प्रत्येक संप्रदाय तथा देश की अपनी सभ्यता के साथ-साथ संस्कृति भी होती है।उस संस्कृति के अंतर्गत उस संप्रदाय का रहन-सहन,चाल-चलन,वेशभूषा,पूजा पाठ,पहनावा,नैतिकता, सद्व्यवहार इत्यादि निर्भर करता है।किसी भी संस्कृति की पहचान की अपनी एक अलग महत्ता होती है,जिसके साथ छेड़छाड़ करने से उसमें ह्रास होने लगता है जिसके जाल में आज भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति उलझती जा रही है।एक शिक्षक,चिंतक,लेखक के रूप में ,अपनी लेखनी से मैं आज के समय में पश्चिमी सभ्यता तथा आधुनिकीकरण के द्वारा भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को अपने जाल में उलझाये गये क्षेत्रों के बारे में बताने जा रहा हूँ।
(1)साधारण बोल-चाल की भाषा- साधारणतया हमलोग अपने परिवार में माता-पिता, चाचा-चाची या अन्य परंपरागत शब्दों का प्रयोग करने में गौरवान्वित महसूस करते थे,जो कि आज के समय ये सारे माधुर्ययुक्त शब्दों के जगह पर मम्मी,डैडी,अंकल जैसे शब्दों ने अपना स्थान सुरक्षित कर लिया है।
(2)दैनिक व्यवहार के तरीके- दैनिक जीवन में आचार-विचार एवं व्यवहार में भी परिवर्तन देखने को मिलता है जहाँ पर लोग सुप्रभात के जगह पर गुड मार्निंग,पैर छूकर प्रणाम करने के जगह पर हाय डैड,हेलो मेम जैसे शब्दों के प्रयोग ने निश्चित रूप से प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर कुठाराघात सा कर दिया है।
(3)खान-पान के क्षेत्र में-प्राचीन सभ्यता संस्कृति के क्षेत्र में भी लोगों का खान-पान के व्यंजन तथा तौर-तरीके में परिवर्तन आया है जिसके अंतर्गत घरों में भोजन करने चे पहले बैठने के लिये बिछावन(चौका) लगाया जाता था,लेकिन आज के समय में बफफे सिस्टम तथा फास्ट फूड ने लोगों का शारीरिक तथा आर्थिक रूप से दोहन करके प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर आघात पहुँचाने का प्रयास किया है।
(4)वेशभूषा तथा पहनावा-आज के बदलते हुए परिवेश में जहाँ पश्चिमी सभ्यता तथा आधुनिकीकरण के द्वारा अप- संस्कृति के कारण लड़के-लड़की के भड़कावे पहनावा ने संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को अपने आगोश में समा लिया है। आज सरस्वती पूजा के समय का दृश्य को देखकर पुराने समय की याद आयी,जब सरस्वती पूजा के समय बालिकायें साड़ी पहनकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की गरिमा को बढ़ा रही थी,लेकिन आज के समय में पश्चिम सभ्यता तथा आधुनिकीकरण युक्त वेशभूषा ने बालक-बालिकाओं के पहनावे को बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया है। चूँकि परिवर्तन ही संसार का नियम है ,जो कि अनवरत रूप से चल रहा है तथा चलता ही रहेगा। इसके बाबजूद भी वर्त्तमान परिस्थिति में परिवार,समाज को चाहिये कि बच्चे-बच्चियों को गणवेश में विद्यालय परिसर में भेजने का प्रयास करेंगे जिससे कि विद्यालय परिसर की गरिमा बनी रहेगी। विद्यालय प्रधान तथा विद्यालय के अन्य कर्मियों को भी चाहिये कि बच्चे-बच्चियों को गणवेश में विद्यालय आने के लिये प्रेरित करें।इसके अलावे मेरी सलाह विद्यालय के शिक्षक-शिक्षिकाओं तथा शिक्षकेत्तर कर्मचारियों से उम्मीद करते हैं कि उनको भी सभ्य,सुन्दर तथा सुसंस्कृत वेश भूषा में विद्यालय परिसर में आने का कष्ट करें तथा एक संदेश के रूप में समाज के रूप में एक प्रेरक के रूप में प्रस्तुत होना चाहिये।
अंत में,मेरी निजी राय है कि चूँकि विश्व में अनवरत परिवर्तन हो रहा है और होता ही रहेगा जिसे रोक पाना असंभव है, इसके बाबजूद भी हमलोगों को अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को बचाये रखने का प्रयास करना चाहिए कि बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ,आपका ही
आलेख साभार-श्री विमल कुमार' विनोद'
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा बांका(बिहार)।
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