खेल दिवस के नायक मेजर ध्यानचंद-राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Sunday 29 August 2021

खेल दिवस के नायक मेजर ध्यानचंद-राकेश कुमार

खेल दिवस के नायक मेजर ध्यानचंद

          वर्तमान शिक्षण पद्धति या वर्तमान परिदृश्य में शिक्षण एक कला के रूप विकसित हो रही है। आज के संदर्भ में बच्चों के बीच में हम (शिक्षक) शिक्षण हेतु जाते हैं तो एक सरल खाका अर्थात एक ऐसी योजना जो बच्चों के बाल मन में समाहित हो जाए ये हमारा उद्देश्य होता है। उनके सामने सामाजिक मूल्यों से सुसज्जित तथ्यों का जिक्र करते हैं ताकि उन तथ्यों से प्रेरित होकर वो सकारात्मक कार्य हेतु अग्रसर हो जाए। बच्चों के सामने हम उनके रुचि के अनुसार कैरियर बनाने हेतु प्रेरित करते हैं क्योंकि हमारा उद्देश्य होता है कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो एवं समय-समय पर हर क्षेत्र से संबंधित दिवस विशेष पर बच्चों के बीच हम चर्चा करते हैं एवं उससे संबंधित तथ्यों का विस्तारपूर्वक चर्चा करते हैं ताकि बच्चे उससे स्वाभाविक रूप से प्रेरित हो और वो क्षेत्र कोई भी हो सकता है कला, साहित्य और खेलकूद। यहां मैं खेलकूद का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि वर्तमान समय में ये हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है एवं बच्चों के संदर्भ में इसका महत्व और भी विशेष हो जाता है क्योंकि वर्तमान समय में एक नई परिभाषा विकसित हुई है कि अगर बच्चे स्वस्थ तो देश का भविष्य भी स्वस्थ होगा। यही कारण है कि आज खेलों को विद्यालय में प्रारंभिक स्तर से हीं जोड़ दिया गया है एवं हम सभी खेल एवं शिक्षा दोनों को साथ लेकर चल रहे हैं। आज कोई देश कितना विकसित है इस बात का अंदाजा वहाँ खेलों की स्थिति क्या है इस बात से भी लगाया जाता है। इस तथ्य का मैं जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि स्वस्थ तन, स्वस्थ मन, कठिन परिश्रम, प्रतिबद्धता, अनुशासन एवं सामूहिक भावना को हम अपने अंदर समाहित कर हीं खेल के क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। अगर हम इतने गुण बच्चों में समाहित करने में सफल होते हैं तो एक विकसित राष्ट्र का निर्माण हेतु भी अग्रसर होते हैं।
          आज खेल दिवस के अवसर पर लिखित आलेख में हम ऐसे हीं एक खेल महापुरुष की चर्चा करने जा रहे हैं जिन्होंने कठिन परिस्थितियों को भी अनुकूल बनाकर पूरी दुनिया में एक ऐसी पहचान बनाई कि उनकी चर्चा सदैव होती रहेगी। जी हाँ हम खेल दिवस के नायक मेजर ध्यानचंद की बात कर रहे हैं जिन्हें पूरी दुनिया हॉकी के जादूगर नाम से जानती है। जिन्होंने पूरी दुनिया के सामने एक उदाहरण रखा कि सफलता पाने का सिर्फ एक ही मार्ग है वह है उस कार्य के प्रति आपका जुनून एवं कठिन परिश्रम। इनका जन्म 29 अगस्त 1905 इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनका बचपन भी सामान्य बच्चों की तरह था जो सभी प्रकार के खेल खेला करते थे। बचपन में इनकी हॉकी के प्रति कोई रुचि नहीं थी। 1922 में जब ये 16 वर्ष के थे तो भारतीय सेना में भर्ती हुए। इस समय भी इनकी हॉकी के प्रति कोई रुचि नहीं थी लेकिन इनको हॉकी के लिए प्रेरित करने का श्रेय इन्हीं की रेजिमेंट से मेजर सूबेदार तिवारी को जाता है और यहीं से इनका हॉकी कैरियर की शुरूआत हुई। कहा जाता है कि महान व्यक्ति के कार्य भी असाधारण होते हैं जो इस बात का संकेत होता है कि आगे चलकर आप एक मिसाल बन जाएंगे। मेजर ध्यानचंद के बारे में एक तथ्य यह है कि ये हॉकी की प्रैक्टिस रात को चंद्रमा के रौशनी में करते थे और इस कारण इनके दोस्तों ने इनका नाम चंद रख दिया था जिससे लोग इन्हें ध्यान चंद के नाम से जानने लगे जबकि इनका वास्तविक नाम ध्यान सिंह था। सेना में मेजर तिवारी की निगरानी में इनका हॉकी का अभ्यास शुरू हुआ और प्रतिदिन कठिन परिश्रम करने के बाद मेजर ध्यानचंद हॉकी के महान खिलाड़ी बन गए। 