एक मनोविश्लेषणात्मक लेख।
जीवन सुख और दुःख के मिलन से बना है।जीवन में इन दोनों ही प्रकार के संवेग की आवश्यकता होती है,जो कि जीवन में अपने आप ही आकर समाहित हो जाता है।जिस व्यक्ति के जीवन में सुख और दुःख का मिलन नहीं होता है, उसको जीवन जीने में मजा ही नहीं आता है।मेरा यह आलेख "कृति ही पहचान" जीवन की वास्तविकता पर आधारित है।
मनुष्य योनि जो कि सभी योनियों में से सबसे उत्कृष्ट तथा विवेकशील माना जाता है। मनुष्य को सोचने,समझने,चिंतन करने की शक्ति प्राप्त है।मनुष्य में जन्म लेने के बाद सुन्दर,सृजनशील, उत्कृष्ट कार्य करना चाहिये। इसी प्रकार लोगों को सेवा की दुनिया में भाग लेने के बाद भी सामाजिक,सार्वजनिक,विश्व हित तथा लोक कल्याणकारी कार्य को करना चाहिये।
जब कोई पदाधिकारी का स्थानांतरण होता है ये अवकाश प्राप्त करते हैं,तो उनके कार्य काल के कृत्यों की चर्चा कर रहे थे तो उस समय ऐसा महसूस हुआ कि किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन काल में सुन्दर कार्यों को करना चाहिये ताकि आने वाली पीढ़ी को आपके द्वारा किये गये सुन्दर सृजनशील कृत्यों का पता चल सके।
यह तो प्रकृति का शाश्वत नियम है कि जो जीव जन्म लिया है,उसको मृत्यु को वरण करना ही इसलिये प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में अच्छा कर्म करने का प्रयास करना चाहिये,जो कि उसके साथ जायेगा।अच्छे कर्मों का फल हमेशा अच्छा ही होता है,जो कि उसके विदाई की घड़ी में याद रहती है। मेरा यह आलेख विशेषकर सेवा में योगदान करना,पदभार ग्रहण करना,स्थानान्तरण होना,सेवा से अवकाश प्राप्त करना तथा इस जहाँ से विदा होने वाले दुखदायी पल पर आधारित है।सारे चीजों में देखा जाता है कि जब मनुष्य जन्म लेता है तो बहुत आनंद आता है,घर में खुशियों के दीप जलाये जाते हैं,उमंगों की बारिश सी होने लगती है,लेकिन जब लोगों को मृत्यु को वरन् करना पड़ता है तो मानो परिवार में विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ता है, जिसे लोगों को झेलना ही पड़ता है।उसी प्रकार जब लोग किसी जगह अपने पद पर रहते हुये अपनी सेवा देते हैं और बाद में जब स्थानान्तरित होकर दूसरे जगह जाना पड़ता है तो फिर कुछ समय के लिये वहाँ गुजरे जीवन की खट्टी-मिठी यादें साथ रह जाती हैं।कुछ पल के लिये उदासी छायी रहती है,लेकिन फिर बाद में लोग अपने आप को समय परिस्थिति के अनुसार समायोजित कर लेता है।लेकिन लोगों के द्वारा की गई उनकी कृति याद रह जाती है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जीवन में सुख और दुःख,मिलन और जुदाई,आगमन और विदाई का समावेश होता ही रहता है,बस याद रह जाती है।इसलिये जीवन का सुन्दर तथा खुबसूरत मजा लेने के लिये सुख के साथ-साथ दुःख के भी जीवन में आनंद उठाते हुये जीवन के पल का तनाव रहित होकर मजा लें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार)।

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