पर्यावरण: समग्र सम्यक चिंतन-देव कांत मिश्र - Teachers of Bihar

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Friday, 5 June 2020

पर्यावरण: समग्र सम्यक चिंतन-देव कांत मिश्र

पर्यावरण: समग्र सम्यक चिंतन

   जरा ठहरें!  कुछ सोचें! सम्यक चिंतन  को जामा पहनाएँ और पर्यावरण को स्वच्छ एवं सुरक्षित बनाएँ!
          सच में, पर्यावरण शब्द सुनते ही मन कौंधने लगता है। विचारों  में एक नव स्फूर्ति पैदा होने लगती है। आखिर क्यों न? पर्यावरण आजकल बहुचर्चित एवं ज्वलंत विषय है।  सच पूछा जाय तो यह विश्वव्यापी समस्या बन गया है। पर्यावरण शब्द परि+ आवरण से मिलकर बना है। यहाँ परि का अर्थ होता है- परित: यानि चारों ओर तथा आवरण का अर्थ होता है- घेरा।  अर्थात हमारे चारों ओर प्राकृतिक तथा मानव निर्मित जितने भी सजीव एवं निर्जीव वस्तुएँ हैं वे सब मिलकर पर्यावरण का निर्माण करती हैं। हम पर्यावरण को प्रभावित करते हैं तथा पर्यावरण भी हमसबों पर गहरा प्रभाव डालता है। जल, हवा, मिट्टी पेड़-पौधे, जीव-जन्तु ये सभी हमारे पर्यावरण के अंग हैं। मानव निर्मित पर्यावरण के अन्तर्गत गाँव, नगर, भवन, सड़क, नहर, यातायात, उद्योग इत्यादि आते हैं जबकि सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्थाएँ तथा उनका मानव  पर प्रभाव आते हैं। इन सभी के परस्पर तालमेल का उचित मात्रा में होने को पर्यावरण संतुलन कहा जाता है। पर्यावरण को स्वच्छ व संतुलित रखना, रक्षा करना  हम सबों का कार्य है। 
          आज  हमारी पृथ्वी के पारिस्थितिकीय असंतुलन में लगातार वृद्धि के कारण सम्पूर्ण विश्व समुदाय पर्यावरण के प्रति किए जा रहे अपराधों के सम्बंध में जागरूक हो गए हैं परन्तु अभी भी बहुतों की नींद नहीं खुली है। यह भी माना गया है कि दिन व दिन जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि और बढ़ती माँग के कारण मानव ही प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। इसे अगर आप ठीक से अहसास कर रहे हैं तो माना जाएगा कि आप पर्यावरण के सच्चे हितैषी हैं, मित्र हैं, चिंतक हैं।आज मानव औद्योगिक विकास तथा भौतिक समृद्धि प्राप्त करने अर्थात् अपने स्वार्थ की पूर्ति के उद्देश्य से इसके संतुलन में बाधक बन रहा है। वायुमंडल में  बढ़ रहे CFC, सल्फर डाइऑक्साइड गैसों के कारण यानि घातक प्रदूषण के कारण हमारी धरा की हरितिमा समाप्त होती जा रही है। नदियों की धारा कुंद होती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों के द्वारा विश्व के वायुमंडल में प्रतिवर्ष लगभग 20 करोड़ टन कार्बन मोनोऑक्साइड, 5.5 करोड़ टन सल्फर डाइऑक्साइड तथा 5 करोड़ टन कार्बन समा रहे हैं। इसके अतिरिक्त मनुष्य कई टन सिलिकान, आर्सेनिक, कोबाल्ट, जस्ता, एन्टीमनी  झोंकता रहता है।अनुमानतः हर वर्ष करोड़ों टन ऐसी चीजों को वह झोंकता रहता है। यह जीवधारियों के लिए तो खतरे की ही घंटी है तभी तो महात्मा गांँधी ने अपने दर्द को बयां करते हुए कहा था--"Nature has the means to fulfill human needs, not greed".  अर्थात् "प्रकृति के पास मानव की आवश्यकता पूर्ण करने के साधन हैं, लोलुपता  के नहीं"। वाकई यह कथन यथार्थ के धरातल पर सच प्रतीत होता है। अगर वक्त रहते हम नहीं सचेत हुए तो आगामी समय में और अधिक खतरे की संभावना है। इन्हीं खतरों से पूरी दुनियाँ में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से UNO के तत्वावधान में हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यानि इसे स्वच्छ, संतुलित व सुरक्षित रखने का दिवस। एक साकारात्मक चिंतन के परिप्रेक्ष्य में सभी जीव जंतुओं के अस्तित्व को बचाने का भी संकल्प तभी तो पर्यावरण के व्यापक महत्व पर विचार करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी शैक्षिक संस्थानों के लिए पर्यावरण संरक्षण के लिए बच्चों के माध्यम से आम लोगों को तैयार होने के लिए प्रेरित करने को कहा है।
          एक बात दीगर है कि हमारी  प्राकृतिक छटा बड़ा ही मनमोहक है। यदि कुछ क्षणों के वास्ते हम मानवीय क्रियाकलापों से किसी भी प्राकृतिक  वनस्थली, पारंपरिक ग्रामीण परिदृश्य, कल-कल बहती नदियों अथवा पर्वतों की किसी उपात्यका के सुरम्य दृश्य की कल्पना करें तो हमारा मन,  बरबस हीं उनकी ओर खींचा चला जाता है। हमारी वसुंधरा बहुत ही सुन्दर है। यह हमें जीने हेतु सभी ज़रूरत की वस्तुएँ उपलब्ध कराती है लेकिन अब जीवन के लिए जरूरी चीजों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने लगा है। अब न तो हमें साँस लेने के लिए शुद्ध हवा, न ही रोगाणु मुक्त स्वच्छ जल और न ही असंदूषित भोजन ही मिल पाता है। 
