एक मनोविश्लेषणात्मक लेख।
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"मैं समय हूँ"जो कि अनवरत बिना किसी रूकावट के चलता ही रहता हूँ,जिसने मुझे पहचाना, समझा,मेरे साथ चलने का प्रयास किया वह लगातार विकास तथा तरक्की करता गया।जिस व्यक्ति या जीव ने मुझे समझने में देरी की,मेरे साथ चलने का प्रयास नहीं किया वह खेत में बरसात के दिनों में घर बनाकर रहने वाले चींटी की तरह हल चलाने वाले की चक्की में पिसा गया।
"रफतार"का अर्थ होता है"चलने की गति"जो कि बिना किसी रूकावट के अनवरत चलती ही रहती है।चाल की गति कभी-कम-बेशी हो सकती है,लेकिन अनवरत चलने वाला कभी भी जीवन में असफल नहीं होता है, वह हमेशा तरक्की के चरम शिखर पर आगे बढ़ता ही जाता है। मेरा यह आलेख जीवन की वास्तविकता पर आधारित है,जो कि आने वाले कल के नौनिहाल बच्चों,विद्यार्थियों,असफल लोगों को आगे बढ़ने को प्रेरित करता है।
प्रकृति में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो कि बिना प्रयास किये जीवन में बहुत कुछ प्राप्त करने की कामना करते हैं तथा आलस्य पूर्ण जीवन जीकर अपने विकास की बात करते हैं,जो कि,दुनियां में असंभव है,क्योंकि जिसने भी समय को पहचाना,उसका बेड़ा पार हुआ,नहीं पहचाने वाला समय की चक्की मे पीसा गया।
प्रत्येक जीव तथा मनुष्य के जीवन में सफलता और असफलता जुड़ी हुई होती है तथा जीवन सुख और दुःख के मिलन से बना हुआ है।मुझे लगता है कि यदि कोई व्यक्ति जीवन में असफल होता है,तो उसके पीछे उसका अपने कार्य के प्रति समर्पण में कमी तथा अपने भविष्य के निर्माण के अनदेखी रही होगी।कार्य करने की रफ्तार में कमी रही होगी,क्योंकि जीवन में असफल होने का मुख्य कारण है ,काम के प्रति अनदेखी करना,जीवन की समस्याओं को गहराई से नहीं समझ पाना।आप देखेंगे कि एक गरीब,मजदूर लगातार सुबह से शाम तक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपने निर्धारित गति से काम करता रहता है,तभी वह जीवन में सफलता की बुलंदी को प्राप्त कर पाता है।
सवाल उठता है कि एक बालक जन्म के बाद से धीरे-धीरे विकास के पथ पर अग्रसर होता ही जा रहा है,जिसकी रफ्तार को उसके माता-पिता तथा परिवार के लोग नियंत्रित करते जा रहे हैं तथा समय-समय पर उसे मनोगतयात्मक रूप से तेज करने के लिये प्रेरित कर रहे हैं तभी उस बालक में समय के अनुसार लड़ने तथा संघर्ष करने की क्षमता विकसित होती है।किसी भी जीव या मशीन की रफ्तार को तेज करने के लिये उसे समय-समय पर प्रोत्साहित तथा उत्प्रेरित करने की जरूरत होती है,इसलिये विकास की गति को तेज करने के लिये काल,समय तथा परिस्थिति के अनुसार उसकी चाल को तेज रफ्तार से बढ़ाने की जरूरत है।
हमारे भारत वर्ष के साथ-साथ हमारा बिहार प्रांत जो कि लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है के संबंध में शिक्षा विभाग बिहार सरकार के द्वारा एक प्रेरणादायक गीत तैयार किया गया है,"मेरी रफ्तार पे सूरज की किरण नाज करे,ऐसी परवाज दे मालिक की गगन नाज करे"।
अंत में,हम कह सकते हैं कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं होता है,बल्कि उसको प्राप्त करने के लिये लोगों के जीवन जीने की रफ्तार समय की माँग के अनुसार तेज गति की होनी चाहिये।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक
राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार)
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