Friday, 17 July 2020
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भाग्य से नहीं मेहनत से मिलती है सफलता-देव कांत मिश्र
भाग्य से नहीं मेहनत से मिलती है सफलता
सफलता यूँ ही अनायास नहीं मिल जाती। इसके लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है। इसमें मेहनत की भूमिका 95 फीसदी होती है तो भाग्य की 5 फीसदी। अतः हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना भाग्य के भरोसे ही तो रहना है। अब जरा सोचिए और इस बिंदु पर अच्छी तरह व्यापक स्तर पर चिंतन कीजिए कि सिर्फ भाग्य के भरोसे रहना सही है क्या? प्रायः यह सुनने में आता है, मनुष्य का भाग्य सात तालों, सात पर्दों के भीतर कैद रहता है। उसे कैद से मुक्त करवाने में आत्मविश्वास, लगन, जज़्बा दृढ़संकल्प, साहस व कोशिश की महती भूमिका होती है। यदि साहस बरकरार रहा, हौसला बुलंद रहा तो चाहत की बहुमंजिली इमारत का दरवाजा व्यक्ति का स्वागत करते हुए एक दिन अवश्य खुल जाएगा। व्यक्ति वहाँ पहुँच सकता है जहाँ वह पहुँचना चाहता है। इसमें भाग्य की इतनी बड़ी भूमिका नहीं होती जिसके इंतजार में बहुत समय वह खर्च कर देता है। मेरी राय में इस दुनियाँ में दो प्रकार के व्यक्ति हैं। पहला वह, जो जीवन में आने वाली कठिनाईयों के कारण अपने नसीब को कोसने में छोटी-छोटी खुशियों से महरूम हो जाता है तथा दूसरा वह जो ज़िन्दगी की मुश्किल राहों को चुनौती मानकर साहस से उनका मुकाबला करने में खुशी का एहसास करता है और सफलता की ओर बढ़ता जाता है। यह व्यक्ति पर ही निर्भर करता है कि वह स्वयं को कहाँ देखना चाहता है?
एक बात दीगर है 'यदि' शब्द गणितीय क्षेत्र में हो तो ठीक प्रतीत होता है पर जीवन के क्षेत्र में यह व्यक्ति को कहीं का नहीं छोड़ता। भाग्य उन्हीं को ही कोसता है जो सोचते हैं, कहते हैं, पर करते कुछ नहीं। जो व्यक्ति या पढ़ाई करने वाले छात्र सही सोच के साथ साहस, लगन से आगे बढ़ते हुए मेहनत को जामा पहनाते हैं आखिर भाग्य को मुट्ठी में बंद कर ही लेते हैं। ऐसा किसी भी क्षेत्र में, चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो या कोई अन्य क्षेत्र हो सकता है। उदाहरणस्वरूप 2014 के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई व कैलाश सत्यार्थी के साहस व धैर्य को भुलाया नहीं जा सकता है। इन्होंने साहस को अपना साथी बना लिया। सत्यार्थी जी ने तो देश और विदेश में करोड़ों बच्चों को बाल श्रम के अभिशाप से मुक्त करा कर स्कूल तक पहुँचाया। तभी तो इस हौसला अफजाई हेतु उन्हें इस पुरस्कार हेतु उपयुक्त समझा गया। बिहार के गहलौर गाँव के निवासी दशरथ मांझी जिन्होंने हाथ में कुदाल व कुस्सा लेकर पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया। एक समय तो लोगों ने उन्हें पागल कहना शुरू कर दिया था परन्तु कार्य के प्रति उपजे साहस को देखकर गाँव तथा पास पड़ोस के लोग भी छेनी व हथौड़ा लेकर दशरथ मांझी का साथ देने लग गये। सच में, उन्होंने सिद्ध कर दिया कि हमें भाग्य व भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए, क्या पता भाग्य व भगवान हमारे भरोसे बैठे हों।
जरा सोचिए आजादी की जंग में यदि महात्मा गांँधी, पंडित जवाहरलाल ठेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, पटेल, भगत सिंह व चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों के शासन को भाग्य की देन समझते तो क्या अंग्रेजों को खदेड़ा जा सकता था? क्या हमें आजादी मिल सकती थी? सच में, इनके साहस ने उन्हें दिखा दिया कि यहाँ टिकना अब आसान काम नहीं है। इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है। महाराणा प्रताप के पास मुगलों की तुलना में मुट्ठी भर सेना ही थी। भाग्य रेखा मुगलों से हल्की होने का संकेत दे रही थी। फिर भी अपने साहस से मुगलों की सेना के छक्के छुड़ाते रहे। ताउम्र वे स्वतंत्र शासक के रूप में अपने साहस के बल पर जिया। इस सम्बंध में रस्किन ने ठीक ही कहा है- जब साहस टूट गया तब मानो सबकुछ लुट गया।
