अमावस्या को अनंत हर्ष से मनाई जाने वाली प्रकाश पर्व दीपावली धरती के तिमिर तोम को दूर कर धवल रश्मियों से निशा को जगमग कर उर में अति आनन्द को सुवासित करती है। यह हमें प्रभु श्री राम के अयोध्या आगमन की याद तो दिलाती है साथ ही हमारे मन में राम राज्य की संकल्पना को मजबूत करती है और गोस्वामीजी की बात "दैहिक दैविक भौतिक तपा राम राज्य कबहुं नहीं व्यापा " की याद दिलाती है। सर्वत्र त्रेता युग के रामराज्य के सुखद अहसास के साथ प्रभु श्री राम के सबमें समाहित होने और सर्व व्यापी होने का आगाज करती है। दीपोत्सव की अनुपम छटा रौशनी से जगमग अवनी और अम्बर सर्वत्र देव, ऋषि, गंधर्व , मानव द्वारा सुभाषित गान के मध्य आज का दूषित ततर्थ धुआं- धुआं धरती हमारा परिचय कहीं कालांतर में उत्पन्न हमारी लोक - आनंद के अतिरेक से उत्पन्न विकृति तो नहीं करती? यह सहज ही विचारणीय प्रश्न है। हमें निश्चित रूप से आत्मचिंतन करना चाहिए।
हम उत्तरोत्तर प्रगति कर रहे हैं और हमारी उपभोक्तावादी संस्कृति भोगवादी सोच और बढ़ते संसाधन दिखावा और प्रदर्शन की ओर स्वतः ही हमें खींच रहे हैं। दीपोत्सव का यह दिव्य त्योहार दिया - बाती सजावट से आगे निकल कर लोक रंजन उर आत्म आनन्द हेतु जब पटाखों - फूल झाड़ियों के अतिरेक में समाता है तो दीपावली अपने आनंद का अर्थ खो देती है। यह व्यक्तिगत आह्लाद जी सामूहिक अभिव्यक्ति आनंद को धुआं धुआं कर देती है। वस्तुत यह हमारे अतृप्त अंतर्मन के तृष्णा की तृप्ति की असफलता के उपरांत की अपभ्रंश अभिव्यक्ति है। यह निश्चित रूप से प्रकृति को विषाक्त करती है और अवांछित गैसों के उत्सर्जन और अतिरेक ध्वनि से प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। प्रकृति बदला लेती है, यह बारम्बार याद दिलाना पड़े तो अच्छा नहीं है वह भी तब जब हम सबने हाल ही में कोरोना का तांडव देखा है और कोरोना अभी तक गया नहीं है। हमें रुकना ही होगा।
मैं यह नहीं कहती कि दीपावली नहीं मनाई जाय बल्कि जोश और होश से भरी खुशियों से भरपूर दीपावली का त्योहार हमारे तन मन और हमारी समृद्ध संस्कृति को आह्लादित करती दीपावली मनानी चाहिए। हम धार्मिक आस्था के अनुरूप प्रभु श्री राम का अभिनन्दन करते हुए भागवती महालक्ष्मी का स्वागत करें। सब ओर प्रकाश फैलाएं उर को आनंदित करे। स्वयं के व्यक्तित्व को प्रकाशित करें और इको फ्रेंडली पटाखे भी जलाएं। क्या यह सदभाव की हम स्वयं की और अपने परिवेश कि सुरक्षा करें यह दीपावली का वास्तविक अभिप्राय नहीं है। आइए हम सर्वत्र स्वयं को दिए सा आहूत कर समाज को प्रकाशित करें। दिया जलाएं, आनंद मनाएं निराश्रितों को आश्रय दें , प्रेम की सुधा रश्मि ने सर्वत्र आलोकित करें। आइए दीपावली मनाएं। मन को आलोकित करें। श्री राम को मन में बैठाएं। राम राज्य लाएं।
डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ' आर्या '
मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार
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