Friday, 5 June 2020
New
पर्यावरण प्रदूषण एवं समाधान के उपाय-नवनीत विमल
पर्यावरण प्रदूषण एवं समाधान के उपाय
पर्यावरण एवं जीवन का अटूट संबंध है। यदि पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है तो मानव व अन्य जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है। ऐसा देखा गया है कि धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी मानव ही पर्यावरणीय प्रदूषण व असंतुलन के लिए सर्वाधिक जिम्मेवार है। वह अपने अधिकारों को तो समझता है किंतु कर्त्तव्यों को भूल जाता है। वह पेड़-पौधों एवं उनके उत्पादों का उपयोग तो करता है पर इसे संरक्षित रखना भूल जाता है। हम लोग बचपन से इस पर काफी चर्चा करते आ रहे हैं कि विज्ञान अभिशाप है या वरदान। हम विज्ञान से होने वाले लाभ का आनंद उठाते हैं किंतु इससे होने वाले हानिकारक प्रभावों को या तो नजरअंदाज करते हैं या फिर भविष्य की चिंता नहीं करते लेकिन जब किसी चीज का दुष्प्रभाव नजर आने लगता है तब दुनियाँ की नजर उस ओर जाती है और वह इस पर सोचना शुरू कर देता है। इसी क्रçम में अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन की पहल पर दुनिया के 192 देशों ने 22 अप्रैल 1970 ईस्वी को पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं एवं पेड़-पौधों को बचाने तथा पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से एक सम्मेलन किया और पृथ्वी की हरियाली एवं उस पर निवास करने वाले जीव जंतुओं को पृथ्वी पर उनके हिस्से का स्थान व अधिकार दिलाने का संकल्प लिया। तब से 22 अप्रैल जेराल्ड नेल्सन के जन्मदिन को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हम देख रहे हैं कि जब लोगों को रहने हेतु जमीन का अभाव होता है तो वह जंगल काट कर उस स्थान का उपयोग करने लगते हैं। औद्योगिक क्षेत्रों को बचाने या अन्य कार्य हेतु तेजी से जंगल का कटाव किया जाता है। इसके दुष्प्रभावों पर कोई विचार नहीं किया जाता है। हाल ही में ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी आफ एक्जीटर ने एक अध्ययन में यह दावा किया है कि दुनियाँ का तापमान अगर 2 डिग्री बढ़ा तो ओमान, भारत, बांग्लादेश, सऊदी अरब और ब्राजील में सबसे ज्यादा खाद्य असुरक्षा उत्पन्न होगी क्योंकि यहीं ज्यादा सूखा पड़ेगा या बाढ़ आएगी।ऐसे में भारत 122 देशों की इस सूची में सबसे ज्यादा भूखा मरने वाला देश होगा। रिसर्च में बताया गया है कि भारत उन देशों में शामिल है जहाँ जलवायु परिवर्तन के चलते खाद्य सुरक्षा का सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है।शोधकर्ता रिचर्ड बेट के मुताबिक वे जानना चाहते थे कि कैसे मौसम के अति प्रभाव से कई देशों में खाद्य असुरक्षा होगी जिससे लोगों को पर्याप्त और पौष्टिक आहार नहीं मिल पाएगा।
पेड़ पौधों की कटाई के अतिरिक्त जल एवं वायु में भी हम ही जहर घोलने का काम कर रहे हैं। कल- कारखानों का सारा कचरा नदियों में बह जाता है। श्मशान घाट में जलाए जाने वाले शवों एवं अधजले मानव शरीर को नदियों में ही बहाया जाता है। फलस्वरुप गंगा का अमृत जल भी विषाक्त हो चला है। अधिकतर नदियों का पानी पीने तो दूर स्नान करने के लायक भी नहीं रहा है। धुआँ छोड़ने वाले कल कारखाने, ट्रांसपोर्ट के साधनों के द्वारा वायु को भी प्रदूषित कर दिया गया।