Wednesday 18 December 2019
New
उड़ान- अरविंद कुमार
उड़ान
--------------------------------
" इ लंगरा स्कूल में बहुत टेन्शन पैदा करता है, अरे सुधीरवा लाओ तो छड़ी रे ......।"
लगभग डराने वाले अन्दाज में सुरेश बाबू दांत किटकिटाते हुए चिल्लाये ।
दरअसल दिव्यांग मोहन को आये दिन किसी न किसी तरह से उनके सहपाठियों के द्वारा उन्हें दोषी ठहराकर उनकी शिकायत गुरूजी से की जाती थी ।
मोहन के पक्ष में जनाधार कम होने के कारण , उसे अक्सर उसके सहपाठियों के द्वारा दोषी साबित करने का प्रयास किया जाता था।
अमूमन ये देखा जाता है , की दूसरे स्वस्थ्य बच्चें मजा मारने के लिए , दिव्यांग बच्चे का मखौल उड़ाकर , उन्हें चिढ़ाते रहते है , फलस्वरूप कभी -कभार दिव्यांग बच्चे भी प्रतिकार कर बैठते है , मगर ऐसै बच्चों का अकेलापन , उनके अन्दर की हीन - भावना व असहजता के ऊपर कुछ शिक्षकों का उनके प्रति उदासीन रवैया , उल्टे उनके गले में शरारती बच्चें का तमगा बांध देता है , जो उनके सपनों के संसार को सदा के लिए और अंधकारमय बना सकता है ।
ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांग बच्चों से नाउम्मीद अभिभावक उनके लिए सरकारी स्कूल को ही महफूज समझते है , इसलिए ऐसै बच्चों का ज्यादातर सहारा सरकारी स्कूल ही होता है, जहां वे भी दूसरे बच्चों की तरह उन्मुक्त गगन में उड़ान भरना चाहते है ।
हालांकि सुरेश बाबू अनुशासन से समझौता न करने वाले म. वि . रघुनाथपुर , भरगामा के बेहतर शिक्षकों में से है , मगर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को भी वो सामान्य बच्चों की तरह ही समझते है ।
राजकुमार बाबू अररिया से विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाने हेतू विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करके आये है ,जहां उन्हें ऐसै बच्चों को अगली कतार में बैठाने, उन्हें खास महत्व देने , दूसरे बच्चों को विशेष बच्चों से दोस्ती बढ़वाने , साइटेड गार्ड बनने , ट्रेलिंग विधी, अबेकस से लेकर ब्रेल लिपि, तक की जानकारी दी गई है । उनसे जितना संभव है , वो अपने विद्यालय में इसे प्रयोग में लाते भी है , मगर ऐसै बच्चों के लिए इसे और व्यापक स्तर पर करने की जरूरत है ।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी खेल कूद व सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन था , इस प्रतियोगिता में विद्यालय से लेकर प्रखण्ड स्तर तक कई प्रतिभागियों का दब- दबा रहा । मगर अररिया के जिला स्तरीय प्रतियोगिता में किसी ऑलम्पिक खिलाड़ी की तरह भरगामा प्रखंड के लिए , म.वि.रघुनाथपुर के विशेष छात्र मोहन डटा था , उसने भाषण, पेन्टिंग व गायन के क्षेत्र में सफलता अर्जित की , बाद में राज्यस्तरीय प्रतियोगिता के लिए उन्हें अररिया के तरफ से , प्रतिनिधित्व हेतू चयनित किया गया । आज मोहन की सफलता पर सुरेश बाबू को पश्चाताप व गर्व दोनों हो रहा है ।
दरअसल ऐसै बच्चें ईश्वर की खास देन होते है, जिन्हें ईश्वर किसी न किसी खास गुण से जरूर नवाजते है , उसे बतौर शिक्षक बस उसके , उसी गुण को पकड़ते हुए , उन्हें थोड़ा , सकारात्मक सहयोग प्रदान करने की जरूरत है , फिर वो भी जिन्दगी के रेस में सामान्य बच्चों के साथ शामिल हो सकता है ।
काफी समय बीत चुका है , अब मोहन मुंगेर में भूमि विभाग में सर्किल इंस्पेक्टर है । पिछली बार छठ के मौके पर घर आया था , बैक आॅफ बरौदा रघुनाथपुर में कुछ पैसै का लेन-देन था , इसलिए वह बैंक पहुंचा था ।
संयोगवश वहां पहले से ही अपने पोते के साथ सुरेश बाबू पेंशन उठाने आये हुए थे । मोहन अपने गुरूजी को देखते ही झट पहचान गया । मोहन आगे बढ़कर गुरूजी के पैर छूए " सर पहचाने मैं आपका विद्यार्थी मोहन "
सुरेश बाबू की पीली व धूंधली आंखों में बरबस चमक आ गई , वो अपने मोहन को सीने से लगाकर भावुक हो गए । सुरेश बाबू की गीली आंखें उनके शिक्षक जीवन की अर्जित कमाई का बखान कर रहे थे ।
नोट :- इस कहानी के पात्र व घटनायें काल्पनिक है ।
About Teachers of Bihar
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुंदर एवं प्रेरणादायक रचना। बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं....
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteप्रेरणादायक।
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery inspiring
ReplyDeleteNice story sir jee
ReplyDelete