          जरा थोड़ा हटके सोचिए अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए हम पर्यावरण पर निर्भर रहते हैं पर हम बदले में अपने पर्यावरण को क्या देते हैं? यह सबसे अहम व विचारणीय विषय है। यदि पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारणों पर नज़र दौड़ाया जाए तो निम्नलिखित कारण परिलक्षित होते हैं:  
1. कारखानों  तथा वाहनों से निकलने वाला धुआँ तथा अवांछित रासायनिक तत्व 2. नदियों, तालाबों में गिरता हुआ कूड़ा- कचरा तथा विषैले रासायनिक तत्व 3. वनों का तीव्र दोहन (exploitation) 4. खेतों में जरूरत से ज्यादा खाद तथा कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल 5. पहाड़ों में चट्टानों का खिसकना 6. मिट्टी का कटाव 7. रेडियोधर्मी पदार्थों का निकलना 8. निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या 9. शादी, पर्व- त्योहारों तथा अन्य धार्मिक उत्सवों के अवसर पर लाउडस्पीकर या डीजे की आवाज से होने वाला कर्णकटु शोर 10.वर्तमान औद्योगिकीकरण का प्रकृति के साथ सामंजस्य की कमी 11. हमारे स्वार्थबद्ध एवं संकुचित विचार की दूषित लहर का वातावरण में फैलना। 
          यूँ तो इसके और भी कई कारण हो सकते हैं लेकिन मेरी राय में, औद्योगिक विकास, गरीबी व आर्थिक असंतोष से उत्पन्न वातावरण तथा मानव का बदलता हुआ सोचने-विचारने का तरीका भी पर्यावरण प्रदूषण का कारण हो सकता है। आज कोरोना( कोविड-19) वैश्विक महामारी से उत्पन्न मानवीय हताश एवं इसके लिए मानवीय सोच से उत्पन्न लॉकडाउन (Lockdown) से वातावरण का अनुकूल होना एक अच्छा व जीवंत उदाहरण है। इस उदाहरण से पूरी दुनियाँ वाकिफ हैं। सचमुच हमारे देश के आर्ष ऋषियों ने आज से 100  हजार वर्ष पहले पर्यावरण के प्रति अपने उत्तरदायित्व का अनुभव किया था और कहा था  "Nature is our mother, who surrenders herself to her children. By playing in the lap of nature, we grow up by rolling. She fulfills all our needs." अर्थात् प्रकृति हमारी माता है, जो अपना सर्वस्व अपने बच्चों को अर्पण कर देती है। प्रकृति की गोद में खेलकर लोट-पोट कर हम बड़े होते हैं। वह हमारी सारी आवश्यकताओं को पूरा करती है। हमारी धरती, नदी, पहाड़, मैदान, जंगल, पशु-पक्षी आकाश, जल, वायु आदि हमें जीवन-यापन में मदद करते हैं। ये हमारे पर्यावरण के अंग हैं। अपने जीवन में पर्यावरण की स्वच्छता व सुरक्षा, उसे स्वाभाविक स्थिति में बनाए रखना हम मनुष्यों का कर्तव्य होना चाहिए। कहने का तात्पर्य है कि स्वच्छ पर्यावरण स्वस्थ जीवन की आधारशिला है।यह जीवन के प्रत्येक पक्ष से किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है। अतः आज ज़रूरत इस बात की है कि पर्यावरण हमारी प्राथमिकता में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यों में शामिल होना चाहिए। मिल जुलकर हमें हरित क्षेत्र विकसित करना चाहिए। हमें 33 फीसदी भूभाग पर वनों का विस्तार करना चाहिए। निहित स्वार्थ का परित्याग कर प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करना चाहिए। अधिकाधिक वृक्षारोपण तथा अंधाधुंध कटाई पर रोक लगानी चाहिए। औद्योगिक विकास हेतु एक नई सोच विकसित करना चाहिए जो प्रकृति के विनाश नहीं अपितु उसके विकास पर  आधारित हो। इससे भी बढ़कर प्रकृति हमारी माता है। तो चलिए हम सब विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर  किसी भी कीमत पर अपनी माता की रक्षा करने  का ठोस संकल्प लें।



देव कांत मिश्र  
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज भागलपुर बिहार

4 comments:

  1. बहुत-बहुत सुन्दर!

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  2. वास्तव में पृथ्वी पर जीवन के आस्तित्व को बनाए रखने के लिए पर्यावरण संतुलन अत्यन्त आवश्यक है। वैश्विक तापन, अम्लीय वर्षा, ओजोन संकट, जलवायु परिवर्तन की समस्या इत्यादि से बचाव हेतु पर्यावरण संरक्षण अनिवार्य है। बहुत उपयोगी, शिक्षाप्रद और विचारणीय आलेख । कोटि कोटि धन्यवाद सर जी। :- पंकज कुमार ।

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  3. पृथ्वी पर जीवन बचाए रखने के लिए पर्यावरण संतुलन अति आवश्यक है आप अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाते रहिए जिससे समाज में जागरूकता फैले और हम और आप मिलकर इस पृथ्वी को सुंदर और सुसज्जित बनाए रखें

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