वसुधा के आकर्षक श्रृंगार-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु - Teachers of Bihar

Recent

Monday, 6 July 2020

वसुधा के आकर्षक श्रृंगार-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु

वसुधा के आकर्षक श्रृंगार
          
          वर्षा ऋतुओं की रानी है तो हरियाली वसुंधरा के हरित एवं सुंदर आभूषण है। हरियाली के बगैर धरती उजाड़ व वीरान दिखती है। पेड़ - पौधे से विहीन धरती कुरूप और चीर - विहीन लगती है। धरा के श्रृंगार के लिए, सौंदर्य व सुषमा के लिए पेड़ - पौधों का रहना उतना ही अनिवार्य है जितना हमारे लिए परिधान । पेड़ - पौधे धरती के लिए सुंदर एवं आकर्षक वसन हैं।  धरती पर निवास करने वाले पशु - पक्षी, जीव - जंतु एवं मानव  प्राणी का तभी तक अस्तित्व है जब तक धरती का आंचल हरियाली युक्त है। 
          पेड़ - पौधे हमारे जीवन  दाता हैं। हमारे लिए प्राणवायु ऑक्सीजन की आवश्यकता हो, पीने के लिए शीतल जल की आवश्यकता हो अथवा क्षुधा तृप्ति के लिए खाद्य- पदार्थों की आवश्यकता हो, इन सारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनस्पतियाँ ही एकल स्त्रोत हैं। वायुमंडल में बढ़ता हुआ कार्बन डाइऑक्साइड गैस  की मात्रा हो, धरती का बढ़ता हुआ तापमान हो, पिघलते हुए ग्लेशियर हों, वर्षा की अनियमितता हो इन सभी प्राकृतिक संकटों का निवारण पेड़ - पौधों का बड़े पैमाने पर रोपण ही है। बड़े-बड़े उद्योगों, कल - कारखानों, लघु - उद्योगों के संचालन में भी वन - उत्पाद की  आवश्यकता होती है। हमारी दैनिक जरूरतों की पूर्ति का सवाल हो, ईंधन,  फर्नीचर, कागज, वस्त्र सभी में वन- उत्पादों की ही आवश्यकता होती है।
          वन संसाधनों के इतना उपयोगी होने के बावजूद इसका दोहन बदस्तूर  जारी है।  हरे एवं कीमती वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के रूप में, वन - उत्पादों की तस्करी के रूप में, वन के ठेकेदारों के कालाबाजारी के रूप में और समाज की उदासीनता के रूप में । वन एवं वन उत्पाद की उपयोगिता और वन विनाश एवं वन उत्पाद पर आसन्न संकट के निवारण के उद्देश्य से ही सन 1950 ई. में भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव का शुभारंभ किया था। तब से हम प्रत्येक वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव का आयोजन करते हैं। 
          इस सप्ताह में स्कूल, कॉलेज सहित अन्य संस्थाओं द्वारा पौधारोपण किया जाता है । राज्य सरकार एवं केंद्र  सरकार भी वृक्षारोपण अभियान चलाती है। राज्य व केंद्र  द्वारा कई पौधशालाएँ भी लगाई जाती हैं जहाँ से वृक्ष प्रेमियों को वृक्षारोपण करने हेतु निःशुल्क नवोद्भिद पौधें दिए जाते हैं। इस दिशा में जन प्रतिनिधियों के सहयोग से प्रखंड एवं  पंचायत में भी जल जीवन हरियाली जैसी महत्वाकांक्षी योजना चलाई जा रही है।
          इधर वृक्षारोपण हेतु जन - जागरूकता भी काफी  फैली है जो एक सुखद संकेत है । कोई भी आयोजन हो, समारोह हो, उद्घाटन हो, कार्यक्रम हो,  मुख्य  अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों को पौधा देकर सम्मानित करने की परंपरा सी बन गई है। उनके कर - कमलों से  हम पौधारोपण भी कराने लगे हैं । जागरुक एवं पर्यावरण के प्रति संवेदनशील आम लोग भी अब वृक्ष लगाना अपनी जीवनशैली में शामिल कर लिए हैं। शिशु का जन्मोत्सव हो, विवाह का रस्म हो या कोई शुभ मुहूर्त या विशेष दिवस हो।  इन सभी अवसरों पर पौधा रोपण हमारा रस्म रिवाज बनते जा रहा है । वृक्षारोपण की यह संस्कृति निश्चय ही सकारात्मक परिणाम देने वाला है। भावी पीढ़ी को वृक्षों से हरी - भरी धरती सौंपने की दिशा में यह सर्वमान्य व  सर्वोत्तम कदम है। 
