शिक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान औऱ व्यवहारिक समस्या(विशेष रूप से बिहार के संदर्भ में)- नीरज कुमार - Teachers of Bihar

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Sunday 26 January 2020

शिक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान औऱ व्यवहारिक समस्या(विशेष रूप से बिहार के संदर्भ में)- नीरज कुमार

शिक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान औऱ व्यवहारिक समस्या(विशेष रूप से बिहार के संदर्भ में)



संविधान सभा ने 26 नंवम्बर 1949 को संविधान को स्वीकृत किया था जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। संविधान बनाते समय इसके रचनाकरों के मन में यह विचार अवश्य ही रहा होगा कि भावी भारत का निर्माण उसकी कक्षाओं में होने वाला है। इसी कारण भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से शासन को निर्देशित करते हुए देश की शिक्षा व्यवस्था को  रूप देने का प्रयास किया
 है।

स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में भारत में ‘मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा’ के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद् के समक्ष प्रस्ताव रखा था, मगर वह पारित होकर कानून नहीं बन सका। स्वतन्त्र भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 द्वारा जीवन तथा वैयक्तिक स्वतन्त्रता के संरक्षण का प्रावधान किया गया है शिक्षा व्यवस्था उसी का परिणाम है। अनुच्छेद 28 राजकीय शिक्षा संस्थानों में धर्म की शिक्षा को निषेध करने के साथ सहायता व मान्यता प्राप्त शिक्षा संस्थानों में दी जारही धार्मिक शिक्षा में अनुपस्थित रहने की स्वतन्त्रता विद्यार्थी को देता है। अनुच्छेद 29 भारत के सभी नागरिकों को भाषा, लिपि व संस्कृति को संरक्षित करने के साथ ही धर्म, मूलवंश, जाति या भाषा के किसी भेदभाव के बिना किसी शिक्षा संस्थान में भर्ती होने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 30 भाषा या धर्म के आधार पर अल्प संख्यकों को अपने शिक्षा संस्थान खोलने व उनका प्रबन्ध करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 41 में राज्य को उसकी आर्थिक सामर्थ्य व विकास की सीमाओं के भीतर रहते हुए शिक्षा पाने में नागरिकों का सहायता देने को कहता है। अनुच्छेद 45 में संविधान लागू होने के 10 वर्ष के भीतर 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने का निर्देश शासन को दिया था। अनुच्छेद 46 शासन को निर्देश लेता है कि वह अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों तथा पिछड़े वर्ग की शिक्षा हेतु विशेष व्यवस्था करे। अनुच्छेद 337 अग्लो-इंडियन समुदाय की शिक्षा के लिए विशेष अनुदान देने को कहता है। अनुच्छेद 350 (अ )प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध को कहता है। अनुच्छेद 351 हिन्दी के विकास की बात करता है।
2009 में, शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ। स्पष्ट है कि संविधान की भावना को औपचारिक रूप से लागू करने में देश के नीति निर्धारकों ने 60 वर्ष लगा दिए।
देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए 10 वर्ष से अधिक का समय हो गए है

प्रारम्भिक विद्यालयों के भौतिक स्वरूप में कुछ सुधार अवश्य हुआ है। भौतिक सुधारों का ध्येय शिक्षा में गुणात्मक सुधार करना है, मगर शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन देखने को नहीं मिला है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर को जाँच करने वाले गैर सरकारी संगठन प्रथम के निष्कर्ष तो प्राथमिक शिक्षा की गुणात्मकता में गिरावट बतला रहे हैं। शिक्षा की नींव ही कमजोर हो रही है तो भवन मजबूत कैसे होगा?
अमर्त्य सेन की ओर से स्थापित गैर सरकारी संस्था प्रतीचि (इंडिया) ट्रस्ट और पटना की संस्था 'आद्री ' ने संयुक्त रूप से  राज्य के पांच जिलों में कुल तीस गांवों में एक सर्वेक्षण किया।
निष्कर्ष में चार मुख्य बातें कही गईं हैं।
पहली ये कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में इन्फ्रास्ट्रकचर यानी बुनियादी जरूरतों वाले ढांचे का घोर अभाव यहां स्कूली शिक्षा की स्थिति को कमजोर बनाए हुए है। दूसरी बात ये कि शिक्षकों और खासकर योग्य शिक्षकों की अभी भी भारी कमी है।
*अमर्त्य सेन ने अपने भाषण में भी इस स्थिति पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा, 'एक तरफ बिहार का गौरवशाली शैक्षणिक अतीत है और दूसरी तरफ आज इस राज्य का शैक्षणिक पिछड़ापन*। ये सचमुच बहुत कचोटने वाला विरोधाभास है।'
बिहार जैसे प्रदेश में शिक्षा के मार्ग में और भी सामाजिक समस्या है,जिसमे मुख्य हैं ग़रीबी, अभिभावक की बेरोजगारी, अशिक्षा,जाति प्रथा, धामिर्क दृढ़ता, इत्यादि…….
कानून सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर की बात तो करता है मगर पंचतारा सुविधा से लेकर छतहीन विद्यालयों तक के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। ऐसे में समानता कैसे आएगी? शिक्षा के अधिकार कानून में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने की बात स्वीकार की गई है मगर देश में अंग्रेजी माध्यम के विद्यलयों की बाढ़ आरही है। मातृभाषा के विद्यालय अपने अस्तित्व को बचाने में असमर्थ होते जा रहे हैं

यद्यपि संवैधनिक रूप से शिक्षा के लिए कई प्रावधान किए गए है लेकिन व्यवहारिक रूप में आज भी शिक्षा वो वास्तविक रूप लेने में कोसो दूर है ,जितना होना चाहिए।













नीरज कुमार
उ •म• वि रूपापुर
पालीगंज
पटना।

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