हेड मैडम (संस्मरण) - ज्ञानवर्द्धन कंठ - Teachers of Bihar

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Wednesday 15 January 2020

हेड मैडम (संस्मरण) - ज्ञानवर्द्धन कंठ

        शिक्षक के रूप में स्कूल में मेरा पहला दिन भूले नहीं भूलता। सीतामढ़ी से आम्रपाली बस खुलती है।जर्जर सड़कों पर हिचकोले खाते बढ़ती है। हिन्दी फिल्मों के गाने बजते रहे। सोनबरसा बस- स्टैंड कब पहुँच गये, पता ही नहीं चला। इसके पहले मैट्रिक की परीक्षा देने यहाँ आया था। पापा परीक्षा- भर साथ रहे थे। उपेंद्र पासवान आज भी याद हैं। उन्हीं से चक्की-मयूरबा का रास्ता पूछा था। चौदह रुपये उन्होंने रिक्शा-भाड़ा तय किया। चल पड़े। वो पीला मकान जिसमें पापा के साथ रहकर लगभग दस दिन बिताये थे। आज नौ वर्षो के बाद वैसा का वैसा ही था। आगे साढ़े तीन किलोमीटर का रास्ता। रास्ता क्या था, लीक भर थी। पुरानी पक्की सड़क के अवशिष्ट राह के रोड़ों के साथ कदम-ताल कर रहे थे। झीम नदी का चचरी-पुल पार करते ही रिक्शा का एक पिछला चक्का आवाज कर गया। रिक्शावाला तो पैदल ही चल रहा था। मुझे बड़ा ही अजीब लग रहा था।इस मार्ग से प्रतिदिन कैसे आऊँगा-जाऊँगा? कैसा स्कूल होगा?  कैसे लोग होंगे? इलाका तो बहुत पिछड़ा दिख रहा है। जानें भगवान। जैसी उनकी इच्छा।
      स्कूल के भवन दो भागों में बँटे थे। बीच में सड़क थी। पूर्वी हिस्से के पूरब एक बड़ा तालाब था। आम के पेड़ों के बीच बच्चे-बच्चियाँ उछल-कूद कर रही थीं। पहले से हेड मैडम का नाम लोगों ने बता रखा था-श्रीमती कृष्णा कुमारी। एक बच्ची से पूछा- हेड मैडम किधर हैं? बच्ची बोली- कौन, देवीजी? वहाँ टेबल के पास जो खड़ी है। पहुँचता हूँ। प्रणाम करता हूँ। बताता हूँ- ज्वाॅइन करना है।
पूछती हैं- क्या नाम है?
नाम बताता हूँ।
'घर कहाँ है?'
-'दरभंगा।'
'घर में कौन-कौन है?'
-'मैं और मेरी माँ।'
-'आज से मैं भी आपकी माँ हूँ।'
       हेड मैडम को बच्ची देवी क्यों कहती है, समझ में अब आया।
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ज्ञानवर्द्धन कंठ
प्रधानाध्यापक
राoमoविoभवप्रसाद
डुमरा,सीतामढ़ी।

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