मैं एक शिक्षक हूँ,विद्यालय मेरी कर्मस्थली है,यहीं मेरे कृषि का मुख्य जगह है।मेरी फसल या पैदावार यही बच्चे-बच्ची हैं।इनको अच्छी तरह से सींचना,एक सुन्दर चीज तैयार करना मेरा परम कर्तव्य है।
घर से विद्यालय जाने के बाद मैं अपने घरेलू जिन्दगी को भूल कर अपने विद्यालय के नौनिहाल को अच्छी तरह से तैयार करने में लग जाता हूँ। विद्यालय में जाकर उन नौनिहालों के साथ जीवन का आनंद लेने में बहुत मजा आता है।जब बच्चों के साथ प्रार्थना में शामिल होकर उनके साथ जब विद्यालय का पर्यवेक्षण तथा मार्गदर्शन करता हूँ तो बड़ा ही मजा आता है।प्रार्थना के बाद प्रारंभ होती है,विद्यालय की अन्य गतिविधि।बच्चे-बच्ची जब किसी प्रकार का व्यायाम या कबड्डी, फुटबाल खेलने के लिये मैदान में आते हैं तो न जाने मुझे भी खेल के मैदान में खेलने-कूदने की इच्छा होने लगती है तथा मैं अपने को रोक नहीं पाता हूँ तथा बच्चों को भी लगता है कि हमारे विद्यालय प्रधान हमलोगों के साथ व्यायाम तथा खेल खेलते हैं।
विद्यालय प्रधान को भी अपने नौनिहाल बच्चों के साथ खेलने-कूदने तथा वर्ग कक्ष में जाकर पठन-पाठन कि कार्य करने तथा उनका पर्यवेक्षण तथा मार्गदर्शन करने में बहुत खुशी होती है।आइये जीवन के इस आनंददायक पल का आनंद लें।
श्री विमल कुमार"विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार)
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