साहस के बल पर जीवन में बहुत कुछ किया जा सकता है साथ ही मेहनत बहुत जरूरी है। कहने का तात्पर्य है कि छात्र जीवन बहुत ही बहुमूल्य होता है। इस नाते उन्हें कड़ी मेहनत करनी चाहिए। आज उनके अध्ययन हेतु बहुत सारे शिक्षा संबंधी एप्स दूरदर्शन पर उपलब्ध हैं। इसे दिखाया भी जा रहा है। Mobile पर आज पाठ्यक्रम तथा सामान्य ज्ञान संबंधी कई चीजें उपलब्ध हैं जिससे अधिकांश छात्र लाभान्वित हो सकते हैं। Nishtha app, E.pathshala, Diksha, picture book , Animals sound, Unnayan app तथा अन्य कई सारे ऐप्स उपलब्ध हैं जो बच्चों के लिए लाभदायक व कारगर सिद्ध हो सकते हैं। पर इसके साथ-साथ निर्धारित पाठयपुस्तकों को पढ़ना जरूरी है न कि सिर्फ एप्स से ही चिपके रहना।
Teacher's of Bihar भी पूरे जोश व लगन के साथ बच्चों को on line (School On Mobile) पर शिक्षा देने में अग्रसर है। ज्ञान दृष्टि, ज्ञान दिवस, ई-संग्रह तथा संडे फंडे कार्यक्रम वाकई में लाजबाव हैं तथा कुछ ऐसी भी कहानियाँ हैं जो काफी अच्छी लगती हैं। कला समेकित अधिगम के अन्तर्गत तरह-तरह की चिड़ियाँ व जानवर बनाने की कला, टोपी व फूल बनाने की कला, कविता लिखने की कला तथा पेपर के माध्यम से अन्य अच्छी चीजों को बनाने की कला उत्कृष्ट व सराहनीय है। योग तथा संगीत सिखाने की कला तो बेजोड़ है। इस कार्य में शिक्षकों का बहुमूल्य योगदान है। शिक्षक मन से पढ़ाते हैं तथा होमवर्क भी देते हैं। यह तो उनकी कर्मठता व निपुणता का ही द्योतक है तथा इस ओर ध्यान आकृष्ट करने वाले एवं इस कार्य को अमलीजामा पहनाने वाले रहनुमा धन्यवाद के पात्र हैं जिनके कुशल नेतृत्व में ऐसा संभव हो सका है। जरा तनिक विचार किया जाय तो पता चलता है कि यह समग्र प्रयास व मेहनत से ही संभव है। वस्तुतः जहाँ बच्चे एक ओर पढ़ना चाहते हैं तो वहीं हमारे ऊर्जावान शिक्षक ज्ञान रूपी स्याही को कम होने देना नहीं चाहते हैं। वे सदा सक्रिय हैं। समग्र प्रयास व बेहतर तालमेल से ही हम शिक्षा के नींव को मजबूत कर सकते हैं। बच्चों के लिए ऐसी सुन्दर चीजें जो ज्ञानोपयोगी हैं वह वर्तमान में हमें TOB सम्यक ढंग से परोस रहा है। अब वह दिन दूर नहीं जब SOM शिक्षा के रंगमंच पर बेहतर सिद्ध होगा। लेकिन गौरतलब है: पढ़ना उन्हीं(बच्चों) को है, मेहनत उन्हें ही करनी है। आगे उन्हीं को बढ़ना है।
समय कह रहा है तकनीक की तरफ बढ़ो। इस तकनीकी अध्ययन में अच्छाई का रंग उन्हें ही भरना है। बगैर परिश्रम किए कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। यह सर्वथा रूप से सत्य है। तकनीक आज समय की माँग है। ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाली शिक्षा पूर्णतः तकनीक से जुड़ी होगी।इसमें अभिभावकों को भी सक्रिय भूमिका अदा करनी होगी। उन्हें यह देखना होगा कि हमारे बच्चे अपने कार्य के प्रति क्रियाशील हैं कि नहीं। वे सही दिशा में जा रहे हैं कि नहीं। साथ ही विद्यालयी छात्र अपनी बुद्धि, विवेक व साहस से बाल श्रम, बाल विवाह तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों से संबंधित अभियान को शिक्षक के माध्यम से संचालित कर सकते हैं, लोगों को जागरूक कर सकते हैं। जो बच्चे विद्यालय नहीं आते हैं, उन्हें आने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। कभी कभी तो एप्स में भी सामाजिक कुरीति से संबंधितत Videos दिखाए जाते हैं। इस कार्य में मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। मेहनत एक न एक दिन रंग लाती ही है। मेरी राय है- 'Fortune can't help the idle man. It helps diligent person. इसके साथ-साथ हमें प्रसिद्ध लेखक विष्णु शर्मा के कथन को गौर करना चाहिए: "भाग्य निश्चित रूप से उसी का है जो लगातार संघर्ष करता है"। आपके साहस व पौरूष से मिली जितनी ताकत आपके पास है, उससे भाग्य पर प्रहार करें, फिर क्या बात है कि आपको जीवन में असफलता का मुँह देखना पड़े। अतः हम अपने जीवन में भाग्य नहीं, अपितु मेहनत को गले लगाएँ। निःसंदेह इसी से सफलता हमारी कदम चूमेगी। मेरी राय में,
भाग्य पर मत इठलाएँ, श्रम को गले लगाएँ।
जीवन खिल उठेगा, कदम तो आगे बढाएँ।।
देव कांत मिश्र
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज, भागलपुर
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सुंदर आलेख।
ReplyDeleteयथार्थ जीवन को समर्पित बेहतरीन आलेख। हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐
ReplyDeleteसुंदर आलेख। परिश्रम सफलता की कुंजी है। कहा भी गया है - अपना हाथ जगन्नाथ। हार्दिक बधाई।👌👌💐💐
ReplyDeleteBilkul satya.
ReplyDeleteInspire karne wala aalekh.very nice sir.
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