शिक्षक-नीभा सिंह - Teachers of Bihar

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Saturday, 5 September 2020

शिक्षक-नीभा सिंह

शिक्षक

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु साक्षात परम ब्रम्हा तस्मै श्री गुरुवे नमः।🙏

अर्थात गुरु ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु साक्षात महेश्वर हैं। गुरु ही परम ब्रह्म परमेश्वर हैं। ऐसे श्री गुरु के प्रति मेरा नमन है।
          इस श्लोक में गुरु की तुलना ब्रह्मा से की गई है।जिस प्रकार ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता माना जाता है ठीक उसी प्रकार शिष्य की संपूर्ण जीवन के निर्माण की बागडोर शिक्षक के हाथों में होता है। गुरु का कार्य शिष्य का जीवन निर्माण करना होता है। शिक्षक ज्ञान रूपी आहार देकर शिष्य को जीवन संघर्ष के योग्य बनाता है, उनका चरित्र निर्माण करता है इसलिए उनकी तुलना विष्णु जी के रूप में भी की गई है। शिष्य के दुर्गुण दूर करने  तथा उसकी बुराइयों के संघार करने के कारण शिक्षक को महेश भी कहा गया है ।
इसके अलावा भी कहा गया है कि: "आचार्य देवो भव:"।
          गुरु का दर्जा समाज में हमेशा से पूजनीय रहा है। लोग इन्हें विभिन्न नामों से पुकारते हैं जैसे शिक्षक, आचार्य, अध्यापक, गुरु जी, मास्टर जी इत्यादि। यह सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चिन्हित करते हैं जो सभी को ज्ञान देता है तथा राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करता है। इसलिए इन्हें राष्ट्र निर्माता भी कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार ईश्वर इस ब्रह्मांड के निर्माता हैं, ठीक उसी प्रकार शिक्षक राष्ट्र निर्माता है। एक शिक्षक बच्चों के भविष्य को संवार कर अच्छे राष्ट्र का निर्माण करता है। किसी भी देश का निर्माण में शिक्षक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है। यदि दूसरे शब्दों में हम कहें तो शिक्षक समाज का दर्पण होता है। शिक्षक ही समाज का आधारशिला है। शिक्षक का संबंध केवल विद्यार्थियों को शिक्षा देने से ही नहीं बल्कि छात्रों को हर मोड़ पर राह दिखाना है। उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित करना है। बच्चे शिक्षक को जैसा करते देखते हैं वैसा ही सीखते हैं। अतः हमें अपने आप को आदर्श बनाना आवश्यक है। ऐसा कहा गया है कि:

जो शिष्ट स्वयं हो, दम रखता हो, सबको शिष्ट बनाने की,
झय करता हो दानवता, मानवता बिकसाने को,
ऐसे जन को जगती तौर पर हक है शिक्षक कहलाने को।
          एक शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है। शिक्षक वह पथ प्रदर्शक होता है जो छात्रों को किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि उन्हें मानवता एवं जीवन जीने की कला भी सिखाता है।‌ शिक्षक छात्रों को अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है।

महर्षि अरविंद ने शिक्षकों के संबंध में ठीक ही कहा है कि : "शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों के जड़ों मे खाद देते हैं और अपने श्रम से सींच कर उन्हें शक्ति में परिवर्तित करते हैं।"
          हम शिक्षकों को आनंदमयी अभिव्यक्ति, हँसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को प्रेरित करने के साथ ही साथ उन्हें अच्छा मार्गदर्शन देना एवं छात्रों में उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने के लिए प्रेरित करना आवश्यक है। इस संबंध में एक सच्चे देशभक्त, पूर्व राष्ट्रपति, कुशल प्रशासक, उच्च कोटि के विद्वान शिक्षक एवं राजनीतिज्ञ डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कहना था कि : "यदि छात्रों को सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज के अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। उनका कहना था कि करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। वे कहते थे कि जब तक शिक्षक, शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक मिशन नहीं बनाता तब तक अच्छी व उद्देश्य पूर्ण शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती।" बहुत दुःख की बात है कि वर्तमान समय में शिक्षक की गरिमा को लोग विस्मृत करते जा रहे हैं। शिक्षक की उपेक्षा समाज के लिए घातक सिद्ध हो रही है। अच्छे राष्ट्र के निर्माण में एक शिक्षक का योगदान जितना है उतना और किन्ही का नहीं। राष्ट्र की उन्नति में प्रत्येक क्षेत्र में उनके छात्रों का योगदान रहता है। कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर, खिलाड़ी, अभिनेता, लेखक, राजनेता इत्यादि की भूमिका में अपने अपने क्षेत्र में राष्ट्र उन्नति को दिशा दे रहे होते हैं।
          वर्तमान समय में शिक्षकों की बदलती छवि के बावजूद भी आस-पास ऐसे अनेक उदाहरण आज भी देखे गए हैं जहाँ एक शिक्षक ही पूरे विद्यालय और समाज में बदलाव लाए हैं। 
          पहले भी श्री गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय, रविंद्र नाथ टैगोर तथा डॉक्टर सर्व पल्ली राधाकृष्णन इत्यादि ने अकेले ही  सारे समाज को बदलने की मिसाल प्रस्तुत की हैं। यदि उद्देश्य पूर्ण शिक्षा मिले तो प्रत्येक बालक धरती का प्रकाश है। इसके लिए विद्यालय एवं हम शिक्षक का प्रथम दायित्व एवं कर्तव्य है कि एक अच्छे  शिल्पकार या कुम्हार की भांति सभी बच्चों को इस प्रकार से सँवारे, सजाएँ कि बच्चे विश्व का प्रकाश बनकर सारे विश्व को अपनी रोशनी से प्रकाशित करें।
इसके अलावा आवश्यकता है देश की परिस्थिति के अनुरूप अपने शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने की, शिक्षा को समाज से जोड़ने की तथा शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त अनियमितताओं तथा विषमताओं को दूर कर शिक्षा सर्व सुलभ बनाए जाने की। केवल कागजों पर ही नहीं बल्कि यथार्थ में हम शिक्षकों का आचार व्यवहार शिक्षार्थियों के लिए आदर्श बन सके।
          अपने आदर्शों एवं चरित्र के द्वारा बच्चों के मानस पटल पर अपनी ऐसी छाप छोड़नी पड़ेगी कि जिससे भविष्य में यह बच्चे जब गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु का उच्चारण करें तो बंद आँखों के सामने उनके शिक्षक का चेहरा उन्हें दिखाई दे। यह एक चुनौती भरा कार्य है परंतु सच्चा शिक्षक वही है जिसे उसके विद्यार्थी जीवन भर अपना गुरु मानते रहे न कि सिर्फ विद्यालय प्रांगण के अंदर तक हीं सीमित रह जाए।
          तो आइए  हम सभी शिक्षक दिवस के अवसर पर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षाओं और उनके आदर्शों एवं जीवन मूल्यों को अपने जीवन मैं आत्मसात करें एवं पून: भारत को जगतगुरु की उपाधि प्राप्त करवाने का संकल्प लें।🙏🙏💐💐💐💐.  

            
नीभा सिंह,
मध्य विद्यालय जोगबनी
फारबिसगंज अररिया

5 comments:

  1. शिक्षक दिवस पर बहुत ही प्रेरणात्मक रचना 🙏👌

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  2. Happy Teacher's Day...very nice,👌👌👌

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  3. Very nice write up. Beautifully touched the main points of the proposals of enlightening and educating students. 👌👌👏👏 Happy Teacher's Day.

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