1926 में इनका चयन न्यूज़ीलैंड में होने वाले टूर्नामेंट के लिए भारतीय टीम में हुआ। टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने 21 मैच खेले थे जिसमें से 18 मैच में भारतीय टीम ने जीत हासिल की थी। इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने कुल 20 गोल किए थे जिसमें से 10 गोल अकेले मेजर ध्यानचंद ने किए थे। जो इस बात को दर्शाता है कि हॉकी पर इनकी पकड़ कितनी मजबूत थी।
          ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद उनके हॉकी स्टिक से ऐसी चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी को ऐसा लगता था कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक की हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुम्बक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई। उनकी हॉकी पर जबरदस्त पकड़ एवं कलाकारी से  मोहित होकर जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर ने उन्हें जर्मनी से खेलने की पेशकश कर दी थी लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलना हीं सबसे बड़ा गौरव समझा। मेजर ध्यानचंद ने ओलम्पिक खेलों मे भारतीय हॉकी टीम को गोल्ड मेडल दिलवाने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने बेहतरीन प्रदर्शन और प्रयासों से 1928 से 1936 तक भारतीय हॉकी टीम को मेडल की हैट्रिक दिलाई थी। वहीं 1932 में लॉन्स एंजेल्स में आयोजित ओलम्पिक खेलों के लिए उन्हें नायक (कप्तान) बना दिया गया था।
          उन्हें अपने खेल में असाधारण प्रदर्शन के लिए वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई गई है और दिखाया गया है कि ध्यानचंद हॉकी के कितने जबरदस्त खिलाड़ी थे। इनको अपने खेल में विशिष्ट उपलब्धि के लिए 1956 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया। भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज हम सभी के लिए गर्व की बात है कि टोक्यो ओलम्पिक 2020 में भारत ने अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी में 41 साल के बाद जर्मनी को हराकर कांस्य पदक प्राप्त किया जो हॉकी के स्वर्णिम युग की वापसी का संकेत के रूप में हम देख सकते हैं लेकिन ये हम सभी का दायित्व है कि बाल्यावस्था से हीं बच्चों की छिपी खेल प्रतिभा को पहचानकर प्रोत्साहित करें। आज समूचा देश इस बात को लेकर गर्व की अनुभूति कर रहा है कि ओलम्पिक खेलों के इतिहास में भारत ने इस बार टोक्यो ओलम्पिक 2020 में सबसे अधिक पदक प्राप्त किया जो इस बात का भी प्रमाण है कि खेलेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया। भारत सरकार ने इस वर्ष से हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की है जो इनके असाधारण खेल प्रतिभा का सम्मान है। आज हम सभी को संकल्पित होने की जरूरत है कि दिवस विशेष को इस तरह से मनाए की हमारी युवा पीढ़ी उस दिवस विशेष को आत्मसात कर आगे बढ़ने का संकल्प ले और भारत खेलों के शिखर पथ पर अग्रसर हो जाए। राष्ट्रीय खेल दिवस की शुभकामना के साथ।


राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर ( पटना )

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