Sunday, 5 September 2021
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शिक्षकों का शिक्षक दिवस-राकेश कुमार
शिक्षकों का शिक्षक दिवस
वर्तमान समय में हम सभी (शिक्षकों) की भूमिका में नित्य नए बदलाव हो रहे हैं और हमसब इस बदलाव के साथ आगे बढ़ते हुए बच्चों के सम्पूर्ण विकास में अपनी अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। यह सर्वविदित है कि शिक्षकों की दुनिया बच्चों के आस-पास हीं सिमटी रहती है जो शिक्षकों का मूल कर्तव्य भी है। मैंने अपने शिक्षक के कार्यकाल (15 वर्षों ) में ये महसूस या अनुभव प्राप्त किया उसके आधार पर यह कह सकता हूँ कि शिक्षक अपने शिक्षण कार्य के अलावे सरकार द्वारा सौंपे गए हर कार्य को सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना के साथ पूरे तन, मन और निष्ठापूर्वक और सफलतापूर्वक अंजाम देते हैं। ये भी कहा जाता है कि शिक्षक जिस कार्य को भी करते हैं उसमें असफलता का कोई स्थान हीं नहीं होता इसलिए समाज में शिक्षकों का स्थान सबसे ऊँचा होता है। बदलते परिवेश में जहाँ टेक्नोलॉजी ने अहम स्थान बनाया वहीं इस टेक्नोलॉजी को समय के साथ अपनाकर शिक्षकों ने भी मिसाल कायम की है। शिक्षकों के बारे में प्रायः यह मान्यता रही है कि शिक्षक टेक्नोलॉजी फ्रेंडली नहीं होते लेकिन ये बीते वक्त की बात हो गई। आज का शिक्षक टीचर्स ऑफ बिहार बन गया है जो किसी भी परिस्थिति को अनुकूल बनाकर कार्य करने में विश्वास रखता है। शिक्षक दिवस पर लिखित आलेख में नायक ( शिक्षक ) हम ही हैं तो जाहिर है कि बात भी हमारी हीं होगी। विगत दो वर्षो में जो हुआ है उससे पूरी दुनिया वाकिफ है। जी हां हम यहाँ पर चर्चा कोरोना काल का कर रहे हैं जिसने पूरी गतिविधि को अपने इर्द-गिर्द समेटा रहा। कोरोना के कारण सबसे ज्यादा नुकसान शिक्षा अर्थात बच्चों को उठाना पड़ा। उनकी शिक्षा लगभग ठहर सी गई लेकिन हम ( शिक्षक ) कहाँ मानने वाले थे। कोरोना काल में बिहार के शैक्षिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ और वो था बच्चों को डिजिटल एजुकेशन से जोड़ना जिसमें टीचर्स ऑफ बिहार के मंच से School on Mobile कार्यक्रम चलाया गया जो शिक्षा में बदलते बिहार का प्रतीक बनकर उभरा। इस कार्यक्रम ने बिहार के तमाम सरकारी विद्यालय के शिक्षकों को गौरव की अनुभूति कराया एवं आगे की शिक्षा कैसी होगी इस तथ्य से भी परिचित कराया। जैसा कि हमने ऊपर में चर्चा की कि हम शिक्षक सिर्फ बच्चों की शिक्षा तक हीं सीमित नहीं है बल्कि अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का भी बखूबी निर्वहन करते हैं। कोरोना के दौरान हम शिक्षकों ने कोरोना योद्धा के रूप में भी अपने कर्तव्य का निर्वहन किया और आज भी हम सभी कोरोना वैक्सीन हेतु लोगों को जागरूक कर रहे हैं और हम सभी का प्रयास है कि कोरोना वैक्सीन लेने से कोई लोग छुटे नहीं। बच्चों के बीच से अक्सर ये प्रश्न आता है कि हम प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस क्यों मनाते हैं और हमारा जबाब होता है कि उस महापुरुष के कार्यों को याद करना एवं उनके जीवन से प्रेरणा लेकर साल भर हम जो कार्य करते हैं उस उपलब्धि को याद करना एवं उनके दिखाए मार्ग पर चलने में हम कितना सफल हुए उसका ईमानदारी पूर्वक विश्लेषण करना हीं शिक्षक दिवस मनाने का मूल उद्देश्य है। हम सभी शिक्षकों का सही शिक्षक दिवस इस तथ्य में छिपा है कि चाहे परिस्थितियां जो भी हो हम अपने कर्तव्य पथ से डिगेंगे नहीं और इस बात का प्रमाण है सोशल मीडिया पर वो तस्वीर जो 15 अगस्त को बाढ़ग्रस्त इलाके में पानी से भरे विद्यालय में लहराता तिरंगा था जो इस बात का प्रमाण था कि परिस्थितियां से हार मानने वाले हम ( शिक्षक ) नहीं हैं।
अब चर्चा उस नायक की जिनका जीवन हम शिक्षकों को सदैव प्रेरित करता है एवं जिनके जन्मदिन पर हम प्रत्येक वर्ष अपना दिन अर्थात शिक्षक दिवस मनाते हैं। जी हां डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिनका जन्म 5 सितंबर 1888 ई. को हुआ था। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म मद्रास ( वर्तमान में चेन्नई ) से चालीस किलोमीटर दूर तमिलनाडु में आंध्रप्रदेश से सटी सीमा के नजदीक तिरुतन्नी में हुआ था। आठ साल की उम्र तक राधाकृष्णन तिरुतन्नी में हीं रहे। इनके बारे में तथ्य है कि इन्होंने बहुत कम उम्र में ही पढ़ाना शुरू कर दिया था। इक्कीस साल की उम्र में यह मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में फिलॉसफी विभाग में जूनियर लेक्चरर बन गए थे।
उन्होंने अपने योग्यता एवं प्रतिभा के कारण कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया। इन्हें शिक्षण में काफी रुचि थी। इन्होंने लगभग चालीस वर्ष तक अध्यापन का कार्य किया।
भारत में साल 1962 से शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसी साल में मई में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर पदभार संभाले थे। इससे पहले 1952 से 1962 तक वो देश के पहले उप-राष्ट्रपति रहे थे। एक बार इनके मित्रों ने गुजारिश की उन्हें उनका जन्मदिन मनाने की इजाजत दें। डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि देश का भविष्य बच्चों के हाथों में है और उन्हें बेहतर इंसान बनाने मे शिक्षकों का बड़ा योगदान है। उन्होंने अपने मित्रों से कहा कि उन्हें प्रसन्नता होगी अगर उनके जन्मदिन को शिक्षकों को याद करते हुए मनाया जाए। इसके बाद 1962 से हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। ऐसा महान व्यक्तित्व था डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का। महापुरुषों के जीवन पर आधारित आलेख को कुछ शब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं लेकिन उनके जीवन आदर्श को एवं उनके सपनों को साकार करने का संकल्प हम सभी शिक्षकों का कर्तव्य के साथ-साथ दायित्व भी है। मैं अपने आलेख के माध्यम से बिहार से राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु चयनित दोनों शिक्षकों एवं राजकीय पुरस्कार हेतु चयनित बीस शिक्षकों को बधाई एवं धन्यवाद देता हूँ कि आपलोगों के वजह से बिहार के सभी शिक्षकों को गौरवान्वित होने का मौका मिला एवं बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिली। शिक्षक दिवस की शुभकामना के साथ !
राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना)
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