पर्यावरण की तबाही का मूल कारण-विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Friday, 5 June 2020

पर्यावरण की तबाही का मूल कारण-विमल कुमार "विनोद"

पर्यावरण की तबाही का मूल कारण

          किसी जीव को चारों ओर से जो जैविक तथा अजैविक घटक घेरे रहते हैं उसे पर्यावरण कहते हैं। आने वाले समय में मनुष्य लगातार विकास की ओर बढ़ता जा रहा है। मनुष्य जितनी तेजी से आगे बढ़ता जायेगा उतनी ही तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहेगा जिससे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की संभावना बढ़ती ही जायेगी। चूँकि आज पर्यावरण लगातार तबाही के कगार पर है क्योंकि इस पर्यावरण को मनुष्यों ने अपने हितों के लिये लूटा है जिसका अनेकों उदाहरण है जैसे- नदियों से अवैध बालू का उठाव, सड़कों के दोनों ओर के वृक्षों के कटने के बाद पुनः नहीं लग पाना, बरसात के जल का संरक्षण न हो पाना, अंधाधुंध रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग किया जाना, पोलीथिन का प्रयोग किया जाना, क्लोरोफलोरो कार्बन का ज्यादा उत्सर्जन किया जाना, अधिक संख्या में पेट्रोकेमिकल से चलने वाली गाड़ियों का उपयोग इत्यादि।
अवैध बालू का उठाव- विकास की अंधाधुंध दौड़ में लोग सड़कों के किनारे मकान बनाकर कोई रोजगार करने की बात सोचते हैं जिसके मूल में जनसंख्या वृद्धि तथा बेरोजगारी
है। अधिक से अधिक रुपया कमाने के लिए बिना किसी मानक को निर्धारित किये ही अवैध बालू का उठाव किया जा रहा है जिसके कारण चीर कझिया, हरना, सापिन, गेरूआ, सुन्दर, चांदन आदि जो कि बिहार एवं झारखंड के की प्रमुख नदियों का अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो चुका है।
अंधाधुंध वृक्षों का कटाई- सड़कों के चौड़ीकरण तथा विकास बाबा को खुश करने के नाम पर अंधाधुंध वृक्षों की कटाई तो कर दी जाती है लेकिन उसके स्थान पर नये पौधे लगाए नहीं जाते।
वर्षा जल का संरक्षण- मनुष्य के जीवन का यह दुर्भाग्य
है कि वह प्रकृति से सिर्फ प्राप्त करना अपना अधिकार समझता है, उसका संरक्षण करना अपना उत्तरदायित्व नहीं। कंक्रीट के जंगल से जल की कामना मनुष्य की नासमझी है। आखिर वर्षा के जल को पृथ्वी के भीतर जाने वाले रास्ते को सीमेंट और कंक्रीट से बंद कर दिया है तथा अपने-अपने घरों में पनसोखा भी नहीं बनाया है।घर बनाते समय लोगों को अपने घर के वर्षा के संपूर्ण जल को पृथ्वी के अंदर ले जाने के लिए भूमि के अंदर तक पाइप डाल देना चाहिए। तालाब आज खेल का मैदान बनता जा रहा है जिसके जीर्णोद्धार की सख्त आवश्यकता है।
रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग- किसान खेती करते समय अधिक फसल उत्पादन करने के लिये मानक से अधिक रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग करके केचुआ, घोंघा, मेढ़क, मांगूर तथा अनेक जैव प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं। हरी साग सब्जियों को उपजाते समय रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना लगभग 40% कैंसर होने की संभावना को बढ़ावा देता है लेकिन मनुष्यों की स्थिति ठीक वैसी हीं है जैसे सर्प के मुँह में जकड़े होने के बाबजूद भी मेंढक अपना मुँह खोले रखता कि कोई कीट उसके मुँह में भक्षण के लिए आ जाता।
पाॅलिथीन का प्रयोग- जैसा कि सभी को पता है कि पाॅलिथिन आज भूमि को कैंसर की तरह नष्ट किये जा रही है।2018 के विश्व पर्यावरण दिवस का स्लोगन था "बीट प्लास्टिक पोल्यूशन" जो कि आज अपनी असफलता पर आँसू बहाता हुआ नजर आता है। इसका मूल कारण  उपभोक्ता हीं हैं। कुछ प्रांतों में तो पाॅली बैग पर प्रतिबंध  लगा दिया गया है लेकिन यह केवल पोस्टरों की शोभा बढ़ाता मात्र बनकर रह गया।
क्लोरोफलोरो  कार्बन गैस का बेतहाशा प्रयोग-
क्लोरोफलोरो कार्बन ऐसी गैस है जो कि ओजोन परत को पतला बनाता है। इसका प्रयोग किया जाना विश्व पर्यावरण के लिये चिंता की बात है लेकिन मनुष्य करे तो क्या करे इस बेतहाशा गर्मी से बचने के लिए वातानुकूलित कमरों में रहना आज साधारण सी बात हो गई है।
पेट्रो केमिकल्स युक्त धुआँ- बड़े-बड़े रईसजादा घरानों में देखा जाता है कि परिवार के सभी सदस्यों के लिए अलग-अलग गाड़ी है जो कि बहुत ज्यादा मात्रा में रासायन युक्त धुआँ निकालती है जिसके चलते पृथ्वी का तापमान बहुत बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप पृथ्वी के दाब और ताप में असंतुलन पैदा हो जाती है जो कम वर्षा होने का मुख्य कारण है। कोयला खदानों तथा जंगलों में वर्षों से लगी आग एवं बेकार का बिजली के प्रयोग किये जाने से भी वैश्विक ताप में वृद्धि हो रही है।              
          अंत में आप सबों से आशा के साथ उम्मीद करता हूँ कि अगर जिन्दगी जीना है तो प्रकृति के
साथ छेड़छाड़ करना बंद कर दें नहीं तो
"माटी कहे कुम्हार से तू का रौंदे मोय 
एक दिन ऐसा आएगा मैं रौदूँगी तोय" वाली बात होगी। विश्व को पर्यावरण के कुप्रभाव से बचाने की उम्मीद के साथ पूरे विश्व की जनसंख्या को बधाई



विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक 
राज्य संपोषित उच्च विद्यालय 
पंजवारा बांका

3 comments:

  1. नित्य नई-नई गतिविधियों को कराकर टीचर्स
    ऑफ बिहार के ब्लोग ने शिक्षा के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन लाने का प्रयास किया है,के लिये बधाई के पात्र हैं।

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  2. बहुत-बहुत सुन्दर आलेख!

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  3. पर्यावरण संबंधी यह रचना वाकई उत्कृष्ट है।

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