विद्यालय में बच्चों का नामांकन-विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Thursday, 16 July 2020

विद्यालय में बच्चों का नामांकन-विमल कुमार "विनोद"

विद्यालय में बच्चों का नामांकन

          राज्य के सभी पोषक क्षेत्रों के विद्यालयों में बिहार शिक्षा परियोजना द्वारा घर-घर जाकर बच्चों का अधिक से अधिक नामांकन कराए जाने हेतु "नामांकन पखवारा" चलाया गया है जिसको सफल बनाने के लिए अविभावक, समाज विद्यालय प्रधान तथा विद्यालय परिवार के साथ-साथ विद्यालय परिसर को विकसित करने की जरूरत है तभी विद्यालय में बच्चों के नामांकन  की संख्या में संतोषजनक वृद्धि हो सकती है, जो इस प्रकार है-
प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के नामांकन की संख्या को बढ़ाने के लिए सबसे पहली तथा आवश्यक बात यह है कि यदि परिवार तथा अविभावक शिक्षा के प्रति जागरूक होगा तभी  वह बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के लिए उत्साहित करेगा तथा बच्चों का विद्यालय में नामांकन कराएगा। इसलिये सबसे बड़ा आकर्षण परिवार का है। पढ़ा-लिखा  तथा जागरूक होना चाहिए तभी बच्चे विद्यालय जाएँगे। विद्यालय में छात्र-छात्राओं के नामांकन में वृद्धि कराने के लिए जनसमुदाय की सोच में परिवर्तन लाना जरूरी है। जब लोगों की सोच शिक्षा के प्रति आकर्षित होगी तो निश्चित रूप से नामांकन में वृद्धि होगी।
किसी भी जीव का आवश्यक गुण होता है अनुकरण करना। ऐसा गुण बच्चों में आनुवांशिकता तथा वातावरण से आती है। यदि समाज के बच्चे विद्यालय सीखने के लिये जाएँगे तो दूसरे बच्चे भी विद्यालय में नामांकन कराना चाहेंगे। इससे विद्यालय में नामांकन कराने वाले छात्रों की संख्या में अपने आप वृद्धि हो जायेगी। समाज किसी भी मनुष्य के विकास का एक आवश्यक और प्रमुख स्तम्भ माना जाता है क्योंकि समाज से ही लोगों को जीवन के विकास का प्रमुख अवसर मिलता है। इसीलिए समाज के लोगों को चाहिए कि आने वाली पीढ़ी के बच्चों को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए
बच्चों को विद्यालय के प्रति आकर्षण बढ़ाने की कृपा करें।
विद्यालय परिसर
विद्यालय परिसर का विद्यालयी गतिविधियों जैसे-आकर्षक चेतना सत्र, बच्चों का गणवेश में विद्यालय आना, समय की प्रतिबद्धता, खेलकूद तथा कला के साथ जोड़कर शिक्षण को किया जाना, वर्ग संचालन दैनिक समय सारणी के अनुसार चलाया जाना आदि विद्यालय की खूबसूरती मानी जाती है। ऐसा होने पर ही विद्यालय में बच्चों का नामांकन के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। इसके अलावे विद्यालय परिसर में बच्चों के मानसिक तथा सांस्कृतिक विकास के लिये संगीत, नृत्य, शिक्षण में कला का समावेश किया जाना आवश्यक है साथ ही विद्यालय में समय-समय पर विश्व के महापुरुषों की जीवनी के बारे में चर्चा किया जाना नितांत आवश्यक है।
विद्यालय में नामांकित होने वाले बच्चों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए विद्यालय प्रधान की सक्रियता बहुत मायने रखती है। विद्यालय प्रधान की सक्रियता का अर्थ हुआ विद्यालय प्रधान का रहन-सहन, समय की पाबंदी, विद्यालयी कार्यों के प्रति जागरूक रहना, विद्यालय तथा वर्ग कक्ष का पर्यवेक्षण तथा मार्गदर्शन करना। इस तरह की गतिविधि जब विद्यालय प्रधान करेंगे तो बच्चों का विद्यालय में नामांकन बढ़ेगा।विद्यालय प्रधान तथा अन्य शिक्षकों को भी चाहिए कि वह पोषक क्षेत्र के अविभावक से लगातार संपर्क बनाकर लोगों को शिक्षा की विशेषताओं तथा आने वाले भविष्य के निर्माण के लिए शिक्षा की आवश्यकताओं के बारे में जनता को बताने का प्रयास करे तथा लोगों को अपने बच्चे-बच्चियों को विद्यालय जाने के लिए प्रोत्साहित करने की सलाह दें। ऐसा करने से विद्यालय में नामांकन कराने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या में स्वतः वृद्धि होगी। इसके अलावे विद्यालय में कभी-कभी कुछ कार्यक्रम कराकर बच्चे-बच्चियों को प्रोत्साहित किए जाने से विद्यालय की ओर अग्रसर होने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि होगी।
यदि विद्यालय में पठन-पाठन की स्थिति सुदृढ़ तथा गुणवत्तापूर्ण तरीके से होगी तो उस विद्यालय में बच्चे नामांकन के लिए लालायित होंगे। विद्यालया में शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों जैसे उन्नयन बिहार, ऑनलाइन शिक्षा, बच्चों के द्वारा रंगोली बनवाने का प्रयास करना तथा खेल-खेल में बच्चों का मनोयोग्यात्मक तरीके से मानसिक विकास करवाने की कोशिश करते हुए शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन कराने का प्रयास करने जैसी गतिविधियों की चर्चा दूर-दूर तक होने से बच्चों में विद्यालयी आकर्षण बढ़ेगा, इसके साथ  ही विद्यालय के ससमय संचालन होने से भी विद्यालय में बच्चों का नामांकन बढ़ेगा।
          जहाँ तक सरकारी तौर पर घर-घर जाकर बच्चों के "नामांकन पखवारा" चलाकर बच्चों के नामांकन 
कराने की सरकार की सोच बहुत अच्छी है क्योंकि किसी भी कार्य की सफलता के लिए लोगों के बीच जागरूकता आवश्यक है। बिहार शिक्षा परियोजना के द्वारा शिक्षकों को घर-घर जाकर बच्चों के नामांकन के लिए अधिक से अधिक जागरूक किया जाना बहुत आवश्यक है।अविभावकों में शिक्षा का जीवन के लिए उपयोगिता को समझाया जाना चाहिए ताकि लोग अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए इच्छुक हो सके तभी विद्यालय में बच्चों के नामांकन में अपेक्षाकृत तथा अप्रत्याशित बढ़ोतरी होने की संभावना होगी।


श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक 
राज्य संपोषित उच्च विद्यालय 
पंजवारा, बांका

4 comments:

  1. बिलकुल ठीक है सर।
    ग्रामीण परिवेश में माता पिता को अपने बच्चों के लिए टाइम नही है।
    और हम टीचर को भी टाइम नही है कि बच्चो के घर-घर जाये।

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    1. माता पिता को अपने बच्चे के लिए टाइम इसीलिए नहीं है क्योंकि उनमें शिक्षा की कमी है और हमें ऐसे माता-पिता को शिक्षा के प्रति जागरूक बनाना होगा।

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  2. Jab garjiyan sahyog karenge to shikshak bhi pura sahyog karte hai lekin samaj unhe beizzat karte to shikshak bhi apna kam nahi karna chahte hai iska jimmewar samaj hota hai

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  3. बहुत अच्छी रचना है सर जी।

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