पिता एक उम्मीद है, एक आस है" - श्री विमल कुमार - Teachers of Bihar

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Thursday, 20 October 2022

पिता एक उम्मीद है, एक आस है" - श्री विमल कुमार

एक कारूणिक,मार्मिक आलेख।
   परिवार में बच्चे का जन्म होने के बाद माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्य मिलकर बच्चे का लालन-पालन करते हैं।माता के द्वारा गर्भ धारण करने के बाद से लगातार बच्चे का लालन पालन करने के साथ-साथ पिता भी उसके जीवन यापन में किसी प्रकार का कष्ट होने देना नहीं चाहते हैं।पिता के द्वारा बच्चे को हर संभव सुख-सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है।
इन सभी बातों के बाबजूद भी समाज में आर्थिक दृष्टिकोण से गरीब और अमीर दो वर्ग पाये जाते हैं।गरीब,मजदूर के मेहनत पर ही अमीर लोग अपनी जिन्दगी में ऐश,मौज,मस्ती करते है।गरीब,मजदूर तथा सेवक वर्ग की
जिन्दगी में सुख लिखा हुआ नहीं है।दिन-रात लगातार मजदूरी करने के बाबजूद भी उनके जीवन में सुख भोग लिखा हुआ नहीं है।
अपने परिवार के पालन-पोषण करने के लिये दिन-रात मेहनत-मजदूरी करते रहते हैं।साथ ही गरीब,मजदूर की जिन्दगी" मगह" क्षेत्र में बहने वाली मोरहर नदी की तरह है,जिसमें सिर्फ बरसात के दिनों में ही पानी आती है,बाद बाकी दिन वह सूखी रहती है।गरीब मजदूर की जिन्दगी में भी वैसी ही स्थिति है,जिस दिन काम मिलती है,उसी दिन रूपया मिलता है तथा जब मजदूरी मिलती है,उसी दिन उसको भोजन मिल पाता है।
समाज के वैसे गरीब परिवार वाले लोग भले ही मजदूरी करते हों लेकिन लगातार जीवन के उज्जवल पक्ष को देखते हुये तथा दिल में एक अरमान लिये कि" मजदूर चल अकेला चल,तेरा मंजिल आगे चल अकेला"।
एक ऐसा गरीब व्यक्ति,जिसको न तो शरीर पर एक कपड़ा हैऔर न ही पेट में अन्न है,ठीक वैसे ही जैसे 
"हाय रे मेरी किस्मत जागने से पहले सो जाती है।"
एक ऐसा मजदूर जिसके शरीर के वस्त्र फटे हुये हैं जो अपने कंधे पर अपनी बेटी को लेकर लगातार मजदूरी के तलाश में आगे बढ़ रहे हैं।बच्ची की स्थिति ऐसी है कि पीट और पेट भूख से एक जैसे हो गये है,जो कि आज के विकासशील 21वीं सदीं के  देश के चेहरे पर एक काला धब्बा सा लगता है।बच्ची कहती है,"पप्पा पप्पा भूख,भात खायेंगे,भात खायेंगे ।"भात-भात कहते-कहते भूख से मर गयी संतोषी"। एक पिता का अपने बच्ची को कंधे पर बैठाकर आगे चलने की कहानी को चंद शब्दों से व्यक्त किया जा सकता है-
पिता एक उम्मीद है एक आस है
परिवार की हिम्मत,एक विश्वास है
बाहर से सख्त,अंदर से नर्म है,
उसके दिल में दफन कई मर्म हैं,
पिता संघर्ष की आंधियों में,         
हौसलों की दीवार है।
परेशानियों से लड़ने की,
दो धारी तलवार है।
बचपन में खुश करने वाला खिलौना है,
नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाल
बिछौना है।

चूँकि गरीबी की अपनी एक कहानी होती है जो कि अमीरों के कब्र पर पनपी हुई होती है जो बहुत जहरीली होती है।क्योंकि जब गरीबी लगातार भूख का पीछा करते हुये आगे बढ़ती है,तो वह एक क्रांति का रूप धारण करती है तथा अमीरों से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं जिसके बहुत सारे उदाहरण शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों में भी देखने को मिलती है।इसे ही महान लेखक श्री शिवपूजन सहाय ने"कहानी का प्लाॅट"में लिखा है कि'भगजोगनी'
मुंशी जी की गरीबी से पैदा हुई और जन्म लेते ही माता के दूध से वंचित होकर"टूअर" कहलाने लगी,इसलिये अभागिन होकर  अजाहिद थी-इसमें शक नहीं पर "सुंदरता में वह अंधेरे घर की दीपक थी"।
अंत में, मेरी यह सोच है कि गरीबों,मजबूरों,पीड़ित की सहायता कीजिये ताकि वह भी देश की मुख्य धारा से जुड़ सके। साथ ही जब सबों का विकास होगा तो देश का भी चहोन्मुखी विकास होगा।आने वाले कल में देश का कोई व्यक्ति भोजन के लिये लालायित नहीं होगा,रोगमुक्त शोकमुक्त समाज का निर्माण होगा की बहुत-बहुत शुभकामनायें


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" 
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा।

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