बचपन हर गम से बेगाना - श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Tuesday, 15 November 2022

बचपन हर गम से बेगाना - श्री विमल कुमार "विनोद"

बाल-दिवस के अवसर पर।

बाल विकास एवं मनोविज्ञान विकास के कई चरणों जैसे शैशवावस्था,पूर्व बाल्यावस्था,उत्तर बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था से होकर गुजरती है। 14 नवंबर को बच्चों के प्यारे पंडित जवाहरलाल नेहरू जिसे बच्चे प्यार से चाचा नेहरू कहने लगे थे के जन्म दिन पर मुझे भी कुछ कहने तथा लिखने की इच्छा हो गयी।मुझे ऐसा महसूस हो रहा है तथा बाल विकास मनोविज्ञान में बच्चों के जिस रूप को धरातलीय रूप से दर्शित करने की कोशिश की गयी है,जहाँ बच्चों का मन निरंतर बहने वाले जल की तरह है।बच्चा जब शैशवावस्था में रहता है उस समय उसको किसी भी बात की चिंता नहीं रहती है। उसे धूल में खेलने कुत्ते बिल्ली के साथ खेलने,किसी भी चीज को अपने हाथ में लेकर मुंह में भर लेने तथा किसी भी चीज को खाने का प्रयास करता है।उसके मन में किसी भी जाति,धर्म,संप्रदाय,ऊंच -नीच से कोई  लेना-देना नहीं है।उसके मन में किसी भी बात का न तो तनाव रहता है और न तो बैर  रहता है।

माता-पिता की हमेशा इच्छा होती है कि मेरा बच्चा जीवन में आगे चलकर तरक्की करता रहे।इसके लिये वह नित्य नये-नये संस्कार देने की कोशिश करते हैं।चूंकि जबतक बालपन है तब तक तो माता-पिता सोचते हैं कि मेरा बच्चा बहुत अच्छा कर रहा है,लेकिन बदलते परिवेश में इस बात की चिंता है कि इन बच्चों में समय के साथ-साथ अच्छा संस्कार, नैतिकता,सद्व्यवहार,शिक्षा दिया जाय ताकि जीवन की बुलंदियो को आसानी से प्राप्त कर सके। क्योंकि समय के साथ-साथ उसके जीवन जीने की कला भी बदलती जाती है, जिसको बचाये रखना भी आवश्यक है।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"

प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार)।

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