साधारण अर्थ में हम जीवन में जो प्रयत्न कर रहे हैं वह किस सीमा तक मूल्यवान हैं,इस बात का पता लगाना ही मूल्यांकन है।इस प्रकार के मूल्यांकन से हमें अपनी लगन, शक्ति,सामर्थ्य तथा तद्नुसार उद्देश्य पूर्ति हेतु किये गये प्रयत्न इत्यादि सभी का मूल्य आंकने का अवसर मिलता है।
मूल्यांकन जो कि हमारे द्वारा किये गये कार्यों का आकलन करने का सुन्दर तरीका है,जिसके द्वारा हम किसी भी चीज का आकलन कर सकते हैं। मूल्यांकन जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग होता है,जिसके द्वारा मनुष्य द्वारा जीवन में किये गये कृत्यों की वास्तविक स्थिति का पता चल पाता है।मनुष्य जो कि अपने जीवन में जन्म के बाद से ही लगातार विकास की ओर अग्रसर रहता है,जिसमें वह अच्छे तथा बुरे कर्मों को करता है।मनुष्य के द्वारा किये गये इन कार्यों का परिवार,समाज,विद्यालय, कार्यालय आदि जगहों में मूल्यांकन किया जाता है,जिसके आधार पर समाज में उसके प्रति लोगों की सोच तथा छवि बनती हुई दिखाई देती है।इसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में भी शिक्षार्थी का मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक चीज है,जिससे कि उनका मूल्यांकन किया जाता है।
शैक्षिक मूल्यांकन के अंतर्गत कक्षा तथा कक्षा के बाहर अन्य गतिविधियों द्वारा जो कुछ भी सीखाया जाता है वह किस सीमा तक निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में कितना सहायक है इस बात का पता लगाना ही उसका मूल्यांकन कहा जायेगा।
मूल्यांकन शिक्षा प्रक्रिया का वह अंश या एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा इस बात का पता लगाया जाता है कि एक निश्चित समय में शिक्षण-अधिगम के लिये निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में किस सीमा तक सफलता मिल पायी।
वर्त्तमान समय में यह माना जाता है कि मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है।संपूर्ण शिक्षा प्रणाली का यह एक अभिन्न अंग है और निश्चित रूप से इसका संबंध शैक्षिक उद्देश्यों से है।विद्यार्थी को पढ़ने की आदतों,अध्यापक के पढ़ाने की विधियों पर यह बहुत गहरा असर डालता है और इस तरह न केवल शैक्षिक उपलब्धियों के मापन में सहायक होता है,बल्कि उनमें बढ़ोतरी भी करता है।"
जहाँ तक शैक्षिक मूल्यांकन की बात है तो कई स्तर पर किया जाना चाहिये,जैसे-शैक्षिक सत्र की समाप्ति पर शिक्षार्थी का परीक्षा लिया जाना,जिसमें उनको लघु उत्तरीय एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न पूछे जाते है।इसके बाद उनका साक्षात्कार करते समय भी उनके व्यवहार,व्यक्तित्व,बोलने की कला का आकलन करके भी किसी की शिक्षा का मूल्यांकन किया जा सकता है।इसके अलावे जब हम विद्यालय या वर्ग कक्ष में जाते हैं तो उस समय भी शिक्षक को यह पता चल जाता है कि वर्ग कक्ष में कौन सा बालक पढ़ने में किस प्रकार से कितनी बुद्धिमत्ता का है तथा विद्यालय में किस प्रकार अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर रहा है।
शिक्षा विभाग के द्वारा लगातार शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाये जाने के लिये तरह-तरह के नवाचारों का प्रयोग किया जा रहा है,जिससे शिक्षा में तथा उसके मूल्यांकन की प्रक्रिया में परिवर्तन दिखाई दे रहा है। इसके अलावे भी आज जहाँ तक स्व मूल्यांकन की बात है,यह एक बहुत ही कठिन कार्य है,क्योंकि बच्चे-बच्चियां स्वंय अपना मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं और जब इनके स्व मूल्यांकन की बात आयेगी तो यह कार्य उसके शिक्षक को ही करना पड़ेगा।साथ ही जब बच्चों का स्व मूल्यांकन करते समय वह असफल होगा तो इसके लिये उसके शिक्षक ही जिम्मेवार होंगे। इसके साथ ही किसी भी व्यक्ति में जो शीलगुण पाये जाते हैं,जिससे कि उस व्यक्ति के जीवन तथा परिवार,समाज में उसके प्रभाव का पता चलता है।
चूँकि किसी भी व्यक्ति के जीवन का मूल्यांकन मुख्य रूप से उसके शीलगुण जैसे-प्रेम,दया,सहयोग, सहिष्णुता इत्यादि पर निर्भर करता है,जो कि लोगों के जीवन का मुख्य भाग होता है,जो कि पारिवारिक तथा सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाता है।
अंत में हम कह सकते हैं कि मूल्यांकन किसी भी व्यक्ति के जीवन का अहम् पहलू माना जाता है,जो कि जीवन के हर मोड़ पर देखने को मिलती है। हमलोगों को अपने जीवन में अच्छे-अच्छे तथा उत्कृष्ट सामाजिक,शैक्षिक,कल्याणकारी कार्यों को करना चाहिये ताकि समाज तथा लोगों के नजर में आपकी मान मर्यादा, प्रतिष्ठा बनी रहे।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय
पंजवारा,(बांका)।

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