योग एक अनमोल वरदान-देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

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Sunday 20 June 2021

योग एक अनमोल वरदान-देव कांत मिश्र 'दिव्य'

योग एक अनमोल वरदान

देखो करके योग को, मिट जायें सब रोग।
अद्भुत ताकत, गुण छुपे, कहते हैं सब लोग।।
    
          सच में, योग का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। अपने को स्वस्थ रखने का एक सशक्त व बेहतर माध्यम है। इसलिए तो कहा गया है-" शरीर रूपी मंदिर की आराधना के लिए योग एक अच्छा माध्यम है।" यह शरीर, ऊर्जा, सांस, भावनाओं तथा बोध के जरिये आध्यात्मिक प्रक्रिया हेतु एक सुगम मार्ग है। एक बात दीगर है जब हमारा तन स्वस्थ रहता है तब हमारा मन सुन्दर व मजबूत हो जाता है। फलस्वरूप जीवन भी सुन्दर हो जाता है। बिना शरीर के स्वस्थ हुए हम सुन्दर जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मेरे विचार के अनुसार- पहले तन फिर मन और फिर जीवन चिंतन। अगर तन रोगग्रसित है तो हमें कोई भी खाद्य-पदार्थ मन को नहीं भायेगा। किसी कार्य को करने में भी मन न लगेगा। अतः इस जीवन में योग अनिवार्य ही नहीं अपरिहार्य है। वस्तुत: योग शब्द संस्कृत के युज् धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है- मेल या जुड़ाव। तन का मन से मेल। वाकई दोनों का यह मिलन व्यक्ति को सामाजिक वातावरण में मौजूद नकारात्मक विचारों के जीवाणुओं से संरक्षित करते हुए अंततः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- योग: कर्मसु कौशलम्।" यानि योग से कर्मों की कुशलता आती है। महर्षि याज्ञवल्क्य के अनुसार- "संयोग योग इत्युक्तो जीवात्म परमात्मनो।" अर्थात् जीवात्मा व परमात्मा के मिलन का नाम ही योग है। यों तो गणितशास्त्र में संख्याओं का जोड़ ही योग है। ज्योतिष विद्या के अनुसार- ग्रहों की विभिन्न स्थितियों को योग कहते हैं। परन्तु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से तन, मन और आत्मा का मिलन ही योग है। सच पूछा जाए तो योग जीवन को व्यवस्थित करने की एक कला है। जीवन प्रकिया की छानबीन है। जीवन का एक संयम व संतुलन है। यह हमारी संस्कृति की एक वसीयत है। एक अमूल्य धरोहर है। यह हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य हेतु बना है।
योग का उद्देश्य: 
* तन को रोगाणुमुक्त कर उत्तम क्षमता का विकास
* अनंतता वह सहजता का अनुभव करना 
* मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना
* रचनात्मक शक्ति का विकास करना
* प्रकृति विरोधी जीवन शैली में सुधार करना
* तनाव से मुक्ति पाना
योग से लाभ: 
* योग हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।
* योग हमारी मानसिक शक्ति को बढ़ाता है जिससे
 किसी भी कार्य को करने में आनंद मिलता है।
* योग से पाचनशक्ति व मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं। दर्द की शिकायत नहीं रहती है।
* योग रक्तचाप व  मधुमेह बीमारी को भी नियंत्रित करने में सहायक होता है।
* योग हमारे अन्दर की बेचैनी को समाप्त कर धैर्य व कार्यकुशलता प्रदान करता है।
योग विशेषज्ञों के अनुसार- 
नियमित योग करने से गायकों की आवाज एवं लय ठोस व मजबूत होती है। छात्रों की स्मरण शक्ति मजबूत होती है। यही कारण है कि प्रतिभाशाली छात्र व गायक योग से जुड़े होते हैं। योग से हमारा तन व मन स्वस्थ रहता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही किसी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। योग के आठ अंग हैं-
यम- शपथ लेना, नियम- आत्मानुशासन, आसन- मुद्रा, प्राणायाम- साँसों पर नियंत्रण, प्रत्याहार- इन्द्रियों पर नियंत्रण, धारणा- एकाग्रता, ध्यान- चित्त की एकाग्रता या स्वरूप चिंतन, समाधि- बंधनों से मुक्ति या परमात्मा से मिलन।
          सचमुच में, योग हमारे जीवन में अनिवार्य है। यह हमारे शरीर के लिए तो रामबाण है। कोरोना जैसी महामारी के दौर में जब मनुष्य को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की विवशता आयी और प्राणवायु संकट ने साँसों पर पहरा लगा दिया, तो अनुलोम-विलोम की सार्थकता समझ में आयी। न जाने कितने तरह के आसन लोग एक दूसरे से सीखकर करने लगे। योग प्राचीन मनीषियों की ओर से दिया गया एक अनमोल वरदान है। इसे दिल से अपनाते हुए जीवन शैली का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। योग विद्या हमारे आचरण में झलकनी चाहिए। यह मानसिक तथा भौतिक स्वास्थ्य के लिए आज भी प्रासंगिक है और कई पीढ़ियों तक बनी रहेगी। इस संबंध में मेरा विचार है:
      मानें योग सुन्दर व्यायाम।
      देता तन को नव आयाम।।
      देखो है अनमोल वरदान।
      बने सदा जीवन पहचान।।


देव कांत मिश्र 'दिव्य' 
भागलपुर, बिहार

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