विश्व पृथ्वी दिवस-अमरेन्द्र कुमार - Teachers of Bihar

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Wednesday 22 April 2020

विश्व पृथ्वी दिवस-अमरेन्द्र कुमार

पृथ्वी दिवस
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          हर साल 22 अप्रैल को पूरी दुनियाँ में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के प्रणेता अमेरिकी सिनेटर गेलार्ड नेलसन हैं। गेलार्ड नेलसन ने सबसे पहले अमेरिकी औद्योगिक विकास के कारण हो रहे पर्यावरणीय दुष्परिणामों पर अमेरिका का ध्यान आकर्षित किया था।
          इसके लिए उन्होंने अमेरिकी समाज को संगठित किया। विरोध प्रदर्शन एवं जनान्दोलनों के लिए प्लेटफार्म उपलब्ध कराया। वे लोग जो सान्टा बारबरा तेल रिसाव, प्रदूषण फैलाती फैक्ट्रियों और पावर प्लांटों, अनुपचारित सीवर, नगरीय कचरे तथा खदानों से निकले बेकार मलबे के जहरीले ढ़ेर, कीटनाशकों, जैवविविधता की हानि तथा विलुप्त होती प्रजातियों के लिए अरसे से संघर्ष कर रहे थे जो उन सबके लिए यह जीवनदायी हवा के झोंके के समान था। 
          वे सब उपर्युक्त अभियान से जुड़े। देखते-देखते पर्यावरण चेतना का स्वस्फूर्त अभियान पूरे अमेरिका में फैल गया। दो करोड़ से अधिक लोग आन्दोलन से जुड़े। ग़ौरतलब है कि सन् 1970 से प्रारम्भ हुए इस दिवस को आज पूरी दुनियाँ के 192 से अधिक देशों के 10 करोड़ से अधिक लोग मनाते हैं। प्रबुद्ध समाज, स्वैच्छिक संगठन, पर्यावरण-प्रेमी और सरकार इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेती है।
          बहुत से लोग पर्यावरणीय चेतना से जुड़े पृथ्वी दिवस को अमेरिका की देन मानते हैं। ग़ौरतलब है कि अमरीकी सिनेटर गेलार्ड नेलसन के प्रयासों के बहुत साल पहले महात्मा गाँधी ने भारतवासियों से आधुनिक तकनीकों का अन्धानुकरण करने के विरुद्ध सचेत किया था। गाँधीजी मानते थे कि पृथ्वी, वायु, जल तथा भूमि हमारे पूर्वजों से मिली सम्पत्ति नहीं है। वे हमारे बच्चों तथा आगामी पीढ़ियों की धरोहरें हैं। हम उनके ट्रस्टी भर हैं। हमें वे जैसी मिली हैं उन्हें उसी रूप में भावी पीढ़ी को सौंपना होगा। उनका यह भी मानना था कि पृथ्वी लोगों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए पर्याप्त है किन्तु लालच की पूर्ति के लिए नहीं। उनका मानना था कि विकास के त्रुटिपूर्ण ढाँचे को अपनाने से असन्तुलित विकास पनपता है। यदि असन्तुलित विकास को अपनाया गया तो धरती के समूचे प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाएँगे जो जीवन के समाप्त होने तथा महाप्रलय का दिन होगा। उन्होंने बरसों पहले भारत को विकास के त्रुटिपूर्ण ढाँचे को अपनाने के विरुद्ध सचेत किया था। उनका सोचना था कि औद्योगिकीकरण सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अभिशाप है जिसे अपनाने से लाखों लोग बेरोजगार होंगे, प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होगी। बड़े उद्योगपति कभी भी लाखों बेरोजगार लोगों को काम नहीं दे सकते। वे मानते थे कि औद्योगिकीकरण का मुख्य उद्देश्य अपने मालिकों के लिये धन कमाना है। आधुनिक विकास के कारण होने वाली पर्यावरणीय हानि की कई बार क्षतिपूर्ति सम्भव नहीं होगी। उनका उपरोक्त कथन उस दौर में सामने आया था जब सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत, सरकारें तथा समाज पर्यावरण के धरती पर पड़ने वाले सम्भावित कुप्रभावों से पूरी तरह अनजान था। वे मानते थे कि गरीबी और प्रदूषण का गहरा सम्बन्ध है जो एक दूसरे के पोषक हैं। गरीबी हटाने के लिए प्रदूषण मुक्त समाज और देश गढ़ना होगा।
          गाँधी जी का उक्त कथन "पृथ्वी दिवस" पर न केवल भारत अपितु पूरी दुनियाँ को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनका कथन विकास की मौजूदा परिभाषा को संस्कारित कर लालच, अपराध, शोषण जैसी अनेक बुराईयों से मुक्त कर संसाधनों के असीमित दोहन और अन्तहीन लालच पर रोक लगाने की सीख देता है जो पूरी दुनियाँ तथा पृथ्वी दिवस मनाने वालों के लिये लाइट हाउस की तरह है।
          पृथ्वी दिवस की कल्पना में हम उस दुनियाँ का ख्वाब साकार होते देखते हैं जिसमें दुनियाँ भर की हवा और पानी प्रदूषण मुक्त होगा। समाज स्वस्थ और खुशहाल होगा। नदियाँ अस्मिता बहाली के लिए मोहताज नहीं होगी। धरती रहने के काबिल होगी। मिट्टी, बीमारियाँ नहीं वरन सोना उगलेगी। सारी दुनियाँ के समाज के लिए पृथ्वी दिवस रस्म अदायगी का नहीं अपितु उपलब्धियों का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने तथा आने वाली पीढ़ियों के लिये सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामलाम धरती सौंपने का दस्तावेज़ होगा।



अमरेन्द्र कुमार

2 comments:

  1. बहुत-बहुत सुन्दर!
    विजय सिंह

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  2. अच्छी रचना, जानकारी से ओत-प्रोत।

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