          मानव जीवन का विकास प्रकृति की गोद में ही  हुआ। आदि - मानव  पहाड़ों की गुफाओं में, कंदराओं में, वृक्षों के मचान आदि पर रहा करते थे। वृक्ष के छाल व पतियों से बने वस्त्र पहनना, पेड़ - पौधों से ही कंद-मूल, फल आदि खाद्य पदार्थ प्राप्त किया जाना इत्यादि के कारण वन हमारे आदि पोषक हैं, आदि पालक हैं। मानव सभ्यता के विकास में वन एवं वनस्पतियों की बड़ी भूमिका रही है। आज यदि हमारा हँसता खेलता जीवन है, सुवासित एवं उल्लसित जिंदगी है तो इसमें पेड़ - पौधों की अहम भूमिका है । वन हमारे पूजनीय देवतास्वरूप हैं। कई वृक्षों यथा - पीपल, आंवला, बरगद, बेल, केला आदि पूजित हैं।  अतः वनस्पतियों की अनिवार्यता को देखते हुए हमें हर हाल में पेड़ - पौधों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। 
          भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2019 के अनुसार हमारा देश वन एवं पेड़ - पौधों से 25 .5% आच्छादित है अर्थात भारत में 8 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल पर वनस्पतियाँ मौजूद हैं । जबकि बिहार में वन क्षेत्र का प्रतिशत राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.1 प्रतिशत है अर्थात बिहार में कुल 6764 वर्ग किलोमीटर भू-भाग पर वन एवं पेड़ - पौधे लगे हैं । बिहार के कुछ ही जिले ऐसे  हैं जहाँ मुख्यतः वन - क्षेत्र है जैसे - पश्चिमी चंपारण, रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, गया, जहानाबाद, नालंदा, नवादा, बांका, जमुई, मुंगेर आदि। इस आंकड़े को देखते हुए ऐसे जिले जहाँ वन - क्षेत्र एवं पेड़ - पौधों से आच्छादित भूभाग का प्रतिशत अति न्यून है वहाँ वृक्षारोपण हेतु विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि ऐसे अभियानों  की सफलता एवं विफलता शिक्षकों की भूमिका पर निर्भर करेगी।
          अन्य पेशा  वर्गों में शिक्षक ही ऐसा वर्ग है जिसमें अपेक्षाकृत अधिक सजगता एवं जिम्मेवारी निर्वहण की क्षमता देखी जाती है। वृक्षारोपण जैसे महत्वपूर्ण अभियानों की सफलता शिक्षकों की अग्रणी भूमिका के कारण होगी । अतः शिक्षक समुदाय से अपील है कि वृक्षारोपण को अधिक  से अधिक अपनाएँ। इसमें स्कूली बच्चों को प्रोत्साहित करें । स्कूल का परिसर हो या परती मैदान, पगडंडी हो आहर या पइन का पिंड सर्वत्र उपयुक्त एवं खाली जमीन पर आधिक से अधिक पेड़ लगाएँ । धरती को हरी-भरी बनाए रखना ही वन महोत्सव की सार्थकता है

✍️ चन्द्रशेखर प्रसाद साहु
      प्रधानाध्यापक
      कन्या मध्य विद्यालय कुटुंबा
      औरंगाबाद 
      

5 comments:

  1. बहुत बहुत सुंदर रचना सर 🙏

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छी रचना है । वाकई वन से ही प्रकृति की शोभा है।इसी में आनंद है। अतः हमें प्रकृति के अनुपम श्रृंगार से प्रेम बढ़ाना चाहिए।

    ReplyDelete
  3. 👌👌☘️🌴🍀🎄💐👏✍️✍️ बहुत खूब सर

    ReplyDelete
  4. वन महोत्सव को जीवन उत्सव बनाएंगे
    🌳🌲🎄🌵🌴🌱🌿☘🍀🎍🎋🍃

    ReplyDelete