पर्यावरण-निधि चौधरी - Teachers of Bihar

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Friday, 5 June 2020

पर्यावरण-निधि चौधरी

                                  पर्यावरण 

          पर्यावरण अर्थात हमारे चारों ओर का "आवरण"। हम चारों ओर से एक आवरण से घिरे है जो कि वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल से बनी है। इसके प्रमुख घटक मिट्टी, पानी, हवा, जीव और सौर ऊर्जा है।  प्रकृति ने एक आरामदायक जीवन जीने के लिए हमें सभी संसाधन प्रदान किए हैं। प्रकृति और शास्त्रों ने हमेसा यही सिखाया है कि हमें हमेशा पर्यावरण की देखभाल करनी चाहिए। शायद यही कारण है कि प्राचीन काल से ही वृक्षों की पूजा होते रही है परंतु हम मनुष्यों में धीरे धीरे लोभ की प्रवृति बढ़ती चली गई और अधिक की चाह एवं सूरज चाँद फतह कर देने के घमंड ने मनुष्य के पुष्प से हृदय को कब पाषाण बना दिया पता ही नहीं चला। 
          आज अधिक फसल उगाने की लालच में तरह तरह के खाद का प्रयोग किया जा रहा है। जहाँ पर गर्मी के मौसम में आम आते थे वहां जबरदस्ती आम को मौसम से पहले ही उगा लिया जाता है। जहाँ प्रकृति ने अनुपम छटा बिखेरी हो वहाँ हम सोचते हैं कि किस तरह यहाँ होटल्स बनाए जाएं। प्लास्टिक हमारे पर्यावरण का सबसे बड़ा शत्रु है परंतु आज स्थिति यह है कि मेरे हाथ मे प्लास्टिक की बनी कलम है। मैं भी प्लास्टिक की बनी बोर्ड और कागज रख कर लिख रही हूँ। जिस कुर्सी पर बैठी हूँ वह प्लास्टिक की है। यह तो उदाहरण मात्र है कि किस प्रकार हम ज़हरीली चीज़ों से घिरें हैं। आज अधिकतर खाद्य सामग्री पिलास्टिक के पैकेट्स में आती है।  यहाँ हम यह कह सकते है कि अपने लाभ के लिए हम अप्राकृतिक तरीकों को अपना रहें हैं। यह बहुत बड़ी विडंबना है। हम सबों ने भोग विलास को ही अपने जीवन का परम लक्ष्य बना लिया है तभी तो गगनचुम्बी इमारतें बनी जा रही है और बच्चों को खेलने के लिए मिट्टी के आंगन नसीब नहीं। 
          वर्तमान समय में कोरोना से पूरा विश्व परेशान है पर इसके वजह से होने वाले लाॅकडाउन से हमारे पर्यावरण को लाभ अवश्य पहुँचा है। एक आंकड़े के मुताबिक नदियों का पानी पिछले 50 वर्षों की तुलना में अधिक स्वच्छ हो गया है। हवा इतनी साफ हो गई है कि पहाड़ों को दूर से भी देखा जा सकता है और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि फैक्ट्रियाँ बन्द रही, सड़कों पर बेतहाशा दौड़ने वाली वाहने बन्द रही। ऐसा नहीं कि इनको साफ बन्द कर दिया जाए बल्कि इको फ्रेंडली बनाया जा सकता है। वाहनों का प्रयोग कम से कम करें।
जन्म से लेकर जीवन पर्यंत हमसब प्रकृति से लेते हैं पर क्या कभी सोचा है कि हमने प्रकृति को क्या दिया? हम दे सकते है बस प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न करें और अपने जीवन काल में अनगिनत पेड़ लगाते रहें।


निधि चौधरी

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