Tuesday, 27 April 2021
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कोरोना काल में सकारात्मक सोच को बनाए रखें-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु
कोरोना काल में सकारात्मक सोच को बनाए रखें
क्रूर कोरोना काल में हर आम व खास बुरी तरह भयभीत है। हर पल वह किसी अनहोनी की आशंका से ख़ौफ़ज़दा है। कब किसी के साथ हुई दु:खद घटना के बारे में खबर मिल जाए। इस भीषण संकट में कौन बचेगा? कौन इसकी चपेट में आकर हमसे हमेशा के लिए विदा होगा? कोई भी, कुछ भी इस संबंध में कहने के काबिल नहीं है। कई लोगों ने इस जानलेवा बीमारी से अपनी जाने गंवाई हैं। इसमें काल ने उम्र की सीमा का भी ख्याल नहीं रखा है। क्या किशोर, क्या युवा, क्या बूढा और क्या प्रौढ़? इसके खुंखार संक्रमण से कब और कौन अपनी जान खो देगा, कोई ठिकाना नहीं है।
कोरोना काल का क्रूर चाबुक किस पर पड़ जाए और उसकी इहलीला समाप्त हो जाए, कहना मुश्किल है। क्या मजदूर, क्या दुकानदार, क्या अधिकारी, क्या चिकित्सक, क्या शिक्षक, क्या कर्मचारी कोई भी इससे नहीं बच पा रहा है। जिसकी भी इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर पड़ी, इसकी चपेट में आकर उसने अपनी जान गंवा दी।
हमारे शरीर में मौजूद संक्रामक रोगों को नष्ट करने की शक्ति को प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी सिस्टम) कहते हैं। इस प्रतिरक्षा प्रणाली में कई ऐसे प्रतिरोधक तत्व होते हैं जो हमें बीमारियों से रक्षा करते हैं। ये प्रतिरोधक तत्व यांत्रिक, रसायनिक और जैविक होते हैं। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में दोष आने के कारण हमारे शरीर में जीवाणु, विषाणु एवं परजीवी कृमियों का प्रवेश होने लगता है और हमारा शरीर बीमार हो जाता है।
कोरोना जैसे संक्रामक रोगों से बचने के लिए हमारी इम्यूनिटी सिस्टम का मजबूत होना अनिवार्य है। आहार एवं औषधियों के सेवन से हम अपनी इम्यूनिटी सिस्टम को पावरफुल बनाते हैं। परंतु इम्यूनिटी सिस्टम को प्रबल बनाने के लिए हमारी सोच व विचार का सकारात्मक होना भी अनिवार्य है। सकारात्मक सोच से विपन्न, कमजोर व डरा हुआ व्यक्ति अपनी इम्यूनिटी सिस्टम को संक्रामक रोगों से मुकाबला करने लायक सशक्त नहीं रख पाता। नकारात्मक उर्जा, डर, भय एवं दहशत हमारी इम्यूनिटी सिस्टम को डाउन कर देती है और उपयुक्त औषधि एवं आहार लेने के बावजूद वह रोगों से हार जाता है।
इस करुण काल में हमें हर स्थिति में सकारात्मक बने रहने की जरूरत है। हम संक्रमण की चपेट में हों या ना हों, हमारे अंदर सब कुछ अच्छा होगा, सब ठीक हो जाएगा, हम पूर्णतया स्वस्थ हो जाएंगे, ऐसी सकारत्मक धारणा बनाए रखने की अनिवार्यता है। यदि हम संक्रमित हैं तो भी अपने अंदर यह विश्वास एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना होगा कि बस अब कुछ ही समय की बात है, हम जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगे और पूर्ववत काम करने के लायक हो जाएंगे, हमारी स्थिति में सुधार हो रही है, हम अब ठीक हो रहे हैं, ऐसी भावना रोगी को हौसला देती है, उसमें आत्मविश्वास का स्तर ऊंचा होता है, उसमें रोगनाशक शक्ति महसूस होने लगती है। उसमें जीवन-ज्योति आशा का संचार होने लगता है और उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होने लगती है। इससे उसमें औषधि एवं आहार का भी लाभदायक प्रभाव दिखने लगता है। ऐसे समय में पूर्व में बीती खुशियों के पल को याद करना चाहिए और अपने चित्त को प्रफुल्लित करना चाहिए।
