नाम में बहुत कुछ रखा है-मो. जाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Thursday 25 March 2021

नाम में बहुत कुछ रखा है-मो. जाहिद हुसैन

नाम में बहुत कुछ रखा है

          प्रवेशोत्सव चल रहा है। किशोरी लाल अपना एक प्यारा सा बच्चा को लेकर विद्यालय में नाम लिखवाने के लिए पहुंचा। मैंने बच्चे में काफी उमंग-तरंत देखा। अभिभावक ने उसे अच्छे कपड़े भी पहना रखा हुआ था। उसकी खुशी देखते बन रही थी। उसकी चंचलता मुझे भा रही थी। उसके माथे पर तेज और आंखों में साथियों के साथ विद्यालय आने की चमक एवं ललक साफ दिख रही थी। मैंने अभिभावक से पूछा, "बच्चे का नाम क्या है?" अभिभावक ने जवाब दिया- धूरिया। मतलब क्या होता है? सर, यह और जब छोटा था तो यह धूल में ही लेटा रहता था। इसके कपड़े काफी गंदे हो जाते थे। इसलिए लोग इसे "धूरियां धूरियां" पुकारने लगे। सर, गलती मेरी ही है। प्रारंभ में ही मुझे "धुरिया"  के नाम से नहीं पुकारना चाहिए था। लोगों ने इस नाम को ही पकड़ लिया और पूरे गांव वाले इसी नाम से पुकारने लगे। सर, ऐसे तो यह जब पैदा हुआ था तो इसकी मां ने 'राजा' नाम रखा था, जब तक वह जिंदा रही, इसी नाम से पुकारती रही। अब वही राजा 'धूरियां' बन चुका। गांव में लोग 'धूरियां, धूरियां" नाम से ही पुकारते हैं। मुझे सुनकर बड़ा अटपटा लगा फिर मैं सोचने लगा। यह बच्चा जो कल का हिंदुस्तान है। सोचते-सोचते मेरे मस्तिष्क में एक नाम सूझा। यह लड़का कल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या देश का नाम रौशन करने वाला हो सकता है और यह पूरे भारत के आकर्षण का केंद्र हो सकता है। विकास का कारण बन सकता है। इसलिए इसे क्यों न 'राष्ट्र की धूरी' अर्थात "राष्ट्रधूरी" नाम रख दूं। अभिभावक भी इस नाम से सहमत हो गये। सर, आप बेहतर जानते हैं। आपने तो नाम रख दिया है। जरूर इसका भविष्य उज्जवल होगा। 
          कहा जाता है- "नाम में क्या रखा है?" तो जान लीजिए। नाम पूरी जिंदगी भर प्रभाव डालता है- अच्छा हो या बुरा। बच्चे का नाम उसके पालन-पोषण, परिवेश, शिक्षा-दीक्षा, संस्कार आदि का द्योतक होता है। यदि बच्चे का नाम ही गोबर रखेंगे तो मुमकिन है, उसमें हीन भावना पैदा होगी और डर है कि वह गोबर गणेश ही न बन जाए क्योंकि बच्चे जब बड़े होते हैं तो अपने नाम के अर्थ को अर्थ देना चाहते हैं। अटपटे नामों से उनमें निश्चित रूप से हीन भावना पैदा होती है। कुंठा पलती है और आगे वह जीवन में असफल साबित होता है।
          मेरा अपना विचार है कि बच्चे का नाम पुकारू (Nick name) नहीं रखना चाहिए। सामान्य तौर पर लोग अपने बच्चे को गुड्डू, मुन्ना, मुन्नी, चुन्नी, बबली, लवली, डाॅली, कल्लू,  सल्लू , टुन्नी, कारू आदि नाम से पुकारते हैं। माता-पिता हो या कोई  और जब भी इन नामों से पुकारते हैं,  वास्तविक नाम गौण हो जाते हैं। राज कुमार- राजू , रितेश कुमार -रित्तु, यशोधरा- यशी, लाडली- लाडो बन जाते हैं। असली नाम क्या है? पास-पड़ोस के लोगों को भी नहीं पता। यहां तक कि रिश्तेदार भी असली नाम नहीं जानते। यदि किसी का पुकारू नाम लल्लू है तो उसे जिंदगी भर लोग लल्लू ही पुकारते हैं- जैसे वह बचपन से प्रौढ़ावस्था तक "लल्लू का लल्लू" ही रह गया है। अधिकतर मां-बाप बच्ची का नाम प्यार से  "गुड़िया" पुकारते हैं। असली नाम क्या है? लोगों को पता नहीं होता। क्या होता है? वह बुढ़िया तक "गुड़िया" ही रह जाती है। विद्यालयों में नामांकन प्रवेशोत्सव के दौरान नाम लिखते समय शिक्षकों का दायित्व है कि बच्चे का नाम अच्छा रखने की सलाह अभिभावक को अवश्य दें क्योंकि पहली तकदीर तो मां-बाप ही लिखते हैं, फिर उसके बाद उस्ताद का मर्तबा या स्थान आता है। उस्ताद भी अच्छा नाम रखने में सहयोग करें क्योंकि नाम सही नहीं रहने पर आगे बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ती है। अपनी पहचान को स्थापित करने के लिए अलग से परिश्रम करना पड़ता है। सुंदर वही है जिसका काम सुंदर है। इसे आधार मानकर उसे अपने आप को सिद्ध करने में समय लगता है और भी परेशानियां होती हैं, सो अलग। बच्चों का नाम लिखते समय मां-बाप के नाम का रिकॉर्ड, आधार, बैंक खाता, राशन कार्ड, लाल, पीले कार्ड या अन्य कोई सरकारी सुविधा के कॉर्ड, खतियान, रसीद या फिर बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र या जन्म कुंडली के नाम से मिलते जुलते हों तो आगे बच्चे को बिल्कुल कठिनाई नहीं होती। नाम में साम्यता नहीं रहने से आगे बच्चे को परेशानी होती है। लेन-देन में तो इसका काफी महत्व है, एक अक्षर या स्पेलिंग गलत होने पर बैंक वाले पैसा नहीं देते हैं। इसलिए इस पहलू पर भी ध्यान देना होगा।
