।फिर क्या किया जाय कि परिदृश्य बदले?कैसी पहल अपेक्षित है?यही मंथन चल रहा है।
     क्या प्रयोगों के बीच  'तीस दिनों में अंग्रेजी सीखें' -जैसा कोई प्रयोग विद्यालय में नहीं हो सकता? निर्धारित दिनों में विद्यालय के लिये गुणवत्ता के प्राप्य मानक निर्धारित कर कार्य नहीं किये जा सकते हैं?ये मानक कौन निर्धारित करेगा?निश्चितरूप से विद्यालय और केवल विद्यालय। पूरे कौन करेगा?- विद्यालय और केवल विद्यालय।अन्य एजेंसियाँ सहयोग करें, शासन नहीं।विद्यालय की बागडोर विद्यालय-प्रधान के हाथों में है।विद्यालय को शक्ति,सुरक्षा और सम्मान दें। विद्यालय में एक तंत्र विकसित हो जो मानक निर्धारित करे, उन्हें पाने के यत्न करे और त्रुटि-समीक्षा तथा सुधार का क्रम चलता रहे।एक अवधि के पश्चात पुनः  मानक जोड़े-घटाये जायँ।शायद तभी 'गुणवत्ता'अपने अर्थ के साथ हमें अनुभूत हो सकेगी।

ज्ञानवर्द्धन कंठ,
प्रधानाध्यापक,
मoविoभवप्रसाद
डुमरा(सीतामढ़ी)

6 comments:

  1. बहुत सुंदर और तथ्यपरक उपयोगी आलेख.... बहुत बहुत बधाई।

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  2. बिल्कुल सही!
    विजय सिंह

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  3. आप को बहुत -बहुत धन्यवाद काफ़ी दिनों से मैं इस विषय पर मंथन कर रहा था और आपने यह कर डाला शायद आप मुझे जान रहे होंगे मैं पूर्णिया के जलालगढ़ से हूं

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    1. जी,आपको कैसे भूल सकता हूँ?

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  4. बहुत ही सारगर्भित आलेख ।कंठ सर का साधुवाद ।

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