Wednesday 28 April 2021
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न बनें स्वयं का बाधक-डॉ. सुनील कुमार
न बनें स्वयं का बाधक
एक बार किसी शख्स ने स्वामी विवेकानंद से पूछा, “सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या है ?”
स्वामी जी ने जवाब दिया- “उस उम्मीद को खो देना, जिसके भरोसे पर हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।”
मनुष्य में सुनियोजित कार्य संपादन, जीवनशैली, निरंतर खोज एवं आविष्कार करने की प्रवृत्ति अधिक तीव्र होती है। इसी प्रवृत्ति ज्ञान और उम्मीद के कारण मनुष्य ने विभिन्न युगों में नए-नए आविष्कार करते हुए मानव जाति को एक विकसित रूप दिया है। ज्ञान एक सतत प्रक्रिया है जो वास्तविक अनुभव के अवलोकन से उत्पन्न होता है। समय के अनुसार ज्ञान प्राप्ति एवं समस्या निवारण हेतु शिक्षा के परिदृश्य भी बदलते रहे हैं। इस बदलते परिदृश्य में हमारी भूमिका व्यापक हो गई है। 21वीं सदी में समय के साथ जीवनशैली एवं लोगों की सोच में आया बदलाव एक गहरा सामाजिक और राजनैतिक सवाल बनकर उभरा है।
जब जीवनशैली एवं सोच में बदलाव तेजी से हो रहा है तो नये युग की संभावनाओं को खोजा जाना लाजमी है कि एक आम आदमी नई स्थितियों से सामंजस्य स्थापित कर सके और जरूरत पड़ने पर उनसे मुकाबला भी कर सके। इसी उम्मीद से मानव आगे बढ़ने की कोशिश करता है।
आगे बढ़ने में उसे दो तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पहली बाधा है कि जब कोई सकारात्मक दिशा में कदम बढ़ाना चाहता है तो कुछ लोग उसकी टांग खींचना शुरू करते हैं। मसलन तुम ऐसा नहीं कर सकते, तुम्हारे अंदर वह काबिलियत नहीं है, जब मैं नहीं कर सका तो तुम कैसे करोगे? तुमसे कुछ भी नहीं हो पाएगा..... आदि-आदि। इस तरह की नकारात्मक बातें होनी शुरू हो जाती हैं। जब बात इनसे न बने तो किए जा रहे कार्यों में कुछ न कुछ कमियाँ ढूंढना, नुक्स निकालना शुरू कर देते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि इस क्षेत्र में नकारात्मक सोच वाले स्वयं कुछ नहीं कर पाते इसीलिए वह दूसरों से भी यही अपेक्षा रखते हैं।
इस तरह के लोगों की बातों पर ज्यादा ध्यान न देकर अपने कार्यों पर ध्यान फोकस करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि नकारात्मक सोच वाले लगभग 99% लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं। 1% लोग हमें यह बताते हैं कि आप यह काम जो करने जा रहे हैं उनमें ये-ये कमियां हैं। इस तरह के 1% लोग निश्चित रूप से हमें आगे बढ़ने में मदद करते हैं। लेकिन दूसरा सबसे बड़ा बाधक व्यक्ति स्वयं होता है। वह स्वयं ही अपने आप को आगे बढ़ने से रोकता है। उसके मन में तरह-तरह के नकारात्मक भाव आते हैं। जैसे कि वह इस काम को नहीं कर सकता, इसके लायक वह नहीं है, लोग क्या कहेंगे.... आदि-आदि। यह जो दूसरी बाधा है, वह टांग खींचने वाली पहली बाधा से कहीं अधिक रूकावट डालने वाली बाधा है।
आइए इसे हम एक छोटी सी कहानी से समझने की कोशिश करते हैं।
दो दोस्त जंगल के रास्ते अपने गांव की ओर जा रहे थे। उनमें एक की आयु लगभग 10 वर्ष और दूसरे की लगभग 6 वर्ष थी। रास्ते में 10 वर्ष वाला दोस्त अचानक एक कुएं में गिर गया। वह चिल्लाने लगा, 6 वर्ष वाला दोस्त ऐसा देख घबरा जाता है। अगल-बगल मदद के लिए किसी को जब नहीं पाता है तब कुएं के बगल में रखा रस्सी और बाल्टी अपने दोस्त को बचाने के लिए कुआं में डालता है। कुएं में गिरा दोस्त बाल्टी को पकड़ लेता है। उसका छोटा दोस्त उसे अपनी पूरी ताकत के साथ ऊपर की ओर खींचता है। अपनी संपूर्ण ताकत लगा देता है। वह तब तक नहीं रुकता है जब तक कि अपने दोस्त को बाहर नहीं निकाल लेता है।
दोनों ही दोस्त बहुत डरे, सहमे अपने गांव पहुंचते हैं। जब वे इस घटना को अपने गांव के लोगों के बीच सुनाते हैं तब वहां कोई भी व्यक्ति उनकी इन बातों पर विश्वास नहीं करता है। सभी हंसी में बात उड़ा देते हैं। और इसे असंभव कहते हैं। लेकिन एक व्यक्ति उन बच्चों की बातों को गंभीरता से सुन रहा था। सभी लोगों ने उनसे गंभीरता से सुनने का कारण पूछा और लोगों ने कहा कि आखिर इतना छोटा बच्चा अपने से लगभग दूगनी उम्र एवं वजन के दोस्त को कैसे कुएं से खींच कर निकाल सकता है?
तब उस व्यक्ति ने यह जवाब दिया कि दोनों दोस्त बता तो रहे हैं कि क्या हुआ था? उस व्यक्ति ने कहा कि सवाल यह नहीं है कि छोटे दोस्त ने कैसे इस काम को किया? सवाल यह है कि ऐसा वह क्यों कर पाया? उसका एक सीधा सा जवाब है, क्योंकि छोटे दोस्त के पास वहां यह कहने वाला कोई नहीं था कि तुम इस काम को नहीं कर सकते! यहां तक कि वह स्वयं भी नहीं! वह स्वयं भी सकारात्मक सोच के साथ उस कार्य को कर रहा था। इस प्रकार जो कार्य कुछ लोगों को असंभव लग रहा था, वह कार्य सकारात्मक सोच के कारण संभव हो पाया।
अतः हमें चाहिए कि आगे बढ़ने में हम स्वयं का बाधक न बनें। हम उम्मीद को कभी न छोड़ें। और रही बात दूसरे लोगों द्वारा टांग खींचने की तो जब हम स्वयं पर काबू पा लेंगे तब स्वतः ही टांग खीचने वाले हाथ खींचने लगेंगे, हमारी मदद करने लगेंगे।
✍️ डॉ. सुनील कुमार
डिस्ट्रिक्ट मेंटर औरंगाबाद
शिक्षक, राष्ट्रीय इंटर विद्यालय दाउदनगर, औरंगाबाद
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Bhut hi achhi bat kahani ke zariye btayi h sir apne.
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