भारत की पहचान यहां की सांस्कृतिक विरासत रही है. सांस्कृतिक ,धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक और अन्य विरासत के माध्यम से हम अपने देश को सदा आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहे हैं . इस प्रयास में जब हम अपने बचपन में लौटते हैं तो काफी सुखद अनुभूति का एहसास होता है और पुनः ईश्वर से हम प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर मेरे बचपन के दिन को लौटा दे क्योंकि इस समय संसारी माया -मोह और अन्य कष्टों का हमें कोई एहसास ,अनुभूति प्राप्त नहीं होता है. हम सिर्फ मौज मस्ती और खुशी को समझते रहते हैं . वैसे दिन किसी भी इंसान के जीवन में दोबारा नसीब नहीं होता है .
बचपन यह 2 सप्ताह के बाद से 2 वर्ष की अवस्था है .इस अवस्था के प्रारंभ में बालक पूर्णत: असहाय होता है और अपनी आवश्यकता हेतु दूसरों पर निर्भर होता है .परंतु इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है .विकास के साथ-साथ उसका अपनी मांसपेशियों पर नियंत्रण बढ़ता जाता है और वह धीरे-धीरे आत्मनिर्भर होता जाता है .फलस्वरूप वह स्वयं खाना खाने खेलने, चलने, हंसने और बोलने वाले का व्यवहार सीख जाता है . प्रमुख संवेदी अवस्था में उसके उदित हो जाते हैं और उसमें संवेग की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगती है .धीरे-धीरे वह अपने विकास मार्ग की ओर बढ़ता है .
भारत में पर्व त्योहार बहुत खुशियों के साथ मनाया जाता है .इस दौर के बाद भी 10 वर्ष के नीचे के बालक अपने एक अलग तरह की अनुभूति लेकर पर्व त्यौहार को मनाते रहते हैं .और व्यक्ति जब बड़ा होता है तो 10 वर्ष के नीचे की अवस्था को पुनः प्राप्त करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है .इस बचपन को लेकर बहुत से गाने हमारे देश में प्रचलित हैं किंतु गाने आज तक ईश्वर ने सुनने के बावजूद हमें पुनः बचपन नसीब नहीं होने देते ,ईश्वर यह अवस्था मनुष्य के विकास की स्वर्णिम अवस्था होती है .
भारतीय पर्व त्योहार और बचपन काफी कुछ हमें जीवन में सिखाते रहता है .प्रेमचंद द्वारा रचित ईदगाह हमें जीवन के गहराई तक ले जाने का सफल प्रयास दिखाता है.
डॉ मनीष कुमार शशि
प्लस टू उच्च विद्यालय
बक्सर

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