प्रधान का दूसरा नाम होता है,मालिक यानि जो कि संप्रभु सम्पन्न होता है तथा अपने परिवार,विद्यालय,घर, संगठन का सर्वोच्च होता है। इस पद पर उसी व्यक्ति को सुशोभित किया जाता है जो कि इस पद के उत्तरदायित्व को समझ सके।जब किसी भी जगह पर किसी पद के लिये किसी की ताजपोशी की जाती है तो उससे यह उम्मीद की जाती है कि उक्त व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व, कर्तव्य,पद की गरिमा,समय-समय पर सभी चीजों का ख्याल रखेगा।
मेरा यह आलेख एक गृह के मालिक तथा एक विद्यालय प्रधान को मुख्य बिन्दु बनाकर लिखा गया है,जिसमें मुझे ऐसा लगा कि कोई भी व्यक्ति आखिरकार इस पद को पाने के लिये लालायित क्यों रहता है?आप किसी भी विभाग के प्रधान से पूछिये तो वह कहेंगे कि मैं तो रात-दिन काम के बोझ से दबा रहता हूँ। इसपर यदि उनसे यह पूछा जाय कि यदि आप परेशान हैं तो इस पद को छोड़ दीजिए,तो उनका जवाब होगा कि ऐसा कैसे हो,सकता है,मैं यह पद कैसे छोड़ सकता हूँ,रात-दिन मेहनत करके मैंने इस पद को प्राप्त की है, फिर उस कुर्सी का मजा तो कुछ और है। परेशानी के बाबजूद भी जब लोग उस कुर्सी पर बैठते हैं तो लगता है कि मैं किसी भी विभाग का प्रधान हूँ।
किसी ने ठीक ही कहा है कि"जीना तो है उसी का,जिसने यह राज जाना, है काम आदमी का आदमी के औरो के काम आना"। वास्तव में प्रधान का पद जीवन का एक सुखमय पल होता है,जहाँ पर उत्तरदायित्व का विकास होता है तथा उसे एहसास करने की जरूरत है कि मुझे अगर जीवन में इस प्रकार के पद को धारण करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है तो हमारे अंदर जो क्रियाशक्ति,संगठन चलाने की क्षमता समन्वय की शक्ति,समय की पाबंदी तथा कर्तव्य निष्ठा का निर्वहन करना चाहिए। आप जब समय से अपने कर्मस्थली पर उपस्थित होकर कर्तव्यनिष्ठा के साथ,धैर्य का परिचय देते हुए,अपना कार्य करेंगे तो बहुत ही मजा आयेगा। समय निरंतर परिवर्तनशील है और प्रधान के पद को सुशोभित करना राजयोग होता है,जो सभी को नसीब नहीं होता है।प्रधान की जिन्दगी, जीवन का एक सुखमय पल होता है, जिसका आनंद आप किस प्रकार से लेंगे यह आप के व्यवहार तथा कार्य कुशलता पर निर्भर करता है।
भगवान ने इस संसार में असंख्य जीवों को बनाया है,उसमें से एक बेशकीमती जीव मनुष्य है,जो कि विवेकशील है।इस विवेक का प्रयोग आप एक प्रधान के रूप में किस तरह से करते हैं,कि आपको सुखमय लगे।अगर आप अपनी जिम्मेवारी को पूरी तरह से निभाते हैं तो जीवन जीने में बहुत मजा आयेगा,वरना यह दुःखदायी हो जायेगा।बहुत सारे पदाधिकारी जो कि अपनी जिन्दगी को अपने कार्यों के प्रति समर्पित कर देते हैं तो उनको अपनी जिन्दगी जीने में बहुत मजा आ जायेगा।एक प्रधान पूरी जिन्दगी दूसरों के लिये ही जीता है,जब वह अपने लिये जीना शुरू कर देगा तो वह मालिक या प्रधान नहीं हो सकता है।
इस प्रकार की जिंदगी जी कर तो देखिये,क्या मजा आता है।इस प्रकार मुझे भी अपने घर का प्रधान तथाविद्यालय का प्रधान के रूप में काम करने में जो मौका मिला है वह जिन्दगी खुशहाल अवसर है।आइये हमलोग जिनको परिवार,देश,समाज ने जीवन में प्रधान बनने का सुअवसर प्रदान किया है उसका किस्तों में मजा लेने की कोशिश करें।
श्री विमल कुमार"विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा बांका(बिहार)
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