ऑक्सीजन की कमी एवं कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे जहरीले गैसों की बहुतायत से लोगों का सांस लेना भी दूभर हो गया है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार अगर यही स्थिति रही और हम नहीं चेते तो अगले 50 वर्षों में पृथ्वी समाप्त हो जाएगी। संसाधनों का दुरुपयोग इसका मुख्य कारण है। पिछले 40 वर्षों में लगभग 15% ताजा पानी कम हो चुका है। जनसंख्या निरंतर बढ़ती चली जा रही है। वाहन बढ़ते चले जा रहे हैं। अमेरिका दुगुना संसाधन खर्च कर रहा है। कई अफ्रीकी देश तो 24 गुना ज्यादा संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। हमें इस मामले में ब्रिटेन से सीख लेने की जरूरत है। 18 वीं शदी के बाद पृथ्वी का तापमान जीरो दशमलव 6 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ा।2100 ई. तक 9.58 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बढ़ने की संभावना व्यक्त की गई है।
पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक एवं सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में 119 देशों का 1 सम्मेलन हुआ जिसमें पर्यावरण संरक्षण, संवर्धन एवं विकास के लिए संकल्प की जरूरत पर बल दिया गया। प्रदूषण की समस्या बताना, नागरिकों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना एवं आम जनता को इसके प्रति प्रेरित करना इसका लक्ष्य रखा गया। इस सम्मेलन में भारत की ओर से भाग लेते हुए तात्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने "पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका भविष्य में प्रभाव" विषय पर व्याख्यान दिया था। 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। जल, जमीन और वायु को संरक्षित रखने हेतु विचार प्रकट किए गए। यह सम्मेलन 5 जून 1972 को हुआ था इसलिए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
हम शिक्षकों के लिए भी यह एक चुनौती है कि हम अपने बच्चों को कैसे पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करें। अगर हम उन बच्चों में पर्यावरण के प्रति बचपन में ही प्रेम भर दें, उसका संरक्षण करना सिखा दें तो उनकी आदत भविष्य में देश और विश्व के लिए लाभदायक होगा। हम जानते हैं कि बच्चे अपने बड़ों का अनुसरण करते हैं। यही बच्चे कल के बड़े होंगे और उनसे हमारी अगली पीढ़ी सीखेगी। अन्यथा प्रकृति अपना संतुलन बनाना जानती है। आज एक छोटे से विषाणु से पूरी दुनिया त्रस्त है किंतु इससे हमें लाभ भी हुआ है। जल वायु एवं भूमि का प्रदूषण बहुत हद तक कम हुआ। जल पीने योग्य हो गया है। बहुत दूर की चीजें दिखाई देने लगी है। हवा सांस लेने लायक हो गई है ।पक्षियों की चहचहाहट एवं जीव-जंतुओं की हलचल दिखाई देने लगी है। लुप्त होते जीव जंतु नजर आने लगे हैं। कहा जाता है कि अगर धरती पर रहने वाले जीव प्रकृति का तिरस्कार करते हैं तो प्रकृति अब खुद से अपना संतुलन बना लेती है। अच्छा यही होगा कि हम खुद से इस ओर पहल करें और इसकी पहल शुरू भी हो चुकी है। हमारे राज्य में जल जीवन हरियाली की दिशा में कई अच्छे काम शुरू हो चुके हैं और इसका सकारात्मक परिणाम भी नजर आने लगा है। हमारी महती जिम्मेवारी है कि हम धरती को, वायु को, जल को प्रदूषित होने से बचाएँ और लोगों को जल, जीवन, हरियाली की ओर ले जाएँ तथा उससे होने वाले लाभ को बताएँ और उन्हें प्रेरित करें कि वे पौधों को लगाएँ, उसे सीचें और उसकी देखभाल करें और ऐसा करने के लिए दूसरों को भी प्रेरित करें। इस तरह से हम अपनी धरती को अधिक दिनों तक संरक्षित रख पाएँगे और उसका उपभोग कर पाएँगे।
नवनीत विमल
प्रखंड साधनसेवी
प्रखंड संसाधन केंद्र
पूरबसराय, मुंगेर
About ToB Team(Vijay)
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
ToBblogs
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Great🌿☘️🍀🌴👌👌💐💐
ReplyDeleteबहुत हीं सुन्दर आलेख!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
ReplyDelete