शिक्षक दिवस-रीना कुमारी - Teachers of Bihar

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Saturday, 5 September 2020

शिक्षक दिवस-रीना कुमारी

शिक्षक दिवस


          जैसा कि हम जानते हैं  कि माता-पिता के बाद जिनका नाम  आता है वह गुरू है। यानि हमारे शिक्षक जो हमें विद्यालय में, अपने ज्ञान से सींचते हैं तथा हमें संपोषित करते हैं। वे हमें सत्कर्म और अनुशासन का पाठ पढ़ाकर हमें महान बनाने का हरसंभव प्रयास करते हैं, वो हमारे गुरु ही होते हैं। इसलिए  मनुष्य के जीवन में माता-पिता और गुरु का स्थान महत्वपूर्ण होता है।
          भारत  देश में ऐसे कितने महान गुरू हुए जिन्हें  याद करना  सूर्य  को  दीपक दिखाना है। उन्हीं  महान गुरू की श्रेणी में डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। धन्य है यह भारत भूमि जहाँ ऐसे महान गुरू का जन्म हुआ । डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को सम्पूर्ण भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म 5 सितम्बर 1888 ई.को हुआ था। उनका जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गाँव में हुआ था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्हें सर्वपल्ली का सम्बोधन विरासत में मिला था। राधाकृष्णन के पूर्वज सर्वपल्ली गाँव में रहते थे। वे 18वीं शताब्दी के मध्य में तिरुतनी गाँव में बस गये थे। वहीं इस महापुरूष का जन्म हुआ। इनका जन्म बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था।
          वे बचपन से ही मेहनती और पढ़ाई में अव्वल आते थे। उन्हें विद्यार्थी जीवन में कितने पुरुस्कार भी मिले थे। वे एक महान शिक्षक और महान दार्शनिक थे। वाकपटुता इनमें कूट-कूट कर भरी थी। वे अपने जीवन के 40 वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किये। उन्हें आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है। उनका जन्म दिन भारत में शिक्षक दिवस के रुप में मनाकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति के पद को सुशोभित हुए थे। 1962में वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति तथा 1967 में द्वितीय राष्ट्रपति बने। उनका राष्ट्र के निर्माण में तथा शिक्षा, समाज, संस्कृति, राजनीति इत्यादि के क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान रहा जिसका सम्पूर्ण भारत देश ऋणी रहेगा। उनका कहना था कि मेरे जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाय। इससे हमें खुशी का अनुभव होगा। अतः 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। यह सम्पूर्ण भारतवासियों के लिए गौरवमय दिन है। वाकई यह दिन अपने गुरुजनों के प्रति सच्चे शिष्य होने की झलक को दिखाता है। जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी आई, वे बहुत  बीमार रहने लगे और दिनांक 17 अप्रैल 1975 को लम्बी बीमारी के बाद इस महापुरुष का निधन हो गया। प्रति वर्ष 5 सितम्बर को हम सभी शिक्षक दिवस के रुप में मनाते हैं और मनाते रहेंगे।
          आधुनिक युग में शिक्षक को कुछ लोग अलग ही निगाह से देखने लगे हैं जबकि शिक्षक होना एक गर्व की बात है। शिक्षक बड़ा ही पवित्र शब्द है। हमारे वेद, उपनिषद जैसे धर्म ग्रंथ में शिक्षक को गुरु कहकर ही सम्बोधित किया जाता था। गुरु शिष्य की परम्परा सदियों से चली आ रही है। वास्तव में 'गुरू' दो अक्षर के मेल से बना शब्द है। गुरु में पहला अक्षर 'गु' का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है निरोधक अर्थात गुरु वह है जो शिष्य के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर देता है। गुरु अपने अध्ययन की परिधि का विस्तार करते हैं। वे शास्त्र चिन्तन करते हैं कि कहीं कोई विषय को समझने में उन्हें  शंका उत्पन्न कभी भी न हो। एक अच्छे गुरु में ज्ञान को पाने की और ज्ञान बाँटने की बड़ी ही तीव्र पिपासा होती है। वे अपनी ज्ञान की ज्योति को विकीर्ण करते हैं। एक शिक्षक उस मोमबत्ती की तरह होते हैं जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देते हैं। शिक्षक, अध्यापक, गुरू ये सारे शब्द एक ही हैं। ये सारे शब्द एक शिक्षक के लिए ही प्रयोग होता है।
          आदर्श शिक्षक अपने छात्रों के हृदय में शुभ संस्कारों का सृजन करते हैं इसलिए ब्रह्मा कहलाते हैं। उनकी रक्षा करने के नाते विष्णु हैं और अशुभ संस्कारों, कुप्रवृत्तियों को हटाने वाले भगवान शंकर होते हैं। जिस प्रकार कुम्हार बाहर से घड़े को ठोकता है, पीटता है तथा भीतर से हाथ का सहारा देकर घड़े का निर्माण करता है, उसी प्रकार अच्छे और आर्दश शिक्षक भी अपने स्नेह पूर्ण व्यवहार से छात्र को सहारा देते हुए ऊपर से  जरुरत पड़ने पर डॉट फटकार कर, किंतु अंदर से शिष्य का शुभ और सुन्दर चरित्र निर्माण करता है। ऐसे सुनिर्मित शिष्य ही राष्ट्र के भावी कर्णधार होते हैं इसलिए शिक्षक राष्ट्र निर्माता भी कहलाते हैं। यदि शिक्षक अपने छात्र का निर्माण सही से न करे तो राष्ट्र का भविष्य मिट्टी में मिल जाएगा। गुरु शिष्य को अपने क्रोध रूपी भावना से नहीं बल्कि प्रेम के बन्धन में बाँधकर रखते हैं। शिक्षक कभी संकुचित दृष्टि के शिकार नहीं होते हैं। वे जाति, धर्म, रंग-रूप या वाद-विवाद में नहीं उलझते। उनकी नजर में सभी छात्र बराबर होते हैं। वे अमीर गरीब छात्रों में भेद नहीं करते,सभी से समान व्यवहार करते हैं।
          मनुष्य के जीवन में गुरु का होना अतिआवश्यक है। बिना गुरु ज्ञान कहाँ? कहने  का तात्पर्य है कि बिना गुरु के ज्ञान संभव ही नहीं। इतिहास भी गवाह है कि बिना गुरू के कोई भी सफल नहीं हो पाया है।


 रीना कुमारी (शिक्षिका)
 प्रा० वि० सिमलवाड़ी पश्चिम टोला, बायसी, पूर्णिया, बिहार

6 comments:

  1. बहुत ही अच्छी रचना है। आपने गुरू शब्द का सुन्दर विश्लेषण किया है। बहुत बहुत धन्यवाद!

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  2. बहुत ही अच्छी रचना है। आपने गुरू शब्द का सुन्दर विश्लेषण किया है। बहुत बहुत धन्यवाद!

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  3. बहुत खूब, बहुत खूब रीना मैडम आपने तो गुरू शब्द का विश्लेषण कर एक माला में पिरोया है। Thanks Madam

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  4. I'm a teacher ofbihar

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  5. How are think today

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