गणतंत्र दिवस और पक्षपात रहित समाज की राह- अरविंद कुमार - Teachers of Bihar

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Sunday 26 January 2020

गणतंत्र दिवस और पक्षपात रहित समाज की राह- अरविंद कुमार

"गणतंत्र दिवस और पक्षपात रहित समाज की राह"
       71 वीं गणतंत्र दिवस के अवसर पर लोकतंत्र जिस रास्ते पर दिख रहा है वह बड़ा ही कंटक पूर्ण  राह दिख रही है। समाज संविधान के प्रस्तावना में अंकित पंथ निरपेक्षता के अवधारणा से अलग बढ़ता हुआ सा दिख रहा है ।चाहे वह छोटे स्तर पर हो अथवा राष्ट्रीय स्तर की बात हो, जिस पक्षपातपूर्ण  ,जिस भेदभाव पूर्ण समाज को  स्वार्थ के वशीभूत होकर तैयार किया जा रहाे है उसका ताना-बाना हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था के पूरी तरह प्रतिकूल है और देश के लिए खतरे की घंटी है ।अंततः इसकी आँच हमारे विद्यालयों तक नहीं पहुंचे ऐसी हो नहीं सकती है।
             हमारे प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता की बात कही गई है। अगर इस पर हम विचार करें यानी इसके उलट बात करें, भेदभाव या पक्षपात की तो, उसकी कोई सीमाएं नहीं है। अगर हम इस संबंध में सोचें तो इस भेदभाव को धर्म से लेकर अलग परिवार तक ले जाया जा सकता है ।जैसे माना कि कोई व्यक्ति धर्म के आधार पर भेदभाव करता है ,दूसरा जाति के आधार पर भेदभाव कर सकता है, तीसरा अपने परिवार से अलग को अलग समझ सकता है ।चौथा अपने भाई के अलग हो जाने के बाद उससे दूरी बना सकता है। पांचवा शायद अपने  माता पिता को भी अलग समझ सकता है। छठा अपने बच्चे को भी गैर समझ सकता है ।इस प्रकार डिस्क्रिमिनेशन की कोई सीमा नहीं है ।स्वार्थीपन की भी कोई सीमा नहीं है ।हमारा देश तभी भारत है जब हम इसके संवैधानिक मूल आत्मा को आत्मसात किये रहे। साथ ही लोगों में मेल मिलाप कायम रखने की भावना का संचार कर सकें।
           हमारा विद्यालय एक स्वस्थ विद्यालय तभी है जब हम शिक्षक एवं हमारे बच्चे भी इस पक्षपातपूर्ण बातों से अलग लोकतांत्रिक आस्था को कायम रखने में सफल हो सके ।71 वर्ष के इस संवैधानिक व्यवस्था को और मजबूत करने की जिम्मेवारी हम शिक्षकों की है क्योंकि हम बच्चे को उसी रूप में तैयार कर सकते हैं ,जैसा हम चाहते हैं तो आइए इस 71 वें गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर हम अपने बच्चों के लिए स्वस्थ विद्यालय वातावरण का निर्माण करें एवं समाज के इर्द-गिर्द समाज को तोड़ने वाले बुने जा रहे ताने-बाने को खत्म कर अपने बच्चों के लिए एक स्वस्थ्य समाज वाले देश का निर्माण करा सकें ।क्योंकि पूरा मानव जाति एक है, सबके शरीर में  एक ही खून बह रहा है। हम बिना किसी भेदभाव के जरूरत के अनुसार एक दूसरे को अपना खून दान कर सकते हैं अथवा प्राप्त कर सकते हैं ।वह किसी आधार पर बांटा नहीं जा सकता है।

अरविंद कुमार
गौतम मध्य विद्यालय न्यू डिलियँ,
डेहरी,रोहतास,
बिहार


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