सकारात्मक विचार एवं सोच हमारी शारीरिक क्षमताओं को ऊर्जान्वित करती हैं और हमारे अंदर साहस, आशा, उम्मीद एवं जीने की ललक पैदा करती हैं। इससे हम आगे बढ़ने के लिए कदम उठा लेते हैं। ऐसे जोखिम एवं भयावह काल में यह भी आवश्यक है कि हम अपनी सोच एवं विचारों को मातमपूर्ण माहौल से अलग करें। लगातार मौत जैसी दुखदाई खबरों की ओर से अपना ध्यान दूसरी दिशा में मोड़ना नितांत जरूरी है। हालांकि यह सच है कि रोज-रोज मौत की खबरें सुनना हमारी नियति बन चुकी है फिर भी हमें इस खौफनाक मंजर से अपना ध्यान सकारात्मक रुख की ओर मोड़ना हमारे व हमारे परिवार के लिए जरूरी है। हम अपनी सोच व ध्यान की दिशा अवश्य बदलें।
किताबों व पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ना अपनी सोच व ध्यान को बदलने का प्रभावी तरीका है। आध्यात्मिक ग्रंथ, अच्छे लेखकों की पुस्तकें - काव्य, कहानी, गद्य, ललित निबन्धों, उपन्यासों को पढ़ा जा सकता है। कुछ मोटिवेशनल स्पीच सुना एवं बुक भी पढ़ा जा सकता है। सकारात्मक विचारों वाली पुस्तकें, शिक्षाप्रद एवं अच्छी मनोवैज्ञानिक कहानियां भी हममें अच्छे-अच्छे विचारों का संचार करती हैं। हास्य व मनोरंजक कहानियां भी पढ़ी जा सकती हैं। अध्ययन हमें आनंद देता है, हमारा मार्गदर्शन करता है और हमारे अंदर सद - विचारों का संचार करता है। ध्यान व विचार में संतुलन लाने के लिए अध्ययन एक अच्छा तरीका है।
इस समय टी.वी. में नकारात्मक खबरों की भरमार रह रही है। इसलिए ऐसी खबरों को देखने व सुनने में परहेज करना जरूरी है। स्वस्थ मनोरंजन के लिए अच्छी फिल्मों, धारावाहिकों एवं गीत-संगीत के कार्यक्रमों को सुनना व देखना एक अच्छी जीवनशैली है। खुद को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखकर इस कोरोना काल में इस भयंकर संक्रमण के निदान में अपना योगदान दे सकते हैं।
परिवार के सदस्यों के बीच मनोरंजन के लिए इंडोरगेम, गीत-संगीत, कहानी, कविता, चुटकुले, अंत्याक्षरी आदि का कार्यक्रम किया जा सकता है। इस समय हर एक व्यक्ति अवसाद में है, तनाव में है। वह एक मनोवैज्ञानिक दबाव में है। उसमें खुद को सुरक्षित रखने एवं पूरे परिवार को सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी भरा अवबोध है। ऐसी दशा में उसका ध्यान व विचार सकारात्मक एवं मनोरंजक दिशा में मुड़ना नितांत जरूरी है। इसके लिए घर-परिवार में कला समेकित गतिविधियों का आयोजन किया जा सकता है। गीत, संगीत, नाटक, चित्रांकन, रंगोली, कठपुतली, मॉडल आदि निर्माण का अवसर विकसित किया जा सकता है। योग, व्यायाम व प्राणायाम भी एक अच्छा माध्यम है अवसाद या तनाव से बाहर निकलने का। प्रणायाम व व्यायाम हमें मानसिक शांति एवं प्रसन्नता प्रदान करते हैं। 15-20 मिनट के प्राणायाम से मन व मस्तिष्क शांत एवं प्रसन्न होता है। इससे आनंद एवं सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है। चित्त स्वस्थ एवं प्रसन्न हो जाता है। यह शारीरिक प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त व नियमित करने में सहायता करता है।
आज इस भयंकर त्रासदी से उबरना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इस मानसिक दुरावस्था से बाहर निकलकर और स्वयं स्वस्थ एवं सुरक्षित रहकर ही दूसरों को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने में मदद किया जा सकता है। हमारे अंदर शारीरिक क्षमता एवं सकारात्मक ऊर्जा का विपुल भंडार है। हम अपने अंदर की ऊर्जा, साहस, शक्ति एवं क्षमता की पहचान करें और उसे जागृत कर अपने अंदर उसका संचार करें। हम यह महसूस करें कि हम ऊर्जावान हैं, शक्तिशाली हैं और इस कोरोना वायरस त्रासदी पर बहुत शीघ्र स्थाई विजय प्राप्त कर लेने में सक्षम हैं। यह तभी होगा जब हम सभी दृष्टिकोण से सकारात्मक सोच एवं विचारों को आत्मसात करें।
चन्द्रशेखर प्रसाद साहु
प्रधानाध्यापक
कन्या मध्य विद्यालय कुटुंबा
कुटुंबा औरंगाबाद (बिहार)
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प्रेरक आलेख
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक वह सामयिक लेख के लिए लेखक धन्यवाद का महापात्र है। निराश न हताश लोगों के लिए यह संजीवनी बूटी की तरह ही है
ReplyDelete--मुनेश कुमार शक्ति