          यूं तो शिक्षा का अधिकार -2009 के तहत बिना टी सी और जन्म प्रमाण पत्र के हर हालत में नाम लिखना ही है। सिर्फ अभिभावक से जन्मतिथि और पता आदि का शपथ पत्र लेना होता है और आयु-वर्ग के अनुसार नामांकन किया जाता है। कोई बच्चा चाहे जिस हाल में आए, उसे नामांकन से नहीं रोका जा सकता क्योंकि सरकार की अगली योजना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं बच्चों का विद्यालय में ठहराव है। लॉकडाउन से हुई क्षति की पूर्ति के लिए लगभग 3 महीने का कैच अप (Catch Up) कैप्सूल बनाया गया है जिसमें सिलेबस को गागर में सागर भरने का कार्य किया गया है। बच्चों में आयु-वर्ग के अनुसार दक्षता लाना शिक्षा के अधिकार का मकसद है। अतः इस कानून का पालन करना आवश्यक है।
          लोग अक्सर नाम का मतलब और कारण पूछ बैठते हैं। क्या मतलब है इसका? आजकल यह चलन हो गया है कि नाम में आधा हिंदी -आधा इंग्लिश होता है। यथा- डाॅली कुमारी, बेवी कुमारी, रिंकी कुमारी, रिंकू कुमार, पप्पू कुमार, पिंकी कुमारी, सिंपल कुमारी, टिंकू कुमार इत्यादि जैसे नाम रखे जाते हैं जैसे नाम का अकाल पड़ गया है। यह आधा- अधूरा नाम अभिभावक शौकिया रखते हैं। ऐसे नामों से भी बचने की जरूरत है। पूरा नाम हिंदी में रखें या पूरा ही नाम इंग्लिश में रखें, ज्यादा बेहतर होगा।
          सोलह संस्कारों में नामकरण एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इसका महत्व लोगों को समझाना होगा। पहले तो लोग ज्यादा निरक्षर थे। जिस दिन बच्चा जन्म लेता था उसी दिन के हिसाब से बुधुआ, मंगरा, शनिचरा, इतवारी नाम रख देते थे। अंधविश्वास के कारण मर जी के जो बचता था, उसका नाम तेतरा, गनौरिया, नटवा और गिरनिया आदि रख देते थे। हमें इस मिथक को भी तोड़ना होगा। हालांकि आज सकारात्मक पक्ष भी देखने को मिलता है। नामों पर फिल्मों एवं धारावाहिकों का काफी प्रभाव पड़ा है और अच्छे नाम चुनकर रखे जा रहे हैं। बच्चों के नाम भी पिता से जोड़कर रखे जा रहे हैं। जेंडर वॉइस नेस (Biosness) धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। कुछ आधुनिक नाम इसमें भी सहायक है। इन बातों से समाज में काफी फर्क पड़ा है और पितृसत्ता को तोड़ने का भी कार्य किया हुआ है और  महिला सशक्तिकरण हुआ है। यह आधुनिक युग की अच्छी उपलब्धि है। अब लिंग-भेद करने का जमाना नहीं रहा।
          यह तो मानना ही पड़ेगा कि नाम का भी अपना यश होता है इसलिए बच्चों का नाम कुछ अच्छा रखें। नाम अपने आप में एक परिचय है। नाम सामने वाला को बहुत कुछ समझा देता है। इतिहास गवाह है कि गुरु द्रोणाचार्य की दृष्टि में "राधेय और कर्ण " में अंतर दिखा। रावण बहुत ज्ञानी थे, लेकिन उनके पास घमंड था। उसने माता सीता का हरण किया था। विभीषण ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का साथ दिया था, लेकिन वे घर का भेदी लंका ढाए के नाम से ही जाने जाते हैं। हिटलर ने 40 लाख यहूदियों को बुरी तरह से मौत के घाट उतार दिया था। विश्व में कुख्यात एवं क्रूर तानाशाह के रूप में जाना जाता है। 
          क्या आज कोई अपने बच्चे का नाम रावण, विभीषण या हिटलर या फिर जयचंद रखना चाहता है? बिल्कुल नहीं। क्योंकि यह नाम अपने आप में कुछ नकारात्मक छवियां बयान करते हैं। हां, महान विभूतियों पर बच्चों का नाम अवश्य रखना चाहिए। इसका प्रभाव उसके जिंदगी पर सकारात्मक रूप से पड़ता है। बच्चे का नाम वीर और वीरांगनाओं के नाम पर भी रखना चाहिए। इन सब नामों से उन्हें प्रेरणा मिलती है। सूफी संतों और धर्म गुरुओं के नाम पर बच्चों के नाम रखने से भी उनके जीवन दर्शन को पढ़ने पर उन्हें प्रेरणा मिलती है। इसलिए अच्छे नाम का होना बहुत महत्व रखता है।
 
    

मो. जाहिद हुसैन 
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलह बिगहा
चंडी नालंदा 

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