बच्चे देश के भविष्य होते हैं और देश के भविष्य को शिक्षित करने का कार्य शिक्षकों का होता है इसलिए शिक्षकों को राष्ट्र का निर्माता कहा जाता है। अर्थात् अगर हम कहें तो हम शिक्षकों की कर्मठता पर देश की सुनहरी भविष्य का निर्माण सम्भव है । सदियों से हमारा देश गुरु-शिष्य की परंपरा के लिये जाना जाता है ।
प्राचीन काल से ही विदेशों से भी छात्र हमारे देश में शिक्षा ग्रहण करने आते थे जो हमारी उच्चतम संस्कृति का प्रतीक था, लेकिन यहां पर मैं [व्यक्तिगत विचार] रेखांकित करूंगा कि पूर्व में हमारे देश में लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे और आज हम शिक्षा ग्रहण करने हेतु विदेशों में जाते हैं सोचनीय प्रश्न? कहा जाता है कि समय के साथ बदलाव होता रहता है लेकिन नहीं बदलती है तो हम शिक्षकों की भूमिका। शिक्षक सदैव बच्चों के भविष्य के प्रति चिंतनशील रहता है । उनकी दिनचर्या का प्रमुख केंद्रबिंदु बच्चे ही होते हैं, इसलिए शिक्षण के पेशा को सबसे महान माना गया है ।
प्राचीन काल से ही वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, कवि, संत, मुनि आदि सब गुरु की अपार महिमा का बखान करते हैं । शास्त्रों में गु का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान और रू का अर्थ उसका निरोधक बताया गया है जिसका अर्थ अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला गुरु होता है । आज हम अपने आलेख में एक ऐसी शख्सियत की चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने शिक्षा और शिक्षण को एक ऐसी मुकाम पर पहुंचाया की उनके जन्मदिन पर समस्त भारत में शिक्षकों का सम्मान सह शिक्षक दिवस मनाया जाता है जी हां डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
इनका जन्म 05 सितंबर1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी नामक गांव में हुआ. ये बचपन से ही किताबों के शौकिन थे और पढ़ाई-लिखाई में काफी रुचि रखते थे इनमें विद्वत्ता के लक्षण बाल्यावस्था से ही दिखाई देने लगे थे. कम उम्र में ही इन्होंने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को पढ़ा और उनके विचारों को आत्मसात किया. भारत के आजादी के बाद डॉ. राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत बने उसके बाद उनको भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति बनाया गया. 1962 में वो डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनें । सन 1909 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज इन्होंने शिक्षक जीवन की शुरूआत की इसके बाद अध्यापन कार्य करते हुए कई विश्वविद्यालयों के कुलपति , रूस में भारत के राजदूत और दस वर्ष तक भारत के उपराष्ट्रपति और अंत में 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे , इस प्रकार इन्होंने देश की अनेक सेवाएं की परंतु सर्वोपरि वे एक शिक्षक के रूप में रहे । सन 1962 से उनके सम्मान में भारत में प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
इनका जीवन हम समस्त शिक्षकों एक प्रेरणा देता है और साथ ही साथ इस गर्व की अनुभूति कराता है कि हम शिक्षक हैं। 5 सितंबर शिक्षकों का सम्मान का दिन होता है लेकिन साथ ही साथ एक नए संकल्प का भी दिन होता है कि हम भारत को उस प्राचीन गौरव की ओर ले जायेंगे की लोग विदेशों से हमारे देश में शिक्षा ग्रहण करने आएं हम विदेश नहीं जाएंगे शिक्षा ग्रहण करने। हम शिक्षकों का संकल्प ही डॉ. राधाकृणन की जयंती सह शिक्षक दिवस को सार्थकता प्रदान करेगा और अंत में इस श्लोक के साथ –
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”
सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर [ पटना
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